सम्पादकीय

खोज का नोबेल नुस्खा

Triveni
14 Oct 2020 4:21 AM GMT
खोज का नोबेल नुस्खा
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जब एक करियर के रूप में विज्ञान की बात आती है, तो इसे एक ऐसे दिलचस्प काम की तरह देखा जाता है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| जब एक करियर के रूप में विज्ञान की बात आती है, तो इसे एक ऐसे दिलचस्प काम की तरह देखा जाता है, जहां आप तमाम विफलताओं से गुजरते हुए कुछ नया, कुछ अजूबा या कुछ उपयोगी खोज लाते हैं। बचपन से ही थॉमस एडिसन के बारे में बताया जाता है, जिन्होंने सबसे पहले विद्युत से प्रकाश हासिल करने की तकनीक विकसित की या फिर उन आइंस्टीन के बारे में, जो हर रोज टे्रन में बैठकर जाते हुए एक क्लॉक टॉवर को देखते थे और उसे देखते-देखते उन्होंने सापेक्षता का सिद्धांत तैयार कर दिया। या फिर उन वैज्ञानिकों के बारे में, जिन्होंने कई पदार्थों, कई गैसों और कई तकनीकों की खोज की। आमतौर पर माना यही जाता है कि वैज्ञानिक जब प्रयोगशाला में जुटते हैं, तो उनकी कड़ी मेहनत के बाद एक ऐसा यूरेका वाला क्षण आता है, जब उनके हाथ एक नई खोज लगती है। लेकिन आज के वैज्ञानिकों के साथ भी क्या ऐसा ही होता है? इसका जवाब पाने का एक आसान तरीका यह हो सकता है कि हम उन वैज्ञानिकों से उनकी खोज के बारे में सुनें, जिन्हें इस साल का नोबेल पुरस्कार मिला है।

मसलन, हमारे सौर्य मंडल के बाहर के ग्रह की खोज करने वाले वैज्ञानिक मिशेल मेयर की बात करें, तो हमें लगता है कि आसमान को निहारते हुए एक ऐसा क्षण आया होगा, जब उन्हें एक ऐसा ग्रह मिल गया होगा। नोबेल पुरस्कार पाने वाले इस वैज्ञानिक ने ऐसे किसी क्षण से ही इनकार किया है। उनका कहना है कि उन्हें कुछ आंकड़े मिले, जिसका उन्होंने जब कई महीनों तक आकलन किया, तो कुछ संकेत मिले। तब तक वे स्थितियां ओझल हो चुकी थीं और अगले साल का इंतजार करना पड़ा। अगले साल भी वही नतीजे मिले, तो लगा कि एक एक्सोप्लैनेट उनके हाथ आ गया है। कुछ ऐसी ही बात पिछले साल चिकित्सा का नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिक जिम एलीसन ने कही है। कैंसर को मात देने में इम्यून सिस्टम की भूमिका खोजने वाले इस वैज्ञानिक का कहना है कि यह ऐसे लोगों से ही संभव हो पाता है, जिनमें जिज्ञासा भी हो और लगन भी। वे पहले जानकारियां हासिल करते हैं, फिर उनसे मिले आंकड़ों से जूझते हैं और सच को समझने की कोशिश करते हैं। इस साल चिकित्सा का नोबेल जीतने वाले ग्रेग एल सेमेन्जा इस बात को दूसरी तरह से कहते हैं।

उनका कहना है कि किसी खोज तक पहुंचना उपलब्ध आंकड़ों से पहेली हल करने जैसा हो जाता है। लीथियम बैटरी की खोज के लिए इस साल रसायन विज्ञान का नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिक एम स्टेनले विटंघम का कहना है कि यह काम तेल का कुआं खोदने की तरह है। अंत में दस फीसदी कुओं से ही तेल मिल पाता है। दरअसल, जब हम एक वैज्ञानिक के बारे में सोचते हैं, तो हमारे ध्यान में एक ऐसा व्यक्ति आता है, जो लगातार प्रयोगशाला में सिर खपाता है और फिर आखिर में कुछ हासिल करके निकल आता है। यह सोच दरअसल उस युग की कहानियों से बनी है, जब विज्ञान अपने प्रारंभिक दौर में था। विज्ञान के साथ ही हमारी प्रयोगशालाओं का भी काफी विकास हो चुका है। अब ज्यादातर मामलों में अंतिम नतीजे कंप्यूटरों पर हुए लंबे आकलनों के बाद ही निकाले जाते हैं। इसका यह अर्थ नहीं है कि विज्ञान अब आंकड़ों में उलझकर नीरस हो गया है। नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिकों ने उल्टे इसे दिलचस्प ही बताया है।

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