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हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर गैर संचारी (गैर संक्रामक) रोगों की वजह से बोझ बढ़ता जा रहा है. ये रोग अनुवांशिक, शारीरिक, पर्यावरणीय और व्यावहारिक कारकों की वजह से होते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हृदय रोग, कैंसर, दमा व अन्य सांस की बीमारियां और डायबिटीज इस श्रेणी के मुख्य रोग हैं. दुनियाभर में हर साल चार करोड़ से अधिक लोग इन बीमारियों के कारण मौत के शिकार हो जाते हैं.
स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर होने वाली सभी मौतों में इनका हिस्सा 71 फीसदी से अधिक है. भारत में भी हालत बेहद गंभीर है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा 2017 में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में होने वाली मौतों में गैर संचारी रोगों का हिस्सा 1990 में 37.9 प्रतिशत था, जो 2016 में बढ़ कर 61.8 प्रतिशत हो गया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2015 में बताया था कि भारत में लगभग 58 लाख लोग हर साल इन रोगों से मौत का शिकार बन जाते हैं. स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि हर चार में से एक भारतीय के 70 साल की उम्र से पहले गैर-संचारी रोगों से मर जाने की आशंका रहती है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत यह लक्ष्य निर्धारित किया गया है कि असमय मौतों की संख्या में 2025 तक 25 प्रतिशत की कमी की जायेगी.
इस स्वास्थ्य संकट पर प्राथमिकता से ध्यान देना जरूरी हो गया है. दिल का दौरा और कैंसर तो महामारी की शक्ल लेते जा रहे हैं. डायबिटीज आम बीमारी बनती जा रही है. बदलती जीवन शैली ने इन बीमारियों को बढ़ाने में सबसे अधिक योगदान दिया है. वायु प्रदूषण सांस की बीमारियों के साथ हृदय रोग और अनेक तरह के कैंसर का कारण भी बन रहा है. खाने-पीने की चीजों में रसायनों का बेतहाशा इस्तेमाल एक बड़ी समस्या बन चुका है.
इस तरह के रोग अन्य रोगों या संक्रमणों को भी अधिक जानलेवा बना देते हैं. कोरोना महामारी के दौर में इन बीमारियों को मौतों का सबसे बड़ा कारण बताया गया. इनकी रोकथाम की सबसे पहली जिम्मेदारी व्यक्ति की है. उसे अपने रहन-सहन में वांछित सुधार लाना चाहिए तथा स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान देना चाहिए. संतुलित भोजन, कसरत, घूमना-टहलना, शारीरिक मेहनत करना, तम्बाकू व शराब से परहेज और डॉक्टर से सलाह जैसे उपाय हमें असमय मौत के मुंह में जाने से बचा सकते हैं.
महामारी और विभिन्न रोगों में वृद्धि ने इस आवश्यकता को रेखांकित किया है कि हमारी स्वास्थ्य सेवा में तीव्र सुधार व विस्तार होना चाहिए. सरकार के ओर से भी इस संबंध में प्रयास हो रहे हैं, पर उसमें अधिक निवेश अपेक्षित है.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat
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