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बाहर से आ रहे चंदे पर अंकुश लगाने को लेकर सरकार प्रतिबद्ध है। उसने फिर से दोहराया है कि देश के भीतर बेलगाम विदेशी चंदे की इजाजत नहीं दी जा सकती।
बाहर से आ रहे चंदे पर अंकुश लगाने को लेकर सरकार प्रतिबद्ध है। उसने फिर से दोहराया है कि देश के भीतर बेलगाम विदेशी चंदे की इजाजत नहीं दी जा सकती। दरअसल, सरकार ने विदेशी चंदा (विनियमन) अधिनियम-2010 में संशोधन करके उसमें कई कड़े प्रावधान जोड़ दिए थे। उसी संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। अदालत के पूछने पर सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि इस कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विदेशी धन भारत में सार्वजनिक जीवन के साथ-साथ राजनीतिक और सामाजिक धारा पर हावी न हो। कुछ विदेशी ताकतें कुत्सित इरादे से भारत की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करती हैं और ऐसी ताकतों को रोकने के मकसद से ही इस कानून में संशोधन किए गए हैं।
इससे बहुत सारी संस्थाओं, राजनीतिक दलों, स्वयंसेवी संगठनों को बाहर से मिलने वाली मदद रुक गई। उन लोगों ने इस कानून संशोधन को चुनौती दी है। अब विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम यानी एफसीआरए के मुताबिक किसी भी प्रकार के विदेशी अंशदान को बैंकों के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकेगा। फिर उसका कारण और सारे ब्योरे पेश करने होते हैं कि बाहर से चंदा किस मकसद से लिया गया, उसे कहां खर्च किया जाएगा और भेजने वाले का स्रोत क्या है आदि। यह प्रक्रिया काफी जटिल हो गई है। इसलिए ऐसी अनेक धर्मादा संस्थाओं का बहुत सारा पैसा विदेशों में फंस गया है, जिनकी शाखाएं भारत के अलावा दूसरे देशों में भी हैं।
दरअसल, विदेश से मिलने वाले चंदे का कई बार दुरुपयोग भी देखा गया है। चरमपंथी संगठनों को भी चंदे के नाम पर बाहर से पैसा भेजा जाता रहा है। यह भी छिपी बात नहीं है कि कई विदेशी संस्थाएं भारत में अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने, भारतीय संस्कृति को भ्रष्ट करने के इरादे से भी कई संस्थाओं को धन देकर प्रोत्साहित करती रही हैं।
पहले तो अमेरिकी संगठन सीआइए आदि के भी भारत में इसी तरह चंदे भेज कर अपनी गतिविधियों को चलाए रखने की शिकायतें मिलती रहीं। गलत इरादे से गतिविधियां संचालित करने और लोगों को लाभ पहुंचा कर भारतीय व्यवस्था में सेंध लगाने को उकसाने जैसे प्रयासों को किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। उन पर रोक लगनी ही चाहिए। मगर विदेशी चंदा (विनियमन) अधिनियम में संशोधन से कई सार्थक कार्यों पर भी बुरा असर पड़ा है, जिसके चलते, स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, बाल अधिकारों आदि से जुड़े काम प्रभावित हुए हैं। इसलिए संशोधन पर आपत्ति जताई गई है।
छिपी बात नहीं है कि बहुत सारे स्वयंसेवी संगठन विदेशी चंदे के बल पर भारत में अनेक महत्त्वपूर्ण सामाजिक कार्यों में संलग्न थे। मगर जबसे विदेशी चंदा मिलना बंद या कम हो गया है, ऐसी कार्य ठप्प पड़ गए हैं, क्योंकि स्वयंसेवी संगठनों के पास इतनी निजी पूंजी नहीं होती कि उससे वे सामाजिक कार्य कर सकें। फिर भारत में भी जो कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व यानी सीएसआर के तहत निजी कंपनियां स्वयंसेवी संगठनों को चंदा दिया करती थीं, वह भी कम हो गया है।
मगर सरकार का इरादा इस कानून के जरिए राजनीतिक दलों पर भी अंकुश कसने का रहा है। इसीलिए उनसे विदेशी चंदे के बारे में कड़ी पूछताछ की जाती है। इसके बरक्स सच्चाई यह भी है कि भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों को मिलने वाले बेपनाह चंदे को लेकर भी सवाल उठते रहते हैं, मगर उसका खुलासा नहीं किया जाता। इसलिए भी यह संशोधन सवालों के घेरे में रहा है।
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