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वर्ष 2007 के लगभग अंत में त्रिची जिले के पुलिस अधीक्षक कलियामूर्ति के पास राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का फोन आया
एन. रघुरामन वर्ष 2007 के लगभग अंत में त्रिची जिले के पुलिस अधीक्षक कलियामूर्ति के पास राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का फोन आया। उन्होंने पूछा, 'क्या आप जानते हैं कि आपके जिले में थुराइयूर नामक छोटा-सा उपनगर है?' (2011 में आबादी 32000 थी) वे हां बोले तो राष्ट्रपति ने कहा, 'वहां सरस्वती नाम की 17 वर्षीय लड़की की शादी जबरदस्ती 43 वर्षीय व्यक्ति से कर रहे हैं। मुझे पता चला है कि उसे शादी नहीं करनी और वह 12वीं बोर्ड में जिले में पहला स्थान पाने के बाद आगे पढ़ना चाहती है।
क्या आप समस्या सुलझा सकते हैं?' एक घंटे के अंदर, इस उपनगर में एसपी, डीएसपी समेत कई पुलिस अधिकारी पहुंच गए। माता-पिता ने भी बेटी की शादी करने में अनिच्छा जताई लेकिन प्रस्तावित शादी के पीछे गरीबी को कारण बताया। शादी रद्द हो गई और एसपी ने सरस्वती से पूछा, 'तुम आगे पढ़ना चाहती हो, बताओ कहां पढ़ना है?' उसने जिले के एक प्रसिद्ध कॉलेज का नाम लिया, जहां वह कम्प्यूटर साइंस में प्रवेश लेना चाहती थी।
स्वाभाविक है कि उसे एक फोन पर ही प्रवेश मिल गया क्योंकि इसकी अनुशंसा खुद राष्ट्रपति ने की थी। प्रवेश के बाद एसपी कलियामूर्ति ने सरस्वती से पूछा, 'राष्ट्रपति को तुम्हारा केस कैसे पता चला?' उसने तुरंत जवाब दिया, 'मैंने सीधे उन्हें फोन किया।' एसपी हैरान रह गए। कहानी कुछ यूं थी कि एक बार सरस्वती के जिले में राष्ट्रपति आधिकारिक यात्रा पर आए थे। तब वह उन चार छात्रों में शामिल थी, जिन्हें राष्ट्रपति से सवाल पूछने के लिए चुना गया था।
सरस्वती ने पूछा, 'मेरे जैसी लड़कियों का विकास कैसे हो सकता है?' डॉ कलाम ने एक शब्द में जवाब दिया, 'शिक्षा।' चूंकि चारों छात्रों ने अच्छे सवाल पूछे थे, राष्ट्रपति ने उन्हें अपना विजिटिंग कार्ड दिया और चले गए। जब सरस्वती की शादी इच्छा विरुद्ध तय हुई तो उसने यह बात अपने शिक्षक को बताई, जिन्होंने कहा, 'तुम सीधे राष्ट्रपति को ही फोन कर लो।' उसने साहस जुटाकर फोन किया और बाकी इतिहास है। कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
रिटायर होने के बाद 2014 में पुलिसवाले से तमिल वक्ता बने कलियामूर्ति एक कार्यक्रम में न्यू जर्सी गए। तब सरस्वती उनसे मिलने ह्यूस्टन से अपने माता-पिता और पति के साथ फ्लाइट से पहुंची। तब सरस्वती माइक्रोसॉफ्ट में 3 लाख रुपए प्रतिमाह के वेतन पर काम कर रही थी। मुझे सरस्वती की कहानी याद आई जब मैंने बुधवार को यह ट्रेंड देखा कि बड़ी कंपनियां अब टिअर 2 और 3 शहरों के कॉलेजों की लड़कियों को उनकी महत्वाकांक्षा, वफादारी और मेहनत को देखते हुए चुन रही हैं।
माना जा रहा है कि ये लड़कियां प्रक्रियाओं का पालन करती हैं और जानती हैं की सफलता के लिए प्रक्रिया क्यों जरूरी है। केवल सरस्वती को ही छोटे शहर से नहीं चुना गया, बल्कि पिछले कुछ वर्षों में छोटे शहरों के स्थानीय कॉलेजों की महिलाओं को नौकरी देने का ट्रेंड बढ़ा है।
लड़कियों के आम व्यवहार पैटर्न, जैसे बारीकियों पर ध्यान, निपुणता की चाह, विपत्ति के खिलाफ संघर्ष, एक साथ कई कार्यों के लिए समर्पण और दृढ़ निश्चय उन्हें टेक कॅरिअर में आगे बढ़ने में मदद कर रहे हैं और टेक कंपनियां भी इसी की तलाश में हैं।
लड़कियां सिर्फ बोर्ड परीक्षाओं में ही लड़कों की पीछे नहीं छोड़ रहीं, बल्कि प्लेसमेंट में भी उन्हें ज्यादा तवज्जो दी जा रही है। फंडा ये है कि अब छोटे शहरों के इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी पर्याप्त अवसर मौजूद हैं क्योंकि टेक कंपनियां टिअर टू शहरों से भी लड़कों से साथ बड़ी संख्या में लड़कियों को भी चुन रही हैं।
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