सम्पादकीय

उपन्यास: Part40- प्रसूता की देखभाल

Gulabi Jagat
18 Oct 2024 2:59 PM GMT
उपन्यास: Part40- प्रसूता की देखभाल
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Novel: बेटे के आने से घर मे खूब खुशियाँ मनाई गई। सारे रस्म रिवाज़ निभाये गए। अब शुरू हुई प्रसूता की देखभाल। इस डर में कि मिनी को कुछ हो न जाये बहुत सख्ती से उसकी देखभाल की गई। जो तरीके सदियो पहले प्रसूता की देखभाल में अपनाए जाते थे बिल्कुल वही तरीके अपनाए गए। तमाम तरह की जड़ी-बूटी को डालकर उबाली गयी पानी , पीने के लिए अलग और नहाने के लिए अलग। खाने के लिए अलग जड़ी बूटी वाली लड्डू, मुनगा और हर प्रकार की बड़ी वाली सब्जी। बिलोई भात जो कि बहुत ही स्वादिष्ट होता था। शुद्ध घी का अत्यधिक प्रयोग किया गया । गर्मी के दिन में भी मिनी के कमरे में अलाव जलाए जाते थे। अजवाइन का धुआं, ठंडा पानी छूने की भी मनाही आदि आदि। कभी -कभी मिनी प्यास से तड़प जाती थी। मिनी को हाथ धोने के लिए भी पानी नही दी जाती थी। घर के सभी बच्चों को भी हिदायत दे दी गयी थी कि अगर चाची पानी मांगे तो हरगिज़ नही देना। मिनी तो एक कमरे में ही रहती। और पूरे समय मिनी पर नज़र रखी जाती की वो धोखे से भी ठंडे पानी को छू न ले।
मिनी ने काफी दिनों तक सारे नियमो का पालन किया पर जब बर्दाश्त से बाहर हो गया, तब एक दिन मिनी ने बगावत कर दिया। उसने कहा कि अगर मुझे हाथ धोने के लिए पानी नही देंगे तो मैं कोई भी दवाई नही खाऊँगी। पूरे घर मे जैसे भूचाल आ गया। उस दिन सासूमाँ को भी मिनी के ऊपर गुस्सा आया।
घर के सभी बड़ो तक बात पहुच गई। फिर सर के बड़े पापा की बेटी मतलब दीदी जो कि उम्र में काफी बड़ी रही और जिन्हें मिनी को खाना खिलाने की जिम्मेदारी दी गई थी, उन्होंने सब को समझाया।
दीदी ने सबसे कहा - "देखो ! बहु पढ़ी लिखी है, समझदार है, वो ऐसा कोई भी काम नही करेगी जिससे बच्चे को कोई नुकसान हो। जब मिनी बच्चे की साफ सफाई करती है तो उसे हाथ धोने के लिए पानी की जरूरत होती है। बस इतनी सी बात है।"
शुक्र है दीदी के कहने पर हाथ धोने के लिए पानी दिए गए। मिनी की हालत एक दिन प्यास में इतनी खराब हो गयी कि वाशरूम में रखे पानी को भी पीने को विवश हो गयी थी। सर से तो मिलने ही नही दिया जाता था फिर सर को इन सब नियम कानून का क्या पता । मिनी को लगता था -"हे भगवान! ये किस प्रकार का प्रेम है?"
जो भी हो पर दीदी बहुत प्यार से रोज़ समय पर बिलोई भात और मूंनगा बड़ी की सब्जी खिलाती थी। दीदी के प्रेम में भीगा वो भोजन बहुत ही स्वादिष्ट लगता था। ये घर वालो का प्रेम था कि मिनी को बहुत हिफाज़त से रखना है और साथ ही डर भी था कि अगर बहु को कुछ हो गया तो लोग क्या कहेंगे इसलिए उसे ज़रा सा भी नुकसान नही होना चाहिए।
जेठानियाँ देख देखकर मज़ा लेती थी क्योंकि उनके बच्चे हॉस्पिटल में हुए थे इसलिए उनके साथ ऐसा कुछ भी नही किया गया था।
मिनी के पूरे चेहरे पर दवाइयों की गर्मी से दाने निकल आये थे। बेटे की गर्मी के दिन में भी खूब सिकाई की जाती थी। बेटा चीख़-चीख कर रोता था। नहलाने को दाई मां आती थी बेटा उनके हाथ मे जाते ही रोने लगता था। मिनी से सब देखा नही जाता था।
कुछ दिन के बाद जब कमरे से बरामदे में आने की इजाज़त मिली , धीरे से मिनी ने कहा - "दाई मां! अब मैं बच्चे को नहलाऊंगी।"
इस पर भी घर मे विवाद होने लगा। सब कहने लगे - "तुम्हे आता भी है नहलाना? अगर बच्चे को कुछ हो गया तो उसकी जिम्मेदार तुम्ही होगी।" मिनी ने कहा -"ठीक है।"
कुछ दिन घर के सारे लोग नाराज़ रहे फिर जब देखे कि मिनी तो बहुत अच्छे से बच्चे को तैयार कर लेती है फिर माहौल कुछ ठीक हुआ। सासूमाँ अभी भी मिनी का बहुत खयाल रखती थी।
धीरे -धीरे मिनी भोजन बनाने लगी। सासूमाँ मिनी के भोजन को पहले स्वयं चखकर देखती थी फिर मिनी से कहती कि अब जाओ मिनी गरम-गरम ही खाना । ठंडा भोंजन नही करना नही तो बच्चे को नुकसान होगा। बच्चे को सब लोग हाथो हाथ रखते थे.....क्रमशः


रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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