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- उपन्यास: Part 46- तीन...
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Novel: बहुत मुश्किल से मिनी का एडमिशन हॉस्टल में हो पाया । मिनी अब हॉस्टल में रहने लगी। 3 वर्ष उसने हॉस्टल में बिताए । ये तीन वर्ष माँ के लिए 3 युग के समान थे।
पहले जब मिनी के शिक्षको ने मिनी से पूछा था कि अगर आपके पापा आपको नही पढ़ाना चाहते तो कोई रिश्तेदार भी तो होंगे, उनसे क्यों नही कहती पढ़ाने को ?
तब मिनी इतना ही कहती कि सर मैं अपने कारण किसी को परेशान नही करना चाहती पर अब तो चाचाजी की इज़्ज़त का सवाल था। मिनी का सारा खर्च चाचा जी वहन करते थे परंतु चाची जी को ये बात असहनीय लगती थी। चाची जी की कोई संतान नही थी। एक बच्चा चाचा जी ने गोद लिया था पर चाचा जी जब भी मिनी को या मिनी के भैया को प्यार करते तो चाची जी की नाराजगी चरम सीमा में होती थी। ये बात मिनी जानती थी पर चाचाजी, चाची जी की नाराजगी को अनदेखा कर देते थे, और चाचा जी की खुशी के कारण घर के बाकी लोग भी चाची जी के रूखे व्यवहार को सह लेते थे। मिनी ने बड़ी मुश्किल से 3 वर्ष पूरे किए थे। तीसरा वर्ष पूर्ण करने के बाद मिनी , एम. एस सी. के लिए फार्म भरकर जैसे ही घर आई मोहल्ले की दीदी ने मिनी को रात में एक फार्म देते हुए कहा- "मिनी! ये फार्म, मैं और मेरी बहन दोनो भर रहे है, एक एक्सट्रा फार्म आ गया है तो सोची तुम्हे दे दूं। इसे तुम भरकर दे दो, सबमिट करने का लास्ट डेट कल ही है, मैं तुम्हारा फार्म भी सबमिट करवा दूँगी।"
मिनी ने फार्म भर कर दीदी को दे दिए। कुछ दिनों के बाद दीदी घर आई। दीदी बड़ी दुखी लग रही थी। दीदी ने बताया--" मिनी! तुमने जो फार्म भरे थे, उससे तुम्हारा सलेक्शन हो गया परंतु मेरा और मेरी बहन दोनो का नही हुआ।" मिनी को दीदी की बात सुनकर बहुत झटका लगा।
वास्तव में दोनो दीदी को नौकरी की सख्त आवश्यकता थी परंतु चयन हुआ मिनी का। अब मिनी बड़ी पेशोपेश में पड़ गयी। उसे लग रहा था अगर देने की चीज़ होती तो वो कहती कि दीदी मुझे नही चाहिए आप ले लीजिए पर ये संभव नही था। मिनी ने दीदी को धीरज दिया परंतु खुद दुखी हो गयी। अब उसे लगने लगा , मैं एम. एस सी. करूँ कि नौकरी ?
