सम्पादकीय

अब सवालों की बौछार

Gulabi
17 Aug 2021 9:43 AM GMT
अब सवालों की बौछार
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अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता कायम हो जाएगी

us army leave afghanistan क्या अमेरिका का यह मकसद नहीं था कि वह तालिबान में एक प्रगतिशील शासन व्यवस्था कायम करेगा? इस काम में पूरी नाकामी के कारण ही अफगानिस्तान से अमेरिकी सैन्य वापसी की तुलना 'सैगोन मोमेंट' से की जा रही है। अफगानिस्तान में तो हार तभी हो गई, जब सैनिकों की वापसी हुई भी थी।

अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता कायम हो जाएगी, इसका अंदेशा तो था, लेकिन ये काम इतनी जल्दी और बिना किसी प्रतिरोध के हो जाएगा, ये अंदाजा दुनिया में शायद किसी को नहीं था। लेकिन अब जबकि तालिबान काबुल की सत्ता पर काबिज हो चुका है, अमेरिका के सत्ता तंत्र पर जैसे सवालों की बौछार होने लगी है। सबसे आम सवाल तो यही है कि आखिर 20 साल में खरबों डॉलर के खर्च और सैकड़ों जानों की कुर्बानी के बाद आखिर अमेरिका को हासिल क्या हुआ? जिस तालिबान को हटाने के लिए उसने ये सारा अभियान चलाया, वह 9/11 की 20वीं बरसी के पहले फिर से काबुल की सत्ता पर काबिज हो गया है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन ने कहा है कि अमेरिका वहां उन आतंकवादियों से बदला लेने गया था, जिन्होंने अमेरिका पर हमले की साजिश रची थी। ये काम दस साल पहले ही पूरा हो गया, जब ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने मार डाला। लेकिन प्रश्न पूछा जाएगा कि फिर उसके बाद के दस साल अमेरिकी फौजें अफगानिस्तान में क्या कर रही थीं?
क्या उसने यह मकसद घोषित नहीं कर रखा था कि वह तालिबान में एक स्थिर और प्रगतिशील शासन व्यवस्था कायम करेगा? इस काम में पूरी नाकामी के कारण ही अफगानिस्तान से अमेरिकी सैन्य वापसी की तुलना 'सैगोन मोमेंट' से की जा रही है। वियतनामी जनता के ऐतिहासिक संघर्ष के बाद दक्षिण वियतनाम की राजधानी सैगोन से अमेरिकी फौजें 1972 में वापस चली गई थीँ। उसके तीन साल बाद उत्तरी वियतनाम में स्थित कम्युनिस्ट बलों ने सैगोन पर कब्जा कर लिया। लेकिन अफगानिस्तान में हालत यह है कि तालिबान ने ऐसा तभी कर लिया, जब अमेरिकी सैनिकों की संपूर्ण वापसी हुई भी थी। इस बीच जिस ढंग से अमेरिका ने अपने सहयोगियों को उनके भाग्य पर छोड़ कर अपने लोगों को अफगानिस्तान से निकाला, तो उसके आधार पर पूछा जा रहा है कि अब अमेरिकियों के सैन्य अभियान पर कौन भरोसा करेगा? इस घटनाक्रम से ये धारणा और मजबूत हुई है कि अमेरिका के वर्चस्व की शक्ति इस सदी में आकर चूक रही है। पहले इराक और लीबिया, और अफगानिस्तान ने इस बात की पुष्टि की है। 2008 की मंदी के बाद उसके आर्थिक वर्चस्व पर सवाल कायम रहे हैं। तो कुल मिलाकर तालिबान की जीत को इसी पूरे संदर्भ में देखा जा रहा है। us army leave अफ़ग़ानिस्तान
By NI Editorial
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