- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- गैर हिंदू नर्तकी...
सम्पादकीय
गैर हिंदू नर्तकी मानसिया की फ़रियाद 'धर्मनिरपेक्ष केरल' के लिए चुनौती है
Gulabi Jagat
31 March 2022 7:02 AM GMT

x
मानसिया को मंदिर में नृत्य की अनुमति न मिलने का केरल में इस तरह का दूसरा मामला है.
राकेश दीक्षित।
मानसिया (Bharatanatyam Exponent Mansiya) को मंदिर में नृत्य की अनुमति न मिलने का केरल में इस तरह का दूसरा मामला है. इससे पहले, इसी तरह उत्तरी मालाबार में मंदिर प्रशासन ने एक पूरक्कली कलाकार को उसके बेटे की मुस्लिम महिला से शादी करने के आरोप में मंदिरों में परफॉर्म करने पर रोक लगा दिया था. दोनों ही मामलों में अधिकारियों का कहना है कि वे मंदिर की परंपरा को नहीं तोड़ सकते. 1950 के दशक में, लोकप्रिय गायक के जे येसुदास (K J Yesudas) को गुरुवायुर मंदिर (Gurvayur Temple) में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी क्योंकि वे एक ईसाई थे. बाद में उन्होंने खुले मंच पर परफॉर्म किया.
मौन है 'धर्मनिरपेक्ष' केरल
उसी सरकार के मुख्यमंत्री ने अब तक शास्त्रीय नृत्य (classical dance) की एक मशहूर प्रतिनिधि की तरफ से कोई हस्तक्षेप नहीं किया है, जो खुले तौर पर खुद किसी धर्म को नहीं मानती हैं. मानसिया के अपने लंबे फेसबुक नोट में 'धर्मनिरपेक्ष केरल' की इस विफलता का ज़िक्र किया है. ऐसा न हो कि हम भूल जाएं, कूडलमानिक्यम देवास्वम बोर्ड (Koodalmanikyam Devaswom Board) राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित है. इसके अध्यक्ष प्रदीप मेनन ने स्वीकार किया कि बोर्ड को वीपी मानसिया को परफॉर्म करने की अनुमति देने में कोई समस्या नहीं होती अगर वह एक परिवर्तित हिंदू होतीं. पूरे विवाद के केंद्र में महिला डांसर की पहचान गैर-हिंदू है, जो कि बोर्ड के अनुसार मंदिर की परंपरा के हिसाब से प्रतिबंधित है.
परंपरा का ईश्वरीय विधान नहीं
क्या बोर्ड की परंपरा ईश्वरीय विधान है जिसे पत्थर पर उकेरा गया है? प्राचीन मंदिर की ऐतिहासिकता को देखते हुए, यह मान लेना उचित है कि इसके परिसर में ईश्वर में आस्था नहीं रखने वाले का डांस परफॉरमेंस सोच से परे था जब इसकी स्थापना की गई थी. कूडलमानिक्यम मंदिर बोर्ड के अध्यक्ष प्रदीप मेनन ने स्पष्ट नहीं किया है कि केवल हिंदू नर्तकियों (dancers) को अनुमति देने की परंपरा कब शुरू हुई. यह परंपरा उतनी पुरानी नहीं हो सकती जितनी कि मंदिर, जो सभी हिस्टोरिकल रिकार्ड्स के मुताबिक कम से कम 1200 सालों से अस्तित्व में है. माना जाता है कि अरब व्यापारियों के रूप में मुसलमान उस समय तक केरल तट पर आ चुके थे. लेकिन उस समय महिला शास्त्रीय नृत्यांगनाओं, चाहे वे हिंदू हो या अन्य, की संभावना शून्य है. मंदिर ने बदलते समय को ध्यान में रखते हुए अपनी नींव के बाद से परंपराओं को बनाने और तोड़ने की एक श्रृंखला जरूर देखी होगी.
