सम्पादकीय

उपन्यास: Part49- नाईट लैंप

Gulabi Jagat
27 Oct 2024 11:27 AM GMT
उपन्यास: Part49- नाईट लैंप
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Novel: अगली बार जब सर आए तो मिनी ने कहा कि आखिर कब तक हम ऐसे भैया भाभी को परेशान करेंगे। कोई न कोई व्यवस्था तो हमे करनी होगी न। सर ने कहा- "ठीक है। हम लोग घर चलते है और अपनी बात वहाँ रखेंगे हो सकता है कोई हल निकल आए।"

उस समय सर की बड़ी दीदी और जीजा जी वही रहते थे। मिनी और सर ने दीदी से साथ चलने की विनती की पर दीदी ने ये कहकर मना कर दिया कि तुम्हारे भैया अभी अभी नए दुकान की शुरुआत किये हैं। ऐसे में मेरा उन्हें यहां अकेले छोड़कर जाना सही नही होगा। मिनी दीदी की बात सुनकर एक गहरी सांस भरकर रह गई।
बड़े जेठ ने गांव की एक छोटी सी लड़की को मिनी के साथ भेजने की व्यवस्था करवा दी।
अब तो मिनी को लगने लगा कि उसे अपने बच्चे से अधिक ध्यान गांव से लाई हुई बच्ची का रखना पड़ेगा। मिनी ने बच्ची से पूछा- "तुम्हारा नाम क्या है?" उसने कहा- "मानकी।"
मिनी ने कहा- "आज से हम तुम्हे मानसी कहेंगे ठीक है।"
बच्ची खुशी खुशी मिनी के साथ आ गई।
रात में मिनी ने सोचा अगर हमे कुछ हो जाये तो चलेगा पर मानसी को कुछ हो गया तो जेठ जी के भरोसे का क्या होगा फिर गांव में मान प्रतिष्ठा का सवाल खड़ा हो जाएगा। मिनी ने मानसी से कहा-" मानसी !तुम पलंग में सो जाओ। मैं नीचे जमीन पर सो जाती हूँ।"
फिर से बच्चे के साथ जमीन पर सोना। मिनी को अब अपने बच्चे के साथ - साथ मानसी का भी ध्यान रखना होता। मिनी को कभी - कभी लगता था- "हे भगवान! एक तो मैं खुद बच्ची ऊपर से दो-दो बच्चे। कैसे संभालुगी" पर एक-एक दिन बीतते गए। मिनी मानसी का भी ध्यान रखती और बेटे का भी। दोनो को तैयार करके खिलाने पिलाने के बाद स्कूल जाती । स्कूल से आकर देखती तो मानसी अपने मे मस्त रहती और बेटा कभी मिट्टी खाता तो कभी धूल में खेलता रहता। मिनी सिहर जाती थी पर करती क्या?
मिनी ने सोचा कि आगे कुछ पढ़ाई कर ले वर्ना वो भी नही हो पायेगा। मिनी ने एम. ए का फॉर्म भी भर दिया। दिन में तो पढ़ाई हो नही पाती थी। रात में ही समय मिल पाता था। रात में लाइट जलाने से मकान मालिक नाराज होते थे। मिनी ने पावडर दूध के डिब्बे से एक नाईट लैंप बना लिया और रात में कमरे के बाहर बैठकर पढ़ाई करती पर बच्चे की नींद खुल ही जाती वो घुटने टेकते हुए बाहर आकर मिनी के पास आधी रात को भी बैठा रहता जैसे उसे मां की बड़ी चिंता हो।
कभी-कभी मिनी को मायके की याद आती। कहाँ वो आराम से अपने कमरे में महारानी की तरह रहती थी। उसके लिए उसके कमरे में सारी सुविधाएं उपलब्ध थी। गद्देदार पलंग, सोफा, स्टडी टेबल चेयर, नाईट लैंप कपड़े की अलमारी, बूकसेल्फ़ ऊंचे से ऊंचा क्रीम पावडर , क्या नही था उसके पास सबकुछ था और आज वो कमरे से बाहर चटाई बिछाकर पावडर दूध के डिब्बे का नाइटलैम्प बनाकर पढ़ाई कर रही है। मिनी के आंख में आंसू आ जाते पर फिर बच्चे का ध्यान करके चुप हो जाती।
मानसी कुछ महीने मिनी के साथ रही । जब अपने गांव गयी तो मानसी इतनी बदल चुकी थी कि लोग उसे पहचान नही पा रहे थे। बड़ी ही खूबसूरत दिखने लगी थी मानसी।
उनके माता पिता कहने लगे। ऐसे में तो हमारी बेटी की जिंदगी खराब हो जाएगी क्योकि हम लोग मेहनतकश मजदूर लोग है और अगर हमारी बेटी सुकुमार हो गयी तो इसका भविष्य खराब हो जाएगा इसलिए इससे खूब काम कराया करो पर मिनी उससे क्या काम कराती। मिनी उसे अगर जरा सा भी काम करने कहती तो वो रोने बैठ जाती।
अब मानसी को देखकर स्टाफ के लोग भी कहने लगे कि उसे वापस उसके घर पहुचा देने में ही भलाई है क्योंकि वो ऐसे आराम की जिंदगी जी रही है जो उसके लिए बाद में दुख का कारण हो सकता है। उनके परिवार में लड़की की शादी भी जल्दी करने का रिवाज है।
मिनी ने गहराई से सोचा की वो क्या करे। मिनी ने उसे पढाने की भी कोशिश की पर वो हर बात में रोने लगती। उसे सिर्फ अपनी धुन में रहना अच्छा लगता था। कभी मिनी स्कूल से आती तो देखती कि वो पावडर लिपस्टिक में मस्त रहती और बेटा क्या कर रहा है इससे उसको कोई मतलब नही रहता था,अब मिनी को लगने लगा कि वो वाकई उसकी जिंदगी बिगाड़ रही है। ससुराल के डर में उसे कुछ कहने में भी मिनी को डर लगता था और वो बड़ी भी हो रही थी। आखिर मिनी ने उसे वापस उसके घर पहुचा दिया,उसके बाद गांव की बहुत सारी लड़कियां मिनी के साथ आने को तैयार थी पर मिनी की दोबारा हिम्मत ही नही हुई किसी लड़की को साथ लेकर आने की। अब बेटा लगभग एक साल का हो गया था।..................क्रमश.....

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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