सम्पादकीय

उपन्यास: Part 25- छुट्टियों में स्कूल

Gulabi Jagat
4 Oct 2024 10:07 AM GMT
उपन्यास: Part 25- छुट्टियों में स्कूल
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Novel: मिनी को ये भय था कि उसने प्राचार्य महोदया से तो अनुमति ले ली है परन्तु घर में इस बात की क्या प्रतिक्रिया होगी पता नहीं फिर भी उसने घर में आकर सभी को बताया कि वो छुट्टियों में भी स्कूल जाने वाली है । एक पल के लिए सभी अवाक हो गए। परंतु सर को ये पता था कि जिस तरह के माहौल में मिनी रहती है उस माहौल से उसे कुछ देर के लिए दूर रहना नित्तान्त आवश्यक है ये सोचकर उन्होंने हामी भर दी। मिनी को बड़ी राहत मिली। विद्यालय के पीछे खूब सारी झुग्गी झोपड़ी और छोटे-छोटे मकान थे। विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे वहीं से आते थे। विद्यालय में अहाता नही था। शाम को विद्यालय परिसर असामाजिक तत्त्वों का डेरा हुआ करता था।
दूसरे दिन मिनी सुबह 7 बजे जब स्कूल पहुची तो देखा स्कूल से कुछ ही दूरी पर सुअर का मांस बिक रहा है, कुछ लोग खरीद रहे है। मिनी ने ऐसा दृश्य पहली बार देखा था। सांस रोक कर वो विद्यालय के अंदर गई । पूरा विद्यालय परिसर सुनसान। सिर्फ मोनिका अपनी सहेली के साथ खड़ी थी। मिनी से चाबी लेकर उसने कमरे को खोला और शुरू हुई पढ़ाई। मोनिका बड़े ही मन से सीख रही थी। मिनी को घर आते 9 बज रहे थे। अब प्रतिदिन 2 घंटे की पढ़ाई शुरू हो गई। रोज़ मोनिका अपनी सहेली के साथ निश्चित समय पर विद्यालय में खड़ी मिलती। मिनी ने दोनो को किताबें भी दी। प्रति दिन दोनो आते।
एक हफ्ते के बाद मोनिका की सहेली ने आने से मना कर दिया। उसे नया काम मिल गया था। उसे उसी समय पर किसी के घर में खाना बनाने जाना था परंतु मोनिका प्रतिदिन आने को तैयार। उसने कहा- "मैडम! मैं अकेली आऊंगी आपसे पढ़ने।"
मिनी ने भी कह दिया -"मैं तुम्हे अवश्य पढ़ाऊंगी।"
अब मिनी और मोनिका दोनो ही विद्यालय में रहते। पूरा परिसर सुनसान। जब मिनी पढ़ा रही होती थी तब कुछ लोग देखने जरूर आते थे कि मैंम कैसे पढ़ा रही हैं और ताक-झांक कर चले जाते थे। मिनी उन सबसे कहती थी कि अगर कोई लड़की या महिला पढ़ने की इच्छुक हो तो उसे इसी समय पर जरूर भेजें पर आया तो कोई नही बस मिनी और मोनिका दोनो ही रहते थे। मिनी को भय होता था, मोनिका के बारे में सोचकर और मोनिका को मिनी की चिंता रहती।
फिर भी दोनो बराबर आते रहे। दोनो को एक दूसरे का इतना खयाल कि जिस दिन मोनिका को नही आना रहता उस दिन वो अपने बेटे को भेजती बताने कि वो आज नही आएगी और जिस दिन मिनी नही आ पाती थी उस दिन सर से कहती थी कि मोनिका अकेली खड़ी होगी उसे बता दीजिए कि आज मैम नही आएंगी। सर स्कूल जा कर मोनिका को बता कर आते थे जिससे वो वहाँ अकेली अधिक देर तक खड़ी न रहे । दोनो के परिवार वाले समझते थे कि वहाँ अकेले रहना वास्तव में बहुत हिम्मत का काम था। मिनी और मोनिका के परिवार वाले भी दोनो का ध्यान रखते थे।
वास्तव में उन दिनों के सन्नाटे को मिनी कभी नही भूल पाएगी और मोनिका की लगन को भी क्योकि वो प्रतिदिन मिनी से पहले आकर खड़ी रहती। उसे भी मिनी की बड़ी चिंता रहती थी।
प्राचार्य महोदया भी मोनिका की कॉपी देखकर उसे पढ़ने को उत्साहित करती रहती थी। मोनिका खुश हो जाती थी।
मोनिका मिनी से पढ़ने के बाद घर जाती । घर में खाना बनाकर फिर विद्यालय आती तब उसे प्राचार्य महोदया से प्रोत्साहन मिलता। इस तरह वो अपना काम भी करती और पढ़ाई भी।
अब कभी जब माँ , भैया के घर ले जाने की जिद करती तो मिनी कहती कि मैं तो छुट्टियों में भी स्कूल जा रही हूँ तो कैसे ले जाऊंगी। माँ कहती रविवार को ले चल तो मिनी कहती कि मैं तो रविवार को भी जाती हूँ, आप मुझे रोज़ स्कूल जाते हुए देखती है ना ..................क्रमशः
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