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एक बार फिर केंद्र और राज्य सरकारें आमने सामने दिख रही हैं। इस बार मामला देश में उत्पन्न कथित कोयला संकट का है।
एक बार फिर केंद्र और राज्य सरकारें आमने सामने दिख रही हैं। इस बार मामला देश में उत्पन्न कथित कोयला संकट का है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कोयले की आपूर्ति में कमी की शिकायत की और अनुरोध किया कि वह दखल देकर दिल्ली को कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करवाएं। इसके बाद केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने बयान जारी कर दावा किया कि कोयले की कमी को लेकर बेवजह ही घबराहट की स्थिति पैदा कर दी गई है और यह कि देश में कोयले की कोई कमी नहीं है।
उनके मुताबिक ऐसा गेल और टाटा की ओर से मिसकम्युनिकेशन की वजह से हुआ। मगर कोयले की कमी की शिकायत करने वाला दिल्ली अकेला राज्य नहीं है। महाराष्ट्र में 13 थर्मल पावर प्लांट बंद करने पड़े हैं। पंजाब में कई इलाकों में रोटेशनल लोड शेडिंग शुरू की जा चुकी है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने भी हालात की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री से तुरंत निजी तौर पर दखल देने का अनुरोध किया है। कई अन्य राज्यों में पावर कट की नौबत आने की खबरें हैं। ऐसे में अगर केंद्रीय ऊर्जा मंत्री के दावे को सही मान लिया जाए तो भी यह देखने की जिम्मेदारी केंद्र की ही बनती है कि आखिर विभिन्न राज्यों में बिजली की किल्लत की नौबत क्यों आ रही है।
देके पावर प्लांट्स में कोयले के महज चार दिन के रिजर्व को हम घबराहट पैदा करने वाला न मानें तो भी इसमें दो राय नहीं कि यह आम तौर पर आवश्यक माने जाने वाले रिजर्व से कम है। इस कमी के जो कारण सरकारी तौर पर बताए जा रहे हैं उनमें एक तो यह है कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी की बदौलत बिजली की मांग में अचानक बढ़ोतरी हो गई। दूसरे, सितंबर में हुई बारिश के चलते कोयले के उत्पादन में व्यवधान पड़ा। इसके अलावा कोयला आयात का महंगा होना और राज्य सरकार की ओर भुगतान का बकाया जैसे कारकों की भूमिका भी बताई जा रही है। लेकिन इनमें से कोई भी कारण ऐसा नहीं है जिसे पूरी तरह अप्रत्याशित माना जा सके। जून महीने से ही अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत देखे जाने लगे थे।
जाहिर है, आर्थिक गतिविधियां तेज होने के साथ-साथ बिजली की मांग में बढ़ोतरी होना कोई ऐसी बात नहीं है जिसके बारे में पहले से अंदाजा न हो। मॉनसून आने के बाद बारिश से पैदा होने वाले व्यवधान भी हर साल की बात हैं। जाहिर है, इससे बचाव के इंतजाम पहले से होने चाहिए थे। केंद्र सरकार का कहना है कि चार-पांच दिन के अंदर स्थिति ठीक कर ली जाएगी। उम्मीद की जाए कि ऐसा ही होगा और देश को ऊर्जा संकट जैसी किसी स्थिति से नहीं गुजरना पड़ेगा। लेकिन उस हालत में भी यह जरूर सुनिश्चित किया जाए कि ईंधन और ऊर्जा सप्लाई जैसे मामलों में हमारी प्लानिंग फूलप्रूफ रहे।
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