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क्रिकेट में सफल कप्तान को जीतनी ही पड़ती है ट्रॉफी
दावे करने से अगर आईपीएल में ट्रॉफी जीती जा सकती तो शायद विराट कोहली के नाम कम से कम 2-3 ख़िताब तो हो ही सकते थे. आखिर कोलकाता नाइट राइडर्स के ख़िलाफ़ एलिमिनेटर मुकाबला हारने के बाद कोहली ने दावा किया कि उन्होंने अपना 120 फीसदी दिया. अब दुनिया का कौन सी मशीन इस बात को साबित कर पाएगी कि कोहली ने अपनी कप्तानी में सौ फीसदी दिया या फिर 120 फीसदी या फिर 150 फीसदी. इसको मापने का अब तक कोई तरीका क्रिकेट या खेल की दुनिया में नहीं है,
अगर इसको मापने का कोई तरीका है भी, तो उसमें कोहली बुरी तरह से नाकाम रहे हैं. अगर कोई विद्यार्थी चाहे कितना भी दावा कर ले, कि उसने पढ़ाई खूब की है, मेहनत खूब की है और उसका इम्तिहान भी शानदार गया हो, लेकिन आखिरकार उसका मूल्यांकन तो अंको से ही तय होता है, कॉलेज में दाखिला भी इसी के आधार पर होता है. हो सकता है कि ये प्रक्रिया प्रतिभा को मापने का एकदम सही तरीका नहीं है, लेकिन फिलहाल तो दुनिया इसी फॉर्मूले पर चल रही है.
क्रिकेट में सफल कप्तान को जीतनी ही पड़ती है ट्रॉफी
क्रिकेट में सफल कप्तान को ट्रॉफी जीतनी ही पड़ती है. कुछ महीने पहले ही पाकिस्तान के पूर्व कप्तान और मौजूदा समय में पीसीबी के चैयरमैन रमीज़ राजा ने कोहली की कप्तानी के संदर्भ में एक शानदार बात बताई थी. उन्होंने कहा कि इमरान ख़ान की कप्तानी की महानता को कोई नहीं मानता, अगर उनके पास 1992 का वनडे वर्ल्ड कप नहीं होता.
कोहली चाहे कुछ भी कह लें, लेकिन इस बात से अब तो नहीं झुठला सकते हैं कि उनकी कप्तानी में ख़ासकर सफेद गेंद की कप्तानी में कमी तो ज़रुर रही है, वरना 8 साल में कौन सी टीम सिर्फ 4 बार प्ले-ऑफ में पहुंची हो, सिर्फ एक बार ही किसी तरह से फाइनल में पहुंचती, उसके बाद भी कप्तान को कोई हटाने के बारे में सोच भी नहीं सकता है!
और तो और कोहली की कप्तानी में बैंगलोर ने एक नहीं, दो बार सबसे फिसड्डी टीम होने का तमगा भी हासिल किया! ये तो कहिये कि रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर को कोहली का एहसानमंद होना चाहिए कि उन्होंने खुद से कप्तानी छोड़ दी, नहीं तो किसी में मजाल थी उनकी कप्तानी पर कोई सवाल खड़े कर दे या हटा दे. आपको सबूत के लिए कहीं और जाने की ज़रुरत नहीं, बल्कि आप खुद गूगल सर्च करें और ये देखिये कि बैंगलोर के किसी किसी भी पूर्व कोच या पूर्व खिलाड़ी ने कोहली की कप्तानी को लेकर शिकायत की है?
आप एक बयान ढूंढकर निकाल दें, जब टीम के किसी सदस्य या पूर्व खिलाड़ी ने कोहली की कप्तानी या फिर लीडरशीप को लेकर सवाल उठाए. हर कोई 'सब चंगा है जी' और 'कोहली से महान तो कोई दूसरा है नहीं' की धुन ही बजा रहे हैं, चाहे एबी डीविलियर्स जैसा महान खिलाड़ी भी क्यों ना हो. कल तक डीविलियर्स लगातार अपने दोस्त कोहली की महान लीडरशीप की दुहाई दे रहे थे, जबकि अपने ही मुल्क साउथ अफ्रीका के क्रिकेट सिस्टम से परेशान होकर उन्होंने खेल को अलविदा कहने तक में हिचकिचाहट नहीं दिखाई.