रुक्मिणी देवी अरुंडेल की नृत्य-शैली
मंदिर प्रांगण में भरतनाट्यम (Bharatnatyam) नृत्य प्रदर्शन की परंपरा का वर्तमान स्वरूप 20वीं शताब्दी से पहले नहीं देखा जा सकता है. पहले, प्राचीन दक्षिण भारतीय मंदिरों में देवदासियां प्रदर्शन करती थीं और उन्हें किसी कलाकार की तरह सम्मान से नहीं देखा जाता था. रुक्मिणी देवी अरुंडेल (29 फरवरी, 1904 – फरवरी 24, 1986) भरतनाट्यम की प्रसिद्ध भारतीय नृत्यांगना और कोरियोग्राफर थीं. उन्हें भरतनाट्यम नृत्य में भक्तिभाव को शामिल करने तथा मंदिर की नर्तकियों, देवदासियों के बीच प्रचलित अपनी मूल 'साधीर' शैली से पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है. वीपी मानसिया एक रिसर्च स्कॉलर हैं जो रुक्मिणी देवी अरुंडेल (Rukmini Devi Arundale) द्वारा शुरू की गई परंपरा की गौरवशाली विरासत हैं. परंपरा से बंधे कूडलमानिक्यम देवास्वम बोर्ड से रुक्मिणी देवी की विरासत की सराहना करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, लेकिन केरल सरकार को ऐसा जरूर करना चाहिए.
कम्युनिस्ट आंदोलन
साम्यवादी सरकार अपनी राजनीतिक शक्ति का श्रेय 16वीं शताब्दी के सुधारवादी आंदोलन को देती है. केरल में दुनिया की पहली लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार संभव नहीं होती अगर इसके मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद (EMS Namboodiripad) को मतदाता के तौर पर प्रगतिशील लोगों की मिलीजुली आबादी का साथ नहीं होता. थुंचत्थु एझुथाचान (Thunchaththu Ezhuthachan) जैसे लेखकों के प्रभाव में भक्ति आंदोलन का निर्माण हुआ जिसने साहित्य और ज्ञान पर ब्राह्मणों के एकाधिकार को तोड़ने में मदद की. इसने तथाकथित पिछड़ी जातियों के लिए मंदिर में प्रवेश का मार्ग भी प्रशस्त किया.
यूरोपीय देशों से मिशनरियों के आने से केरल में शैक्षणिक संस्थानों का उदय हुआ और एझावा (Ezhavas) जैसी जाति समूहों के बीच शिक्षित वर्ग का उदय हुआ. केरल के मैसूर आक्रमण (1766-1792) ने केरल के समाज पर ब्राह्मणों जैसे कुलीनों की पकड़ को दुर्बल किया. उत्तरी भारत के विपरीत, केरल में ज्ञान का विस्तार निम्न जातियों द्वारा संचालित था. नारायण गुरु (Narayan Guru), अय्यंकाली (Ayyankali) और अन्य 19वीं शताब्दी के केरल की सोशल सेटिंग में निम्न माने जाने वाले जाति समूहों से संबंधित थे. इसलिए उनमें से अधिकांश ने सुधार के बजाय जाति व्यवस्था को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया. इसने कम्युनिस्ट आंदोलन के विकास की नींव रखी. तब से तटीय राज्य में कम्युनिस्टों का बोलबाला है, हालांकि शेष भारत में उनकी उपस्थिति कम हो गई है.
2019 में सबरीमाला विवाद मामले में CPI(M) के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट ने कड़ा रुख़ अख़्तियार किया था. यह सभी आयु वर्ग की महिलाओं को भगवान अयप्पा मंदिर (Lord Ayyappa temple) में प्रवेश देने के अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के साथ खड़ा था. सरकार ने अपने नियंत्रण वाले मंदिरों में दलितों को पुजारी बनाने की योजना पर भी काम किया. लेकिन वर्तमान विवाद ने पिनाराई विजयन (Pinarayi Vijayan) सरकार को साहस दिखाने और भरतनाट्यम डांसर के साथ खड़े होने का एक और मौका दिया है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)

Gulabi Jagat
Next Story