सम्पादकीय

उपन्यास: Part 28- अपमान का घूंट

Gulabi Jagat
7 Oct 2024 10:27 AM GMT
उपन्यास: Part 28- अपमान का घूंट
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Novel: मिनी के परिवार वाले हर बात पर तीसरे नं के जेठ , जेठानी और जेठानी के माता-पिता पर आश्रित थे क्योंकि बड़े जेठ सीधे बात करने को तैयार ही नही थे। वो वही सुनते थे जो जेठानी के पिता कहते थे। मिनी के घर वाले कुछ संदेश देते वो ससुराल पहुच कर कुछ और रूप ले चुका होता। मिनी के घर वाले छोटे-छोटे पर्व पर मिनी के ससुराल कुछ भिजवाते तो ससुराल में कुछ और ही पहुँचता क्योकि सामान भी जेठानी के घर ही भिजवाना होता था। सर् से बोला जाता - "देख ! तेरे ससुराल से यही सामान आया है।" सर को ऐसी ठेस लगती ही रहती पर मिनी और सर के बीच कभी और कोई बात नही हुई।
इधर ससुराल का रवैया देखकर मिनी आहत रहती। बड़ी मुश्किल से मिनी के घरवाले दिन काट रहे थे। मां हमेशा कहती -" कुछ नही होता बेटा! ये सब होते रहता है। हम लड़की वाले हैं, हमे सब सहना होगा क्योकि लड़के के पिताजी नही हैं। अगर उनके पिताजी आज होते तो ये स्थिति निर्मित नही होने देते पर अब क्या कर सकते हैं।" इस दौरान दोनो पक्ष को मिलते रहे सिर्फ ठेस, अपमान और आहत मन।
बड़ी मुश्किल से सगाई की घड़ी आई। बसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त पर सगाई रखी गई। दोनो पक्ष के लोग तैयारियों में लगे हुए थे। राधाकृष्ण के मंदिर में ऊपर बारातियों के ठहरने की व्यवस्था की गयी थी। नीचे घरातियों की। बिल्कुल शादी जैसा माहौल था। लग ही नही रहा था कि सगाई है, ऐसा माहौल था जै
से शादी है ।
माँ ने कुछ दिनो पहले ही घर में सभी बारातियों के लिए सगाई की मिठाईयां बनवाई जिसमे पारंपरिक मिठाइयां थी। बहुत मेहनत से बनने वाले खाजा, पपची , लड्डू वगैरह। मां खूब खुश थी। उन्हें लग रहा था कि बारातियों के स्वागत में कोई कमी न रह जाए। मां ने भोजन में सभी बारातियों को परसवाने के लिए बहुत अधिक मात्रा में खाजा , पपची, लड्डू वगैरह बनवाये ताकि किसी के लिए कम न हो जाए। खाने में क्या-क्या रहेगा मीनू बना। तब बारातियों को बैठा कर भोजन करवाना अधिक अच्छा माना जाता था। माँ ने पूरे जोर पकवान पर लगाए थे। तब मोहल्ले की बड़ी मां , चाची, मामी सब एक ही परिवार के थे। पूरा मोहल्ला अपना ही परिवार था। दादा जी लोग 7 भाई होते थे, उन्ही की पीढ़ियों के लोग रहते थे जिनमे पारिवारिक संबंधो के साथ-साथ आत्मिक संबंध भी होता था। मिनी के दादा जी छठवें नं के थे। परिवार काफी बड़ा था। व्यंजन तब परिवार की महिलाएं बनाया करती थी। मां ने सभी को बुलाकर अपने हाथो से सभी मिठाइयां बनाई थी। खाजा , पपची की सुंदरता और स्वाद , खुशबू सब देखते बन रही थी। पापा खरीदारी में और मेहमानों को बुलाने में भिड़े थे। भैया का काम बारातियों को ठहराने , सेवा सत्कार , हलवाई की व्यवस्था में लगे हुए थे। काफी दिनों पहले से सभी व्यस्त थे।
सगाई का दिन आया। शाम को बाराती आये । बारातियों की संख्या शादी जैसी ही थी क्यो न हो सबसे छोटे भाई की सगाई थी। बारातियों का स्वागत सम्मान हुआ। नाश्ता हुआ। फिर सभी सखियों के साथ वधु को ऊपर भेजा गया। वर पक्ष वालो ने सगाई की रस्म निभाई। वधु नीचे आ गई। अब वर की बारी थी कि उनको नीचे वधु पक्ष में भेजा जाय। वधु पक्ष वाले वर को बुलाकर सगाई की रस्म निभाते पर वर पक्ष वालो ने कहा - "पहले भोजन कर लेते है फिर वर को भेजेंगे।"
वधु पक्ष वालो को तो मानना ही था। सभी को भोजन करवाया गया। तब तक रात काफी हो चुकी थी। भोजन के बाद वर का इंतज़ार होने लगा। जेठानी के पिता जी उस समय जो बोले वही होता था। बड़े जेठ को उनका केवल अनुसरण करना होता था। वर पक्ष वालो ने कहा- "अभी मीटिंग होगी लड़की के पिताजी के साथ, फिर वर को भेजेंगे।"
पिताजी को एक कमरे में बुलाया गया। पूरा कमरा वर पक्ष के लोगो से भरा था। पापा को सभी बड़े बुज़ुर्ग समझा कर भेजे थे कि वर पक्ष वाले कुछ भी कहे आप शांत ही रहना। मीटिंग शुरू हुई और शुरू हुआ पापा को अपमानित करने का दौर। मिनी तो नीचे वधु पक्ष के साथ थी। पापा ऊपर वर पक्ष के साथ। बहुत देर तक पापा को अपमानित करने का दौर चलता रहा। वधु पक्ष वाले घबराते रहे। सब टेंशन में आ गए आखिर बात क्या हो रही है ऊपर ?
