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पाकिस्तान के संघर्ष विराम के लिए सहमत हो जाने के बाद जब यह उम्मीद की जा रही थी कि जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के दुस्साहस का दमन होगा
मुंबई में एक मॉल में बने अस्पताल में आग लगने से कोरोना मरीजों की मौत लापरवाही की ही कहानी बयान कर रही है। यह समझ आता है कि कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए मॉल में अस्पताल बनाना पड़ा होगा, लेकिन सवाल यह है कि वहां सुरक्षा और खासकर आग से बचने के उपाय करने आवश्यक क्यों नहीं समझे गए? ऐसा लगता है कि किसी ने इसकी तनिक भी परवाह नहीं की कि मॉल में बने अस्पताल में आग से बचाव के उपाय किए जाने चाहिए, क्योंकि मुंबई की मेयर मॉल में अस्पताल खुलने पर हैरानी जता रही हैं। उन्होंने इसकी जांच कराने की बात कही है, लेकिन आखिर इसकी जांच कौन करेगा कि बिना सुरक्षा उपायों के मॉल में अस्पताल कैसे खुल गया? मुंबई पुलिस को भी नहीं पता कि ऐसा कैसे हो गया? हैरानी नहीं कि अग्निशमन विभाग को भी मॉल में अस्पताल खुलने की कुछ जानकारी न हो।
यह अंधेरगर्दी के अलावा और कुछ नहीं कि मुंबई जैसे महानगर में एक मॉल में अस्पताल खुल जाता है और वहां के सुरक्षा उपायों के बारे में किसी को कुछ खबर नहीं होती। जब मुंबई में ऐसा हो सकता है तो फिर इसकी उम्मीद कौन करे कि अन्य शहरों में अस्पताल, होटल, मॉल आदि में अग्निशमन उपायों की कोई परवाह करता होगा। आम तौर पर ऐसे स्थलों में आग से बचाव के उपाय करने में लापरवाही इसलिए बरती जाती है, क्योंकि अग्निशमन विभाग, स्थानीय निकाय आदि अपनी जिम्मेदारी को लेकर घोर लापरवाह हैं। भ्रष्टाचार में लिप्त इन विभागों के कर्मचारी कुछ ले-देकर आवश्यक प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं। ऐसा इसीलिए होता है, क्योंकि इस देश में आम आदमी की जान का कोई मूल्य नहीं। विडंबना यह है कि होटलों, अस्पतालों, कारखानों आदि में आग लगने की घटनाओं और उनमें लोगों के मारे जाने के सिलसिले के बाद भी शासन-प्रशासन चेतने से इन्कार कर रहा है। इसे इससे समझा जा सकता है कि करीब पांच महीने पहले जब राजकोट, गुजरात के एक अस्पताल में आग लगने से छह कोरोना मरीजों की मौत हो गई थी, तब सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए सभी अस्पतालों को आग से बचाव के उपाय करने के निर्देश जारी किए थे। इसी मामले का संज्ञान लेकर केंद्रीय गृह सचिव ने राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर अस्पतालों में अग्निरोधी उपायों की अनदेखी पर चिंता जताई थी। मुंबई की घटना यही बताती है कि राज्य सरकारों ने न तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ध्यान दिया और न ही केंद्रीय गृह सचिव के पत्र पर। लगता नहीं कि हालात सुधरेंगे, क्योंकि दोषी लोग कठोर दंड से बचे रहते हैं।
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