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कांग्रेस पार्टी के बेताज बादशाह राहुल गांधी का कल एक अजीबोगरीब बयान सामने आया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने झुकने वाले सभी लोग
अजय झा.
कांग्रेस पार्टी (Congress) के बेताज बादशाह राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का कल एक अजीबोगरीब बयान सामने आया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के सामने झुकने वाले सभी लोग हिंदूवादी हैं. ज्यों-ज्यों पांच राज्यों का चुनाव नजदीक आता जाएगा, राहुल गांधी और भी इस तरह की ऊटपटांग बयानबाजी करते दिखेंगे. उनकी बौखलाहट समझी जा सकती है. राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के लिए व्याकुल हैं और हर एक चुनाव के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी उनसे दूर होती जा रही है. जब विधानसभा चुनावों में ही कांग्रेस पार्टी लगातार बुरी तरह से हारती जा रही है, इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती है कि 2024 के चुनाव में कोई चमत्कार हो जाएगा और राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन जाएंगे.
राहुल गांधी की सोच है कि जिस कुर्सी पर उनका जन्मसिद्ध अधिकार है, उस पर मोदी ने पिछले साढ़े सात सालों से कब्ज़ा कर रखा है. और आसार यही है कि 2024 ही नहीं, शायद कभी भी उनका यह सपना पूरा नहीं होगा. इसका दोषी भले ही राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी मोदी को माने, पर दोष किसी और का नहीं बल्कि उनकी माताश्री सोनिया गांधी का है. अगर सोनिया गांधी चाहती तो राहुल गांधी को 2004 में ही मनमोहन सिंह की जगह प्रधानमंत्री बना सकती थीं. पर चूंकि राहुल गांधी 2004 में पहली बार सांसद चुने गए थे, अनुभवहीन थे, लिहाजा सोनिया गांधी ने अपनी जगह मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया. पर 2009 में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में क्या अड़चन थी? मनमोहन सिंह स्वयं कहते थे कि प्रधानमंत्री की कुर्सी उन्हें "मैडम" की सौगात है और जिस दिन मैडम कहेंगी वह कुर्सी छोड़ देंगे. माना भी यही जा रहा था कि मनमोहन सिंह को भी वही रोल दिया गया था जो रोल कभी कैप्टन सतीश शर्मा का था– अमेठी में सांसद की कुर्सी गर्म करके रखने का, जबतक कि गांधी परिवार का कोई और सदस्य चुनाव लड़ने सामने नहीं आता है.
सोनिया गांधी चाहतीं तो राहुल प्रधानमंत्री बन गए होते
राजीव गांधी की मृत्यु के बाद कैप्टन सतीश शर्मा अमेठी से दो बार सांसद चुने गए, पर 1998 के चुनाव में कभी राजीव गांधी के करीबी रहे संजय सिंह, जो बीजेपी में शामिल हो गए थे, के हाथों परास्त हो गए. 1999 में सोनिया गांधी ने पहली बार अमेठी से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया और कैप्टन शर्मा को रायबरेली से चुनाव लड़ने को कहा गया और वहां उनकी जीत भी हुई. 2004 में सोनिया गांधी ने अमेठी की सीट राहुल गांधी के लिए छोड़ दी और खुद रायबरेली से चुनाव लड़ीं और कैप्टन शर्मा को कांग्रेस पार्टी, या यूं कहें कि गांधी परिवार ने भुला दिया, तो गलत नहीं होगा. कुर्सी गर्म रखने की जिम्मेदारी उन्होंने बखूबी निभाई और कैप्टन शर्मा तीन बार सांसद चुने गए और केंद्र में मंत्री भी रहे जो उनके लिए सोनिया गांधी का सौगात ही था. जब उन्हें दिए गए जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया तो कैप्टन सतीश शर्मा ने कभी विरोध में आवाज़ भी नहीं उठाई क्योंकि उन्हें पता था कि गांधी परिवार के बिना उनका राजनीति में कोई वजूद नहीं है.
कैप्टन सतीश शर्मा की ही तरह मनमोहन सिंह भी यही मान कर बैठे थे कि उनका रोल भी सिर्फ प्रधानमंत्री पद को राहुल गांधी के आने तक गर्म करके रखने का ही है. मनमोहन सिंह को भी पता था कि उनकी हैसियत इतनी नहीं है कि वह लोकसभा का चुनाव भी जीत पाएं. अभी तक वह भारत के एकलौते ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जिसने बिना लोकसभा का चुनाव जीते प्रधानमंत्री का पद संभाला हो. हां, इंदिरा गांधी भी राज्यसभा की सदस्य थीं जब वह 1966 में पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं. शीघ्र ही उन्होंने राज्यसभा सदस्य के रूप में इस्तीफा दे दिया और लोकसभा में उपचुनाव जीत कर सदस्य बनी.
कैप्टन सतीश शर्मा की तरह मनमोहन सिंह भी चूं तक नहीं करते अगर 2004 से 2014 के बीच में कभी भी सोनिया गांधी उन्हें राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री पद छोड़ने का आदेश देतीं. सोनिया गांधी ने 10 साल लगा दिया और जब 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप के जनता के सामने पेश किया गया, तब तक देर हो चुकी थी.
39 वर्ष की उम्र में पीएम बन सकते थे राहुल गांधी
2004 की बात तो फिर भी समझी जा सकती थी, पर 2009 में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया गया, यह समझ से परे है. उस वक़्त तक राहुल गांधी को सांसद के रूप में पांच वर्षों का अनुभव हो चुका था और वह 39 वर्ष के हो चुके थे. अब जरा नज़र डालते हैं राहुल गांधी के पिताश्री राजीव गांधी पर. 1981 में वह पहली बार सांसद बने. छोटे भाई संजय गांधी की मृत्यु से रिक्त हुए अमेठी सीट से वह उपचुनाव जीत कर संसद के सदस्य बने, जबकि उनकी उम्र 37 वर्ष थी. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वह 40 वर्ष की उम्र में, जबकि एक सांसद के रूप में उनके पास सिर्फ तीन वर्षों का ही अनुभव था, राजीव गांधी देश के अब तक के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बने.
2009 में राहुल गांधी के पास अवसर था कि वह 39 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बन कर अपने पिता का रिकॉर्ड तोड़ सकते थे. पर सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंत्री बनाए रखा. मनमोहन सिंह ने ऑफर भी दिया था कि अगर अनुभवहीनता ही राहुल गांधी के मार्ग के बाधा है तो वह एक-दो साल मंत्री के रूप में काम करें और फिर प्रधानमंत्री बन जाएं. उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया. भला कैसे युवराज किसी अन्य के अधीन काम कर सकता था और उनकी माताश्री को शायद यह विश्वास नहीं था कि राहुल गांधी देश चला पाएंगे.
अब जबकि मां को ही अपने बेटे की योग्यता और क्षमता पर विश्वास ना हो तो देश की जनता को कैसे यह विश्वास हो सकता है कि राहुल गांधी में अब वह योग्यता और क्षमता का समावेश हो चुका है? पर राहुल गांधी हैं कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि अगर वह प्रधानमंत्री नहीं बने तो इसमें मोदी का कोई दोष नहीं है, बल्कि उनके सपनों को किसी और ने नहीं बल्कि उनके माताश्री ने ही चकनाचूर कर दिया था.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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