कुछ लोग मीटिंग वाले कमरे से बाहर खड़े होकर सुन रहे थे। पापा वहाँ सब के बीच बैठे-बैठे अपमान का घुट पीते रहे पर पापा ने बुज़ुर्गों की बात मानी उन्होने एक भी शब्द कुछ नही कहा सिर्फ सर झुकाए सुनते रहे। दो घंटे बाद जब पापा नीचे आये तो निष्कर्ष ये था कि जब सभी के लिए अभी खीर बनेगी तभी वर पक्ष के बड़े बुज़ुर्ग भोजन करेंगे उसके बाद वर को भेजा जाएगा। माहौल इतना खराब हो चुका था कि वधु पक्ष के लोकल मेहमान घर जा चुके थे। रात 1 बज रहा था। हलवाई की भट्ठी में आग भी कम हो गई थी।
अब भैया की परेशानी शुरू हो गयी। बेचारे हर वो जगह गए आधी रात को जहाँ जहाँ दूध मिलने की संभावना थी। रात को द्वार-द्वार भटके। कितने घर का दरवाजा खटखटाये। कितने लोगो को जगाया फिर भी उतने दूध का प्रबंध नही हो पाया क्योकि रात 1 बजे कस्बे में कैसे संभव होता। बेचारे भैया आकर दुखी हो कर जितना दूध मिला ले कर आये थे और बोल ही रहे थे कि हलवाई कहाँ है मां इतना ही दूध मिल पाया, उतने में जेठानी के भाई साहब जैसे देवदूत बनकर आये और साथ में खूब सारा दूध का पैकेट ले कर आये। देते हुए बोले तुम चिंता मत करो मैंने रखा था। शायद उनको अपने पिताजी की चाल का पहले से पता था।
इतने लोगों के लिए तत्काल खीर बनाई गयी। रात के 2 बजे तक पुनः भोजन करवाई गयी। इस पूरी घटना के दौरान वर का कही पता नही था। पूछने पर यही सुनने में आया कि वो कही गए हैं आ जाएंगे। जब सब लोगो का भोजन हो गया तब रात्रि के 2 बज रहे थे। वधु पक्ष के लोग वर का इंतज़ार करते बैठे थे। बड़ी मुश्किल से वर को वधु पक्ष में भेजा गया। तब वधु पक्ष में सिर्फ माँ थी जिनको अपने दामाद से मिलकर खुशी हो रही थी। थकान तो मां भूल चुकी थी। चेहरे पर कोई टेन्शन का भाव भी नही था। मां को देखकर बाकी मेहमान जो बचे थे उन्होंने भी सगाई की रस्म निभाई पर चेहरे तनाव पूर्ण वातावरण के कारण कुछ बुझे हुए थे। सर को इन सब घटनाओ का पता ही नही था। वो तो बड़े खुश होकर वधु पक्ष में आये थे। उनके मन को फिर ठेस लगी। उन्हें लगा कि हमने तो वधु के रस्म बड़े खुश होकर निभाये पर वधु पक्ष ने ये क्या किया?
जिन लोगो ने खिड़की से मीटिंग की बाते सुनी थी उन्होंने मिनी को आकर बताया कि जिस कदर पापा को सबके सामने बिठाकर सुनाया जा रहा था वो हम सबके लिए असहनीय था पता नही पापा इतनी देर तक कैसे बर्दाश्त करते रहे।
बारातियों को विदा करने के पहले शाल भेंट करने की परंपरा होती है। पापा ने बहुत ही अच्छे शाल बारातियों के लिए खरीदे थे। तीसरे नं के जेठ ने देखा तो भैया के ऊपर बरस पड़े। गुस्से से बोले- "यही शॉल दोगे तुम सबको? चलो अभी मेरे साथ दुकान मैं, दिलवाता हूँ तुम्हे कीमती शॉल।"
रात को दो बजे दुकान खुलवाई गयी। उस शॉल को लेकर भैया दुकान पर गए। सौभाग्य से वो दुकान जेठानी के परिवार वालो की थी और पापा ने शॉल भी वही से खरीदे थे। दुकान में दूसरी शॉल ढूंढी गयी। दुकानदार ने कहा- "दाऊ जी! माफ कीजियेगा इससे कीमती शॉल मेरे दुकान में नही है।"
भैया फिर उसी गट्ठर को लेके वापस आये। सभी को शॉल भेंट की गयी। बारातियों की विदाई तक सुबह के 6 बज रहे थे।
सर को ऊपर की मीटिंग" और खीर वाली घटना के बारे में कुछ भी पता नही था। शादी के बहुत दिनों के बाद मिनी ने सर से बड़ी हिम्मत करके पूछा - "जब ऊपर मीटिंग हो रही थी, तब आप कहाँ थे ?" मिनी को पता चला सर और उनके मित्र को भाभी अपने घर ले के चली गयी थी। मिनी ने पूछा - "इतनी देर तक आप वहाँ क्या कर रहे थे?"
मिनी को पता चला भाभी ने कहा- "तुम्हारे ससुराल में भोजन व्यवस्था सही नही है। तुम लोग यहाँ आराम करो। मैं तुम्हारे लिए अभी गरमा-गरम सब्जी और फुल्के बनाती हूँ।"
सर ने कहा- " आपको पता है , बेचारी भाभी ने तुरंत गरमा-गर्म सब्जी और फुल्के बनाये और हम दोनो को खिलाया।" मिनी को समझ नही आ रहा था, वो इस बात पर रोये या हँसे....................* क्रमशः
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