सम्पादकीय

नोबेल शांति पुरस्कार

Subhi
9 Oct 2022 3:08 AM GMT
नोबेल शांति पुरस्कार
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स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में 1901 से हर वर्ष नोबेल फाउंडेशन द्वारा असाधारण कार्य करने वाले लोगों और संस्थाओं को नोबेल पुरस्कार दिया जाता है।

आदित्य नारायण चोपड़ा: स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में 1901 से हर वर्ष नोबेल फाउंडेशन द्वारा असाधारण कार्य करने वाले लोगों और संस्थाओं को नोबेल पुरस्कार दिया जाता है। नोबेल पुरस्कार 6 अलग-अलग क्षेत्रों में दिया जाता है। नोबेल पुरस्कार को विश्व में बौद्धिक उपलब्धि के लिए दिया जाने वाला सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है। वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल ने डायनामाइट विस्फोटक का आविष्कार किया था। जीवन के अंतिम दिनों में उन्हें युद्ध में भारी तबाही मचाने वाले अपने आविष्कार को लेकर बहुत पश्चाताप हुआ था। मानव हित की आशंक्षा से प्रेरित होकर उन्होंने अपने धन का उपयोग नोबेल पुरस्कार स्थापित करने के लिए किया जो हर साल भौतिक रसायन, चिकित्सा, साहित्य और शांति के क्षेत्र में सर्वोत्तम कार्य करने वालों को दिया जाता है। अब तक गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर से लेकर अभिजीत विनायक बनर्जी तक दस भारतीय और भारतीय मूल के लोगों को नोबेल पुरस्कार हासिल हो चुका है। इस तरह भारत का इन पुरस्कारों से नाता बहुत पुराना है। वैसे तो हर क्षेत्र में दिए जाने वाले पुरस्कारों का अपना महत्व है, लेकिन शांति पुरस्कार के प्रति उत्सुकता ज्यादा रहती है। नोबेल शांति पुरस्कार एक ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जिसने सेना की तैनाती को कम करने और शांति को स्थापित करने या बढ़ावा देने के लिए सबसे बेहतरीन काम किया हो।इस बार का नोबेल शांति पुुरस्कार बेलारूस के मानवाधिकार कार्यकर्ता एलेस बियालियित्स्की, रूस के मानवाधिकार संगठन 'मेमोरियल ' और यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन सिविल लिबर्टीज को संयुक्त रूप से दिए जाने का ऐलान किया है। युद्धों और प्रत्यक्ष या परोक्ष आतंकवाद से जूझ रही दुनिया को यह पुरस्कार एक जबरदस्त संदेश देता है और दुनियाभर के शांति के लिए प्रयास करने वाले लोगों को प्रेरित करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध को देखते हुए शांति पुरस्कार का महत्व और भी बढ़ जाता है। शांति पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति और संस्थाएं अपने-अपने देशों में नागरिक समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंेने वर्षों तक सत्ता की आलोचना के अधिकार और नागरिकों से बुनियादी अधिकारों के संरक्षण के लिए काम किया। उन्होंने युद्ध अपराधों और सत्ता के दुरुपयोग के मामले में डाक्यूमेंटेशन के लिए बेहतर काम किया है। यद्यपि बेलारूस के मानवाधिकार कार्यकर्ता ऐलेस को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की आलोचना की जा रही है। लेकिन ऐलेस ने मानवाधिकारों के लिए बेहतरीन काम किया है। वे कई वर्षों से लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और सिविल सोसाइटी के महत्व के​ लिए अहिंसक अभियान चलाते रहे। उन्होंने वर्ष 2011 में पोलैंड और लिथुआनिया ने बेलारूस के उन नागरिकों की ​लिस्ट सौंपे जाने, जिनके अकाउंट उनके बैंकों में हैं के बाद गिरफ्तार किया गया और उन्हें 4 साल 5 महीने की सजा भी सुनाई गई। उन पर टैक्स चोरी, अवैध तस्करों के खुले आरोप लगाकर सत्ता ने उन्हें जेल में बंद रखा। शांति पुरस्कार रूसी मानवाधिकार संगठन मेमोरियल को मिलने से रूस समेत समूचे विश्व को एक तीखा संदेश मिला है। रूस के मानवाधिकार संगठन मेमोरियल की स्थापना 1987 में हुई थी जिसे पूर्व सोवियत संघ के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने किया था। