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- खोज का नोबेल नुस्खा
मसलन, हमारे सौर्य मंडल के बाहर के ग्रह की खोज करने वाले वैज्ञानिक मिशेल मेयर की बात करें, तो हमें लगता है कि आसमान को निहारते हुए एक ऐसा क्षण आया होगा, जब उन्हें एक ऐसा ग्रह मिल गया होगा। नोबेल पुरस्कार पाने वाले इस वैज्ञानिक ने ऐसे किसी क्षण से ही इनकार किया है। उनका कहना है कि उन्हें कुछ आंकड़े मिले, जिसका उन्होंने जब कई महीनों तक आकलन किया, तो कुछ संकेत मिले। तब तक वे स्थितियां ओझल हो चुकी थीं और अगले साल का इंतजार करना पड़ा। अगले साल भी वही नतीजे मिले, तो लगा कि एक एक्सोप्लैनेट उनके हाथ आ गया है। कुछ ऐसी ही बात पिछले साल चिकित्सा का नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिक जिम एलीसन ने कही है। कैंसर को मात देने में इम्यून सिस्टम की भूमिका खोजने वाले इस वैज्ञानिक का कहना है कि यह ऐसे लोगों से ही संभव हो पाता है, जिनमें जिज्ञासा भी हो और लगन भी। वे पहले जानकारियां हासिल करते हैं, फिर उनसे मिले आंकड़ों से जूझते हैं और सच को समझने की कोशिश करते हैं। इस साल चिकित्सा का नोबेल जीतने वाले ग्रेग एल सेमेन्जा इस बात को दूसरी तरह से कहते हैं।
उनका कहना है कि किसी खोज तक पहुंचना उपलब्ध आंकड़ों से पहेली हल करने जैसा हो जाता है। लीथियम बैटरी की खोज के लिए इस साल रसायन विज्ञान का नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिक एम स्टेनले विटंघम का कहना है कि यह काम तेल का कुआं खोदने की तरह है। अंत में दस फीसदी कुओं से ही तेल मिल पाता है। दरअसल, जब हम एक वैज्ञानिक के बारे में सोचते हैं, तो हमारे ध्यान में एक ऐसा व्यक्ति आता है, जो लगातार प्रयोगशाला में सिर खपाता है और फिर आखिर में कुछ हासिल करके निकल आता है। यह सोच दरअसल उस युग की कहानियों से बनी है, जब विज्ञान अपने प्रारंभिक दौर में था। विज्ञान के साथ ही हमारी प्रयोगशालाओं का भी काफी विकास हो चुका है। अब ज्यादातर मामलों में अंतिम नतीजे कंप्यूटरों पर हुए लंबे आकलनों के बाद ही निकाले जाते हैं। इसका यह अर्थ नहीं है कि विज्ञान अब आंकड़ों में उलझकर नीरस हो गया है। नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिकों ने उल्टे इसे दिलचस्प ही बताया है।