- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- नेहरू नहीं, अब...
अंग्रेजों ने जब कलिकाता से राजधानी हटाने का निर्णय किया तो उन्होंने दिल्ली को नई राजधानी के लिए चुना। उसका एक कारण शायद यह भी था कि दिल्ली शताब्दियों से हिंदुस्तान की सत्ता का प्रतीक रही है। अब तक अंग्रेज़ों ने हिंदुस्तान के बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया था, इसलिए दिल्ली पर यूनियन जैक फहराना जरूरी था। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के सबसे बड़े प्रतीक वायसराय के रहने के लिए किस स्थान का चयन किया जाए, यह प्रमुख प्रश्न था। वायसराय लाल किला में रह सकते थे, जहां पहले मुगल बादशाह रहते आए थे। उससे भी पहले का पांडवों का किला तो रहने के काबिल बचा ही नहीं था। वह कभी भारतीयों की अपनी सत्ता का प्रतीक था। लेकिन अंग्रेजों ने अपने राज्य के लिए अपने नए प्रतीक गढ़ने का निर्णय किया, इसलिए रायसिना की पहाडि़यों पर कई एकड़ में विशाल वायसराय भवन बनाया। उसके ठीक सामने इंडिया गेट बनाया जिस पर इंग्लैंड के राजा जार्ज पंचम का बुत लगाया। भवन के दक्षिण में एक और विशाल भवन बनाया जो तीन मूर्ति के नाम से जाना जाता था। लेकिन जब ब्रिटिश सत्ता को हिंदुस्तान से जाना पड़ा तो नए हुक्मरानों के सामने प्रश्न उत्पन्न हुआ कि विशाल वायसराय भवन का क्या किया जाए। यह भवन भारत में विदेशी गोरी सत्ता का प्रतीक था। महात्मा गांधी के विचार तो अलग थे, लेकिन निर्णय यही हुआ कि वायसराय भवन में देश के राष्ट्रपति रहेंगे, इसलिए वह राष्ट्रपति निवास हो गया। तीन मूर्ति भवन में देश के प्रधानमंत्री रहेंगे, इस प्रकार वह अघोषित रूप से प्रधानमंत्री निवास हो गया। पंडित जवाहर लाल नेहरू वहां आ गए। रहा प्रश्न इंडिया गेट की कानोपी में सिर तान कर खड़े इंग्लैंड के बादशाह, पत्थर के बने, जार्ज पंचम का, उसको कुछ साल बाद वहां से हटा दिया गया। यह विवाद चलता रहा कि अब वहां किसको बिठाया जाए? विवाद सुलझ नहीं सका, इसलिए कानोपी वर्षों वर्ष खाली रही। लेकिन तीन मूर्ति भवन का मामला कुछ निराला व लीक से हट कर रहा। पंडित नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन नेहरू परिवार ने तीन मूर्ति भवन खाली नहीं किया। शायद विनम्रतावश शास्त्री की सरकार ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा भी नहीं। लेकिन नेहरू परिवार को स्वयं ही यह कार्य करना चाहिए था, जो उसने नहीं किया। लेकिन दुर्भाग्य से शास्त्री जी ज्यादा देर रह नहीं सके और उनकी ताशकंद में रहस्यमयी मृत्यु हो गई। कुछ दिन कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा रहे और उसके बाद नेहरू जी की सुपुत्री ही प्रधानमंत्री बन गईं। प्रधानमंत्री निवास में उन्हें ही रहना था। इसमें कुछ अनुचित नहीं था। लेकिन इंदिरा जी ने अब आश्चर्यजनक रूप से वह भवन खाली कर दिया और प्रधानमंत्री के तौर पर अपने लिए एक अलग भवन आवंटित करवाया। विशाल तीन मूर्ति भवन को किसी को भी आवंटित न कर उसे नेहरू म्यूजि़यम बना दिया गया। तब भी देशवासियों ने समझा कि अब इसमें हर प्रधानमंत्री से संबंधित घटनाओं व अन्य स्मरणीय वस्तुओं को रखा व संग्रहीत किया जाएगा, इस प्रकार देश के प्रधानमंत्रियों से संबंधित ऐतिहासिक धरोहर बन जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।