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भाई जान, ऐसे दिन हम पर गुजऱे हैं कि आपको क्या बताएं। सब ठीक ठाक चल रहा था
भाई जान, ऐसे दिन हम पर गुजऱे हैं कि आपको क्या बताएं। सब ठीक ठाक चल रहा था। देश में काम नहीं चल रहा था, लेकिन रोज़ मीडिया में घोषणा हो जाती कि हमने नई उपलब्धियों के मीनार विजय कर लिए। तय वक्त पर काम हो जाने के वायदों के साथ हर शहर में सुविधा केन्द्रों की इमारतें खड़ी कर दी गई थीं, जहां चुटकी बजाकर आपका काम करवा देने वालों के झुंड खड़े रहते। जी हां, इन्हीं लोगों को मध्यजन कहते हैं। यह वही लोग थे जिनके बारे में किसी पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था कि अपने देश में आम जनता के कल्याण के लिए एक रुपया खरचे तो सत्तासी पैसे इनकी जेब में जाते हैं। वक्त बदल गया है और इसका तेवर भी। आज के प्रधानमंत्री फरमाते हैं कि एक रुपया खरचे तो नब्बे पैसे आम आदमी तक पहुंच जाते हैं। बीच के इन लोगों के तावान से आम जन को छुटकारा मिल गया। भ्रष्टाचार की महामारी से लोगों को छुटकारा मिल गया। साब की घोषणा ही तो थी, करनी थी कर दी। विश्व का भ्रष्टाचार सूचकांक चिल्लाता रहा, साब क्या बात करते हो। विश्व के सबसे दस महाभ्रष्टाचारी देशों में अब भी आपका स्थान सुरक्षित है और ये मध्यजन अब भी श्रीमन्त बन कर अपनी-अपनी मेज़ कुर्सी इन सुविधा केन्द्रों के प्रांगण में डाल साइकिल से मोटरसाइकिल और मोटरसाइकिल से कार बन रहे हैं।
विश्व भ्रष्टाचार तालिका में आपका देश वहीं खड़ा है, आपकी सब कुछ बदल जाने की घोषणाओं के बावजूद। ये घोषणाएं कैसी लुकमान अली की दवाएं होती हैं। देश यथास्थितिवाद का आदी हो गया है और यहां आपको सब कुछ बदल जाने का आभास दिया जाता है। परिवर्तन की राह पर चलते हुए ज़माना कयामत की चाल चल गया और आप फरमा रहे हैं, आह! हमारी यह देव धरा! आओ अपने अतीत का पूजन करें। ऐ दुनिया वालो जिस तरक्की पर तुम इतराते हो, इसका आविष्कार तो हमने हज़ारों-लाखों वर्ष पहले कर लिया था। रामायण और महाभारत युद्ध में चले अग्नि बाण आज के एटम बम ही तो थे। रावण का पुष्पक विमान आज के सुपरसॉनिक जैट से तेज़ उड़ता था। धन्वन्तरी की उपचार विद्या का अन्त नहीं है। आज के इबोला से लेकर कोरोना वायरस की हिम्मत ही क्या जो इनकी उपचार विद्या के करीब फटक जाएं। दुनिया भर में इस मजऱ् का कोई इलाज नहीं है। अपना देश तो है ही इस मामले में शुरू से फिसड्डी। दुनिया में इलाज नहीं, केवल इलाज तलाश लेने का शोर रहा।
अपने यहां भी निर्बल से स्वर में दवाई तलाश उद्यम की घोषणा होती रहती। लेकिन फिलहाल इससे छुटकारा पाने के लिए काढ़ा पीने और गर्म पानी के गरारों की सलाह के सिवा कुछ नहीं था। गलबहियों की जगह छह हाथ दूर रहने की सलाह मिली। प्रेमालाप में आलिंगन, चुम्बन की जगह फ्लाइंग किस का जमाना आ गया। लेकिन पूर्णबंदी या घरबंदी के इन दिनों में औरतों के गर्भाधान का प्रतिशत कैसे बढ़ गया? इन विषाणुओं के मारक प्रभाव का रहस्य जान लेंगे तो इस पर भी शोध की जाएगी, बन्धु! लेकिन कब तक यूं सब चलता रहता। अब देश में भुखमरी और भविष्य-हीनता के अंधेरे उन करोड़ों लोगों को सताने लगे जो रोज़ कुआं खोदते थे और रोज़ पानी पीते थे। हम नहीं कहते कि सरकार ने इनकी समस्या का समाधान नहीं किया। लोगों की भूख से आंतें झुलसने लगीं, करोड़ों लोग अपना परिवार कन्धों पर लाद कर पांव-पांव गांव, घरों की ओर चल दिए तो उनमें रोटी की जगह साख पत्र बंटने लगे। मिजऱ्ा गालिब होते तो इससे उधार लेकर मय पी लेते। रब्ब सब भला करेगा। आमीन।
सुरेश सेठ
By: divyahimachal
Rani Sahu
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