सम्पादकीय

उपन्यास: Part47- कर्म प्रधान दुनिया

Gulabi Jagat
26 Oct 2024 12:10 PM GMT
उपन्यास: Part47- कर्म प्रधान दुनिया
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Novel: मिनी स्कूल तो जाती थी पर उसे हर पल भय सताता था इस बात का कि पता नही, घर वाले कब शादी कर दे । घर मे खूब जोर शोर से रिश्ते ढूंढे जा रहे थे। मिनी का चयन इसलिए आसानी से हो गया था क्योंकि उसके पास सारे प्रमाण पत्रों के अलावा अनुभव प्रमाण पत्र थे। बारहवीं के बाद उसने स्कूल में जो निशुल्क शिक्षा दी थी ,उसी वजह से उसे आसानी से जॉब मिल गयी थी।
वास्तव में ये दुनिया कर्म प्रधान ही है और कर्मो के फल हमे प्राप्त होते ही है चाहे
अच्छे कर्म
हो या बुरे, उसके फल का भोग करना ही पड़ता है। इसका मतलब यही हुआ न कि हम जो कुछ भी करते हैं वो अपने लिए करते है। दुसरो के लिए कुछ नही करते।
शासन का नियम भी कब बदल जाये इसका भी पता नही चलता। दो महीने बाद गर्मी की छुट्टियां लग गई। अब अगले सत्र के लिये उसी पोस्ट के लिए फिर से चयन की प्रक्रिया से गुजरना था। घर मे शादी की तैयारियों ने जोर पकड़ लिया था। मिनी को लगा पिछली बार तो दीदी के कारण फार्म जमा हो गया था पर अब घरवाले कभी राज़ी नही होंगे। घरवाले मिनी को बाहर घुमाने ले कर गए थे। वहां समाज का पहला युवक युवती परिचय
सम्मेलन का
आयोजन किया जा रहा था। चाचा जी इस आयोजन के प्रमुख सूत्रधार थे इसलिए अपने साथ पूरे परिवार की लेकर गए थे। रिश्ते के चक्कर मे एक दो दिन वहाँ रुकना भी हुआ। वहाँ एक बहुत अच्छे पंडित जी रहते थे। पंडित जी से मिनी की कुंडली दिखाई जा रही थी। पंडित जी ने कहा- मिनी को गुरुवार का व्रत रखना चाहिए। मिनी ने कहा-वो तो मैं रखती हूं। फिर पंडित जी ने कहा कि मिनी को कोई बहुत अच्छी जॉब मिलने वाली है। पंडित जी बोल ही रहे थे , उसी वक्त मौसा जी का फोन आया । उन्होंने कहा कि कल ही मिनी को मेरे घर लेकर आओ। मैं उसे फार्म भरवाना चाहता हूं । फार्म भरने की लास्ट डेट कल ही है।
आनन फानन में मिनी को मौसा जी के घर लेकर गए। अब वहा मौसा जी के कारण घर के लोगो को मना करते नही बना। मिनी ने फार्म भरे और पूर्व अनुभव के कारण वहां भी उसका चयन हो गया मगर पोस्टिंग इतनी दूर हुई कि, वहाँ दिन भर में सिर्फ एक बस चलती थी। अगर वो बिगड़ गयी तो आने जाने के कोई और साधन नही थे। जंगली इलाके में नदी के किनारे एक छोटा सा गांव था।
अब फिर घर के लोग परेशान होने लगे और अब तो तनाव इतना बढ़ गया कि घर वाले भेजने को तैयार नही ।
चाचा जी भी अब तो मिनी को रोकने लगे। कहने लगे - "मिनी! तुम जंगली इलाके में कैसे रहोगी? जितना तुम्हे वेतन मिलेगा मैं उतना तुम्हे हर माह दे दिया करूंगा पर तुम मत जाओ।" पर मिनी को तो ये पता था कि ये विरोध तो होगा ही। मिनी ने मौसी मौसा जी की मदद से वहाँ स्कूल जॉइन कर लिए और एक घर भी किराए से ले लिया। ये वही घर था जहाँ रहते हुए मिनी ने बीएड की परीक्षा भी दी। मिनी की शादी भी हो गयी और अब एक बच्चे को लेकर वो बिल्कुल नई जगह पर आ कर फर्श पर चटाई बिछाकर सोने की कोशिश कर रही है।
माँ तो रात में ही मिनी को बच्चे के साथ छोड़कर घर वापस लौट गई। मिनी ने एक गहरी सांस ली। आज उसे एहसास हुआ इस बात का कि अब वो स्वयं भी माँ बन चुकी है। ..........क्रमशः

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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