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- उपन्यास: Part 37-...
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Editorial: मिनी अब अपने मायके की परिधि में थी। यहाँ उसे ससुराल का मान रखना था। उसे फिक्र थी इस बात की कि धोखे से भी वो कोई ऐसी बात न कह दे जिससे मायके वालों के दिल को ठेस पहुचे। मिनी को ये भी मंजूर नही था कि उसके ससुराल के किसी भी सदस्य को लोग बुरा कहे परंतु मां से कोई बात भला छिपी रह सकती है क्या? वो तो बच्चे की शक्ल देख कर ही सारी बातें जान लेती है। ससुराल की जब बाते होती तो मिनी अधिकतर चुप्पी साध लेती थी। एक दिन मिनी ने माँ को बातों ही बातों में पूछा--- "माँ ! मुझे ये समझ में नही आया कि मेरी सासूमाँ ने मुझे आते समय 5 रुपये क्यों दिए ?"
मां ने पूछा---"मिनी ! ये बताओ कि तुमने अपनी सासूमाँ को क्या दिया?" मिनी ने कहा-- "मैंने तो कुछ नही दिया।" मां ने मिनी को डाँटते हुए कहा- "मिनी! तुम्हें शर्म आनी चाहिए। तुम्हारी सासूमाँ ने घर में रहते हुए भी तुम्हे इतने प्यार से 5 रुपये दिए और तुमने नौकरी करते हुए भी सासूमाँ को कुछ भी नही दिया। ये कितनी गलत बात है। अब से तुम जब भी ससुराल जाओगी सासूमाँ को अपनी तनख्वाह में से कुछ पैसे जरूर देकर आना।" माँ ने मिनी को समझाया- "बेटा! पैसे की जरूरत बुढ़ापे में सबसे अधिक होती है। तुम सोचो जरा तुम्हारी सासूमाँ को कौन पैसे देता होगा ? ससुर जी तो हैं नही। बेटे जो देते होंगे वही उनके पास होता होगा। मैं मानती हूँ कि वो घर में ही रहती हैं कही आती जाती नही पर पैसा बहुत बड़ा सहारा होता है। किसी के पास पैसा होता है तो उसके पास हिम्मत भी होती है।"
मिनी को मां की बातें समझ में आ गयी। अब मिनी जब भी ससुराल जाती तो सासूमाँ को चुपके से कुछ पैसे जरूर देकर आती। हालांकि सासूमाँ लेने से इनकार करती पर जब मिनी कहती- "मां! ये मेरी तनख्वाह के पैसे है इसे आपको रखना ही होगा तो सासूमाँ खुश होकर रखती और मिनी को खूब सारा आशीर्वाद देती।" ससुराल के आंगन में सदियों से विराजमान शिवजी की पूजा मिनी को करते देखती तो सासूमाँ बहुत ही खुश होती। मिनी के लिए ससुराल में सासूमाँ के प्रेम से बड़ा धन और कुछ भी नही था।
कुछ दिनों बाद मिनी को पता चला कि उसके ससुराल में डाका पड़ गया। कुछ डकैत शाम के समय घर और दुकान में हमला बोल दिए। ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है जो घर के सभी सदस्य सुरक्षित रहे परंतु दुकान में कुछ सामान लेने आई एक लड़की के पैर में कुछ छर्रे लगे जिससे वो घायल हो गई। बड़े जेठ ने काफी दिनों तक उसका इलाज करवाया तब जाकर वो ठीक हो पाई। डकैतों को अधिक कुछ नही मिला। दुकान की दराज़ में रखे कुछ पैसे और कुछ चांदी के सिक्के वो लोग ले गए। चौथे जेठ नवरात्रि का व्रत रखते थे। माँ अम्बे ने उन्हें शक्ति दी। उन्होंने घर का भारी भरकम द्वार बहुत शीघ्रता से बंद कर दिया जिससे घर की महिलाएं सुरक्षित रही वर्ना बहुत गज़ब हो जाता। डकैतों ने बाहर से ही ऊपर के कमरों में बंदूके चलाई। जिससे कमरे में रखा ड्रैसिंग टेबल का शीशा वगेरह टुटा परंतु किसी व्यक्ति को कुछ नही हुआ। पूरा घर पुलिस की छावनी में तब्दील हो गया। मिनी ससुराल गई सबसे मिलकर आई। ससुराल के सभी सदस्यों में दहशत बना हुआ था।
काफी दिनों के बाद गिरोह के कुछ लोग पकड़े भी गए। उनसे पूछताछ की गयी तो पता चला कि उन्होंने इसलिए यहाँ हमला किया क्योंकि उन्हें पता चला कि यहाँ बहुत अमीर घर से बहू आई है और दहेज़ के बदले इन्होंने जरूर कैश लिए होंगे। सर् ने गांव आकर जब मिनी को बताया तो मिनी का दिल और भी बैठ गया। उसे लगने लगा कि पता नही अभी और क्या-क्या होना बाकी है..........................क्रमशः
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Gulabi Jagat
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