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- रूस से दूरी नहीं
नवभारत टाइम्स; प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईस्टर्न इकॉनमिक फोरम की सातवीं बैठक में अपने भाषण से एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि भारत की नीति अन्य देशों और संगठनों के हितों तथा उनकी प्राथमिकताओं से तय नहीं होने वाली। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि भारत आर्कटिक मसलों पर रूस के साथ साझेदारी मजबूत करने का इच्छुक है। उन्होंने रूस से कोकिंग कोल का आयात बढ़ाने की संभावनाओं का तो जिक्र किया ही, यह भी कहा कि पूर्वी रूस के विकास में भारतीय प्रफेशनल टैलंट अहम भूमिका निभा सकते हैं। यहां तक कि उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन के नेतृत्व की भी तारीफ की। हालांकि यह तारीफ रूस के पूर्वी क्षेत्रों के विकास के सीमित संदर्भ में की गई थी, लेकिन फिर भी मौजूदा वैश्विक संदर्भों में इसकी अहमियत को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
प्रधानमंत्री ने ये बातें ऐसे समय में कही हैं, जब पश्चिमी देश बार-बार संकेत दे रहे हैं कि रूस के साथ भारत की व्यापारिक गतिविधियां उनकी आंखों में खटक रही हैं। भले अमेरिका समेत किसी भी देश ने इस पर सीधे आपत्ति नहीं की, लेकिन उनकी लगातार यह कोशिश रही है कि धीरे-धीरे ही सही इसमें कमी की जाए। इन्हीं कोशिशों के तहत अब रूस के तेल की कीमतों पर कैप लगाने की बात भी की जा रही है। मगर प्रधानमंत्री के इस भाषण ने उन तमाम परोक्ष संकेतों और दबाव बनाने की कोशिशों को एक झटके में अप्रासंगिक बना दिया। अब बात तेल आयात करने या हथियारों की खेप मंगाने तक सीमित नहीं रही। अन्य क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाने की हो गई है।
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से देखा जाए तो यह भारत की ओर से राजनीतिक स्तर पर पश्चिमी देशों को दिया गया अब तक का सबसे स्पष्ट संकेत कहा जा सकता है। यह इस लिहाज से भी अहम है कि अगले सप्ताह ही उज्बेकिस्तान में होने वाली एससीओ (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन) शिखर बैठक में रूसी राष्ट्रपति पूतिन और प्रधानमंत्री मोदी की आमने-सामने मुलाकात होने वाली है। हालांकि इन सबका मतलब यह नहीं माना जा सकता कि यूक्रेन युद्ध के मसले पर भारत के स्टैंड में कोई बदलाव आ गया है।
गौर करने की बात है कि ईस्टर्न इकॉनमिक फोरम की उस बैठक में पूतिन यूक्रेन युद्ध का जिक्र करने से बचते रहे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल उसका जिक्र किया और उसकी वजह से वैश्विक स्तर पर सप्लाई लाइन में आ रही दिक्कतों का मुद्दा उठाया बल्कि युद्ध बंद करने के शांतिपूर्ण उपायों के लिए अपना पूरा समर्थन भी घोषित किया। जाहिर है, प्रधानमंत्री के इस स्पष्ट बयान को किसी और रूप में नहीं लिया जा सकता। इससे भारत के इस या उस तरफ झुके बगैर अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करते रहने की प्रतिबद्धता ही रेखांकित हुई है।