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By: divyahimachal
अविश्वास प्रस्ताव अब अतीत का मुद्दा बन चुका है। संसद की कार्यवाही भी अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई है, लेकिन मणिपुर और नकारात्मक राजनीति अब भी जल रहे हैं। उनकी लपटों के शांत होने के आसार अभी तो स्पष्ट नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर जो जवाब दिया था, वह भी संजीदा नहीं था, बल्कि उसमें खुन्नसी सियासत के भाव ज्यादा थे। प्रधानमंत्री ने कुछ ऐसे पुराने, गढ़े मुर्दे उखाड़े, जो फिलहाल देश के संदर्भ में प्रासंगिक नहीं हैं। वे 50-60 साल से भी ज्यादा पुरानी घटनाएं जरूर हैं। तब से लेकर आज तक भारत का चेहरा, सम्मान, स्थान, विकास सब कुछ बदल चुका है। देश की जनता बखूबी जानती है और उसके इस अधिकार का सम्मान भी किया जाना चाहिए कि वह किस दल, गठबंधन और नेता के प्रति अपना लोकतांत्रिक विश्वास व्यक्त करे अथवा अविश्वास जताते हुए किसे खारिज कर दे। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वक्तव्य में उल्लेख किया था कि 1972 के बाद पश्चिम बंगाल में कांग्रेस न तो सत्ता तक पहुंच पाई और न ही उसका मुख्यमंत्री चुना जा सका है। इसी तरह तमिलनाडु में 1962, ओडिशा और गुजरात में 1995, उप्र में 1985, नगालैंड में 1988 के कालखंडों के बाद जनता ने कांग्रेस के प्रति अविश्वास जताया है। यह तथ्य समूचा देश जानता है। इसकी तुलना मौजूदा अविश्वास प्रस्ताव से नहीं की जा सकती। प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु के रामेश्वरम और श्रीलंका के दरमियान ‘कच्चातीवू द्वीप’ का भी जिक्र किया था। करीब 285 एकड़ का यह भूखंड विवादित था और 1974 के एक समझौते के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसे श्रीलंका को सौंप दिया।
प्रधानमंत्री ऐसे फैसले लेते रहे हैं, क्योंकि उन्हें जनादेश प्राप्त था। बाद के प्रधानमंत्री चाहें, तो उन फैसलों को बदल भी सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने सवाल किया है कि वह तोहफा श्रीलंका को क्यों दिया गया? मौजूदा द्रमुक मुख्यमंत्री स्टालिन बार-बार पत्र लिख कर आग्रह कर रहे हैं कि भारत सरकार श्रीलंका से अपने द्वीप को वापस ले। तब 1974 में भी द्रमुक मुख्यमंत्री करुणानिधि थे। दरअसल इस द्वीप को मछुआरों के लिए ‘वरदान’ माना जाता है, लिहाजा यह तमिल राजनीति का आज भी महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसके अलावा, 5 मार्च 1966, मिजोरम राज्य के लिए ‘काली, हमले की तारीख’ है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने देश की ही वायुसेना को आदेश देकर मिजोरम के भारतीय नागरिकों पर हवाई हमला कराया था। कारण कुछ भी रहा हो, लेकिन प्रधानमंत्री ऐसी हद तक कैसे पहुंच गईं? मिजोरम में आज भी इसे ‘काला दिन’ के तौर पर याद किया जाता है और लोग प्रतीकात्मक विरोध-प्रदर्शन भी करते हैं। अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अमृतसर के ‘पवित्र स्वर्ण मंदिर’ में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ का भी जिक्र किया था। तब भी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। मौजूदा प्रधानमंत्री इन पुरानी घटनाओं का उल्लेख कर कांग्रेस की राजनीति पर प्रहार करना चाहते थे कि उन सरकारों की सोच क्या थी? दरअसल अविश्वास प्रस्ताव मणिपुर पर केंद्रित रहना चाहिए था। वैसा न तो विपक्ष ने किया और न ही प्रधानमंत्री ने निभाया। लोकसभा में चुनावी माहौल बना रहा। प्रस्ताव का गिरना तय था। यही उसकी नियति थी। राजनीतिक पक्षों को क्या हासिल हुआ, यह वे ही खुलासा कर सकते हैं।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि पूर्वोत्तर राज्य उग्रवादी संगठनों की देश-विरोधी गतिविधियों के कारण शेष भारत की मुख्य धारा से कितना कटे रहे हैं! अपहरण, फिरौती, वसूली और हत्याएं उनके रोजगार रहे हैं। ‘मां भारती’ का यह भू-भाग वाकई विभाजित और रक्तरंजित रहा है। कमोबेश अब वे उग्रवादी मुख्य धारा में लौट कर, राजनीतिक तौर पर, सक्रिय हुए हैं। हम देश का 76वां ‘स्वतंत्रता दिवस’ मनाने जा रहे हैं। यदि अब भी मणिपुर को संगठित, शांतिपूर्ण राज्य बनाने के संकल्प की शुरुआत नहीं हो सकी, तो आजादी अधूरी और फीकी रहेगी। संकल्प का यह रास्ता तो प्रधानमंत्री को ही दिखाना पड़ेगा, क्योंकि वह ही लालकिले से देश को संबोधित करेंगे। सरकार को अपना ध्यान बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई की समस्याएं हल करने पर केंद्रित करना चाहिए। आज टमाटर 200 रुपए किलो तक बिक रहा है। आम आदमी की रसोई से यह जरूरी वस्तु गायब हो गई है। खेद की बात यह है कि यह प्रचार किया जा रहा है कि टमाटर खाने से बीमारियां होती हैं। समस्याओं पर सरकार को फोकस करना होगा।
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