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंद्रेई सखारोह सहित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के एक समूह ने कम्युनिस्ट शासन के पीड़ितों को सहायता प्रदान करने के लिए लम्बे अरसे तक काम किया। इस संगठन ने सोवियत संघ के तमाम अपराधों की पोल पूरी दुनिया में खोली। तीसरा नोबेल पुरस्कार यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन सैंटर फॉर सिविल लिबर्टीज को दिया गया है। इसकी स्थापना 2007 में की गई थी। यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते 6 माह से अधिक समय हो गया है। हवाई हमलों, बमों और अति आधुनिक मिसाइलों से विध्वंस हो रहा है। इस युद्ध ने पूरी दुनिया को मुसीबत में डाल रखा है। तेल, ऊर्जा और गेहूं की आपूर्ति बाधित होने से पूरी दुनिया मुसीबत में फंसी हुई है। लाखों लोग शरणार्थी हो गए हैं।कुल मिलाकर यूक्रेन अमेरिका, रूस का अखाड़ा बन गया है। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की धमकियों पर विश्वास करें तो परमाणु हमले का खतरा बना हुआ है। यूक्रेन का संगठन यूक्रेन में रूस के अपराध दर्ज करने और दुनियाभर में रूस के युद्ध अपराधों को नग्न करने में लगा हुआ है। यह संस्था भ्रष्टाचार के खिलाफ भी काफी अरसे से लड़ाई लड़ रही है। इस संस्था ने यूक्रेनी सिविल सोसाइटी को मजबूत करने के लिए एक स्टैंड लिया है और अधिकारियों पर यूक्रेन में एक पूर्ण लोकतंत्र स्थापित करने के लिए दबाव भी डाला है। इस संगठन को ​मिला पुरस्कार रूस को बेचैन कर रहा है और उसने इसकी जबरदस्त आलोचना भी की है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर यूक्रेन-रूस युद्ध कब रूकेगा और कब समूची दुनिया परमाणु हमले के डर से मुक्ति पाएगी। शांति पुरस्कार मानवता के कल्याण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं और संगठनों को दिए जाने से एक महत्वपूर्ण संदेश तो है, लेकिन सवाल सबसे बड़ा यही है कि क्या दुनिया शांति के मार्ग पर अग्रसर होगी। विश्व में शांति दूत माने गए भारत का स्टैंड यही है कि यूक्रेन-रूस युद्ध बंद करने के लिए दोनों देशों को बातचीत की टेबल पर आना होगा। भारत का आग्रह यही है कि ​आज की दुनिया में युद्ध के लिए कोई जगह नहीं। संपादकीय :सुरक्षा है तो खुशियां ही खुशियांमुस्लिम व ईसाई दलित ?अम्बानी को धमकीज्ञानवापी का 'बोलता सच'गरबा में हंगामा क्यों?तेलंगाना की राष्ट्रीय आकांक्षा?प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी रूसी राष्ट्रपति पुतिन को दो टूक कहा था कि युद्ध समाप्ति का रास्ता बातचीत से ही ​निकलेगा। पूरी दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध में युद्ध समाप्त कराने में भारत की भूमिका की तरफ देख रही है। दु​निया के किसी क्षेत्र में भी अगर युद्ध समाप्ति और शांति की स्थापना के लिए प्रयास होते हैं, तो उसकी सराहना ही की जानी चाहिए। पूरी दुनिया में अलग-अलग क्षेत्रों में युद्ध के खतरे बने हुए हैं और युद्ध आज के दौर में मानवता के लिए एक घोर अपराध बने हुए हैं। युद्ध में कोई भी जीते लेकिन हारती है केवल मानवता। मानवता को बचाने के ​लिए शांति पुरस्कार प्राप्त लोगों के कामकाज की सराहना तो होनी ही चाहिए। शांति स्थापना का काम पुरस्कार बांटने से ही नहीं होगा, बल्कि इसके लिए वैश्विक शक्तियों को अपना अहंकार छोड़कर ठोस कदम उठाने होंगे। युद्ध की स्थिति में वैश्विक शक्तियां केवल अपने हथियार बेचने का व्यापार करती नजर आ रही हैं। सभी अपने-अपने हितों की रक्षा करते हैं तो फिर युद्ध कैसे खत्म होगा।

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