सम्पादकीय

उपन्यास: Part 54- बेमौसम फल

Gulabi Jagat
4 Nov 2024 4:02 PM GMT
उपन्यास: Part 54- बेमौसम फल
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Novel: दोबारा बेटे से झटका खाने के बाद शायद मां को एहसास हो रहा था फिर भी वो बेटे के पास जाने का नाम लेती, कभी अपने ससुराल वाले घर का नाम लेती तो मिनी बस इतना कहती कि गए थे न, घर के बाहर से भगा दिए आप भूल गए क्या? मां कहती - "मुझे मेरे ससुराल वाले घर ले चलो। "
मिनी कहती - "मां! वो घर तो खंडहर हो चुका अब कैसे ले जाऊं?"
धीरे धीरे मां की आंखें कमजोर होने लगी। पास में रखा पानी का ग्लास भी मां देख नहीं पाती थी। मां को अब ढाई वर्ष हो रहे थे बिस्तर पर रहते। हर रोज मिनी का जो काम था वो रूटीन से चल रहा था। अब मिनी की तबियत खराब होने लगी थी। घर के लोग भी महसूस कर रहे थे कि अब मिनी भी टूटे जा रही है।
आदमी तन से नहीं वास्तव में मन से थकता है।
भैया ने सर का जो अपमान किया वो मिनी के लिए असहनीय था। मिनी आत्मग्लानि से भरती जा रही थी। उसके पास अब मां की बातें सुनने के अलावा कोई चारा नहीं था क्योंकि मां अब बचपन में लौट आई थी।
कभी वो पूरे बिस्तर पर घूम जाती थी। कभी उठने की कोशिश में गिरने की स्थिति में आ जाती थी। मिनी का ध्यान पूरे समय मां पर ही लगा रहता, ऐसे में स्कूल भी ,बच्चे भी, समाज भी सब कुछ नीरस सा लगने लगा था।
बस एक भगवान का ही सहारा था। मिनी भगवान के आगे जाकर प्रार्थना करती कि भगवान मां की और मिनी की रक्षा करे। घर के लोग भी स्तब्ध रहते थे। पता नहीं ईश्वर शायद मिनी के धैर्य की परीक्षा ले रहे थे। अब बेटे का सलेक्शन भी कॉलेज के लिए दूर में हो चुका था। मिनी ने बेटे से कहा - "बेटा ! नानी की ऐसी हालत है और तुम भी मुझे छोड़कर चले जाओगे तो मैं कैसे रह पाऊंगी ?"
बेटे ने मां की स्थिति समझी और पास के शहर में ही एडमिशन ले लिया। पर जब से बेटा गया तब से नानी का मन अपने नाती के पास ही लगा रहता।
जिस दिन वो याद करती उस दिन उसका प्यारा नाती बेटा भी बिना बताए ही घर आ जाता।
धोरे धीरे मां ने खाना बिल्कुल ही कम कर दिया। सर उनके लिए हर प्रकार की चीजें लाते पर वो जरा सा खाकर कहती कि अब भूख नहीं है। सर एक महीने से मां से रोज पूछते -" मां ! आज आपको क्या खाने का मन है बताइए मैं लेकर आऊंगा।"
मां रोज नए चीज का नाम लेती। सर हर हाल में लेकर आते । अगर मां बेमौसम फल का नाम भी लेती तो वो कहीं से भी ढूंढकर लाते। मां खुश हो जाती। एक दिन मां ने खीर का नाम लिया और उसी दिन मिनी का बेटा भी घर आ गया। उसने अपने हाथों से नानी को खीर खिलाया। नानी बहुत खुश हुई। बेटा देख रहा था कि मां लगातार ढाई साल से नानी की सेवा करती आ रही है। अब मां की तबियत भी खराब हो रही है तो दूसरे दिन सुबह सुबह बिना बताए उसने नानी का कमरा साफ़ कर दिया और अपने कॉलेज भी चला गया |

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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