मिनी ने बहुत सोचा। बहुत लोगों से सलाह भी ली। जितने लोग उतनी बातें। किसी ने कहा- "मिनी तुम एम एस सी कर लो। पढ़ने का मौका बार-बार नही मिलता।" किसी ने कहा- "तुम नौकरी कर लो, मिली हुई नौकरी को मत ठुकराओ।"
एक तरफ चाची जी के ताने याद आते थे। एक तरफ चाचा जी की मजबूरी याद आती थी। लेकिन जब दोनो दीदी का आँसू से भरा चेहरा याद आता था तो मिनी कांप जाती थी। उसने सोचा कि जिस नौकरी के लिए दीदी रो रही है उसी नौकरी को ठोकर मार देना बहुत ही गलत होगा। हालांकि मिनी को पता था कि घर वाले मिनी को नौकरी करवाने के लिए कभी भी राजी नही होंगे । जब मिनी ने फार्म भरे थे तो घर मे किसी को पता भी नही था।
अब जब नौकरी की बात करेगी तो घर में तूफान आने की स्थिति निर्मित हो जाएगी । हुआ भी बिल्कुल वैसे ही। घर मे सारे लोग मिनी को समझा-समझा के थक गए तो माँ ने मोहल्ले की औरतों को मिनी को समझाने के लिए नियुक्त कर दिया।
कभी जब मिनी नाराज़ होकर खाना नही खाती थी तो मोहल्ले की सारी महिलाएं मिनी को मनाने आ जाती थी क्योंकि पूरा मुहल्ला मिनी का परिवार था। मोहल्ले में एक भाभी जी किराए में रहती थी , अंत मे उन्होंने मिनी से कहा- "मिनी! मैं ये कहती हूँ कि मिया जी घर के सारे सामान लाये और पत्नी खुशी- खुशी पका कर दे, इससे आराम की जिंदगी तो कोई और हो ही नही सकती। फिर तुम क्यों नौकरी करना चाहती हो ? कुछ दिनों बाद अच्छे घर मे तुम्हारी शादी हो जाएगी तुम घर मे आराम से रानी की तरह जीवन बिताना। फिर ये झंझट मोल लेने की क्या आवश्यकता है ?"
मिनी ने भाभी की बातें सुनी पर फिर दोनो दीदी का मायूस चेहरा आखों के सामने आने से मिनी सोच में पड़ जाती। इधर एम एस सी. के लिए भी उसका चयन हो चुका था।
मिनी ने बहुत सोचा फिर उसने दीदी के प्रयास को निष्फल नही करने का फैसला कर लिया। मिनी ने ठान लिया कि वो हर हाल में जॉब करेगी।
घर मे बहुत विरोध हुआ पर मिनी नही मानी। अब मिनी को रोज़ घर से बस में 25 कि. मी. का सफर करके और 3 कि.मी.पैदल चलकर, गांव के एक स्कूल में पढ़ाने जाना था। मिनी तो कभी सब्जी लेने को मार्केट भी नही गई थी। घर मे सभी ने नाराजगी में कह दिया कि हम लोगो मे से कोई भी तुम्हारा साथ नही देगा। तुम जानो तुम कैसे आना जाना करोगी
पर मिनी ने जो ठान ली तो ठान ली। तब तो कोई भी अपनी बेटी को नौकरी करवाने की सोच भी नही सकता था। माँ को भी मिनी की चिंता सताने लगी परंतु माँ इसलिए मिनी के साथ थी क्योंकि मिनी को घर से ही आना जाना था और मिनी के ऊपर माँ को पूरा भरोसा भी था क्योंकि मिनी ने कभी माँ का भरोसा नही तोड़ा था और समय की मिनी पाबंद थी। कभी भी मिनी को घर से बाहर जाना होता था तो माँ से जितने समय लौटने को कह कर जाती ठीक उस वक्त घर पहुँच ही जाती थी और अगर कोई मिनी को समय देकर उस वक्त पर न पहुचे तो मिनी का गुस्सा परवान चढ़ जाता था। आखिर घर की इकलौती लाडली बेटी जो ठहरी।
मिनी को पता था कि घर के लोगों को उसकी बड़ी फ़िक्र रहती है। आखिर इन सभी परिस्थितियों के बावजूद मिनी ने एम एस सी छोड़कर, स्कूल जॉइन कर ही लिया।
माँ ने तो सहमति दे दी पर माँ को फिर समाज से ताने मिलने लगे। किसी ने तो ये भी कह दिया कि भरा पूरा घर होते हुए भी बेटी की कमाई खा रही है। माँ सब कुछ सुनकर भी एक गहरी लंबी सांस भर कर चुप रह जाती थी.........................क्रमशः
रश्मि रामेश्वर गुप्ता
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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Gulabi Jagat
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