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आदित्य चोपड़ा। भारत की संसदीय प्रणाली में जो विधि अपनाई गई उसमें संसद के भीतर 'विधायिका' (लेजिसलेचर) को राजसत्ता पर तरजीह देते हुए यह तय किया गया कि हर सूरत और परिस्थिति में इसके दोनों सदनों के भीतर बैठने वाले सदस्यों की आवाज और मत का संज्ञान दोनों सदनों के चुने हुए अध्यक्षों की मार्फत लिया जाये जिससे लोकतन्त्र के तरीके से स्थापित बहुमत की सरकार पूरे देश के मतदाताओं का प्रतिनिधित्व कर सके। हमारे पुरखे हमें जो यह बेहद जवाबदेह प्रणाली सौंपकर गये उसमें विधायिका को संसद के भीतर सत्ता से ऊपर ही नहीं रखा गया बल्कि इसे विधायिका (दोनों सदनों के चुने हुए सदस्यों) के प्रति जवाबदेह भी बनाया गया। इस जवाबदेही को सदन चलाने के नियमों में इस प्रकार ढाला गया कि अल्पमत में रहे विपक्ष के सदस्यों के पास हर मौके पर सरकार से जवाबतलबी का अधिकार मौजूद रहे। जवाबदेही लोकतन्त्र का अन्तर्निहित अंग इस प्रकार होता है कि इसकी मार्फत संसद में सरकार से जवाबतलबी की जाती है। इसके साथ ही दोनों सदनों के भीतर समय-समय पर ऐसी स्वस्थ परंपराएं स्थापित की गईं जिनका अनुसरण करके आने वाली पीढि़यां संसदीय प्रणाली को और मजबूत बना सकें। मगर संसद में फिलहाल जो वातावरण चल रहा है उसे देख कर निश्चित रूप से आने वाली पीढि़यां अपना माथा फोड़ेंगी और पूछेंगी कि उनके पुरखे स्वतन्त्रता सेनानियों द्वारा बनाई गई लोकतन्त्र की इमारत को किस तरह तहस-नहस करके गये हैं।