अगर बैंगलोर के पूर्व कोच रे जेनिंग्स के कुछ बयानों को छोड़ दिया जाय या फिर कुछ हद तक टीम इंडिया के पूर्व विकेट कीपर पार्थिव पटेल के कुछ बयानों को या फिर सुनील गावस्कर के टीवी पर यदा-कदा सवालों को तो आपको कोहली की कप्तानी पर ईमानदार राय देने वाले बहुत कम मिलेंगे. गौतम गंभीर तो इकलौते ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्होंने पिछले साल खुलकर कोहली की कप्तानी की आलोचना की थी और यहां तक कह डाला था कि कोहली भाग्यशाली हैं.
गंभीर ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि वो सांसद है और अपनी आजीविका के लिए सिर्फ कामेंट्री और क्रिकेट के कामों पर निर्भर नहीं हैं. हर कोई इस बात को बखूबी जानता है कि कोहली भारतीय क्रिकेट के बादशाह है और उनके ख़िलाफ़ जाने का मतलब है सत्ता के खिलाफ जाना तो भला नुकसान लेने का जोखिम क्यों लिया जाय.
बल्लेबाज़ कोहली ने कप्तान कोहली को मायूस किया
क्रिकेट में पारंपरिक तौर अक्सर इस बात की दुहाई दी जाती है कि कप्तान को हमेशा अपने खेल से लीड करना चाहिए. मतलब ये कि अगर बल्लेबाज़ हैं तो खूब रन बनायें और गेंदबाज़ हों तो खूब विकेट लें. लेकिन, टी 20 फॉर्मेट और आईपीएल में इसके मायने बदल जाते हैं. कई बार ऐसा देखा जाता है कि कप्तान रन तो बनातें है, लेकिन वो रन उनकी टीम के लिए फायदेमंद होने की बजाए नुकसान करा जाता है.
कोहली की बल्लेबाज़ी की महानता पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए, लेकिन संजय माजरेंकर जैसे पूर्व खिलाड़ी ने पिछले हफ्ते एक बेहद दिलचस्प बात की तरफ इशारा किया. मांजरेकर का कहना था कि संघर्ष के दौर से गुज़र रहे कोहली ने बैंगलोर के लिए कुछ मैचों में अपने निजी रिकॉर्ड यानि अर्धशतक पहुंचने को ज़्यादा अहमियत दी, जिससे उनकी टीम को नुकसान हुआ और वो बड़ा स्कोर नहीं कर पाये.
मांजरेकर की बातों में दम है, क्योंकि इस साल 15 मैचों में कोहली का स्ट्राइक रेट 120 से भी कम रहा, जबकि उनका करियर स्ट्राइक रेट 130 के करीब रहा है. पिछले साल भी कोहली का स्ट्राइक रेट के करीब 121 का ही रहा था. इसके उल्टे पिछले 5 सालों में जब सिर्फ एक सीज़न बैंगलोर की टीम ख़िताब जीतने के बेहद करीब यानि कि फाइनल में पहुंची तो कोहली ने ना सिर्फ रिकॉर्ड 972 रन बनाए, बल्कि उनका स्ट्राइक रेट भी 152 से भी ऊपर का रहा, जो उन्होंने ना तो उससे पहले कभी छुआ था और ना उसके बाद कभी छू पाये.
निसंदेह, बल्लेबाज़ के तौर पर वो सीज़न कोहली का सर्वश्रैष्ठ दौर था आईपीएल में और इसलिए उनकी कप्तानी को भी इसका फायदा हुआ भले ही वो ट्रॉफी जीतने में नाकाम रहें.
जीतने से ज़्यादा ज़्यादा मैच हारे कोहली
आईपीएल के इतिहास में 50 से ज्यादा मैचों की कप्तानी करने वाले खिलाड़ियों में सिर्फ एडम गिलक्रस्टि ऐसे खिलाड़ी है, जिनकी जीत फीसदी 50 से कम रही है और जो कोहली से बदतर साबित हुए हैं. लेकिन, पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान भी कोहली को ये कह सकते है कि दोस्त मैंने इतने ख़राब रिकॉर्ड के बावजूद 2009 में डेक्कन चार्जस के लिए एक आईपीएल ख़िताब तो जीता है! अफसोस की बात कोहली कभी भी भविष्य में आईपीएल में अपनी कप्तानी की नाकामी को किसी भी तरीके से मिटा नहीं सकते हैं, भले ही वो 120 फीसदी देने का दावा करें या फिर 200 फीसदी. ये दुनिया तो सिर्फ सूखे नतीजे पर ही महानता का आंकलन करती है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विमल कुमार
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.
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