सम्पादकीय

उपन्यास: Part 13 कला एवं साहित्य

Gulabi Jagat
21 Sep 2024 12:57 PM GMT
उपन्यास: Part 13 कला एवं साहित्य
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Novel: पतिदेव फिर भी इस फिराक में रहते कि मिनी को कही बाहर थोड़ी देर के लिए जरूर ले के जाएं जिससे मिनी के मन में कुछ और बातें तो आये। एक दिन शाम को दोनो एक रास्ते से गुज़र रहे थे। मिनी सुन रही थी। सर की बातों को,सर् कह रहे थे- "पता है मिनी! यहां पर भैया का ऑफिस है। भैया यहां की लोककला और लोकसंस्कृति को बचाने के लिए एक मंच की स्थापना किये है और लगातार कुछ न कुछ कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं।"
मिनी की उत्सुकता बढ़ गई। सर को अच्छे से पता था कि मिनी को कला और साहित्य से लगाव है। मिनी पूछने लगी- "आपको कैसे पता?" सर ने बताया कि वे भैया को बहुत पहले से जानते है और ये भी पता है कि बहुत अच्छे लोग इस मंच के सदस्य हैं। मिनी ने पूछा- "इसकी सदस्यता के लिए क्या करना होता है?" इतने में आफिस भी आ ही गई। सर ने कहा- "ये मुझे नहीं पता।"
सर ने देखा भैया ऑफिस में बैठे थे। सर ने कहा- "ये तो भैया ही बता सकते है।": मिनी ने सहसा कह दिया चलिए हम भी इसके सदस्य बन जाते हैं। सर ने बाईक रोकी और भैया के पास दोनो चले गए। सर ने भैया से मिनी का परिचय करवाते हुए बताया- "भैया! मिनी की भी कविताएं और आलेख अखबार में आते है।" भैया बहुत खुश हुए और फिर उस दिन से सर उस मंच के सक्रिय सदस्य बन गए। मिनी का ध्यान अपने दुख और दर्द से हटाने के लिए सर मंच के मासिक आयोजन में कभी-कभी मिनी को भी लेकर जाते थे।
इधर माँ की हालत देख-देख कर मिनी के दर्द छलक कर उसकी लेखनी में आते तो लोगों के मन को छू लेते। मिनी के लेख लोकप्रिय होने लगे। धीरे-धीरे लोगों के फोन आने लगे प्रशंशा भरे , उनकी बातें सर मिनी को बताते। कभी जब लिख नही पाती तो लोग मिनी के आलेख का इंतज़ार करते। ये सब बाते मिनी को रेगुलर लिखने के लिए प्रेरित करने लगी।
माँ के इस हालत में आने से पहले मिनी बहुत चंचल थी । हालांकि उसने जीवन में उतार-चढ़ाव देखे थे
पर कभी इस कदर निरा
श नही हुई थी। अब तो जैसे धीरे-धीरे हँसना भूलती जा रही थी। उसे याद आने लगा कभी-कभी बचपन में भी और शादी के बाद भी मिनी इतना हँसती थी कि हँसने के नाम पर उसे डाँट भी पड़ती थी। मायके में माँ डाँटती थी और शादी के बाद सर को मना करना पड़ता था। मिनी सोचने पर विवश हो जाती थी कि क्या मुसीबत है ये कि लड़कियों को खुलकर हँसना भी मना होता है। वो सर से पूछ बैठती थी कि आखिर मेरे हँसने से प्रॉब्लम क्या है ? सर समझाते कि हँसने से प्रॉब्लम नहीं है पर इस तरह हँसने से लोग अच्छा नही समझते। सर की बात सुनकर मिनी की हँसी अपने आप कट्रोल हो जाती और उसे याद आती थी, माँ की बातें पर अधिक हँसने से माँ क्यों मना करती थी ये माँ ने कभी नहीं बताया था।
घर की एकमात्र बिटिया होने के कारण मिनी का कुछ खास ख्याल रखकर उसका लालन-पालन किया गया था। इसके लिए मां को ताने भी खूब सुनने पड़ते थे। माँ कभी मिनी को कोई काम करने नहीं कहती थी। मिनी सिर्फ अपने दादा जी के लिए छोटी-छोटी रोटी या कभी पकौड़े शौक से बना दिया करती थी। घर में सभी बडों के स्नेह और प्यार ने मिनी को बहुत ही कोमल बना दिया था। मां को ताने भी मिलते थे कि वे अपनी बेटी से कोई काम नही करवाती पर माँ इन सब बातों का परवाह कभी नही करती थी..................क्रमशः

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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