सम्पादकीय

नो मोर गांव जनाब

Rani Sahu
7 Jun 2022 7:22 PM GMT
नो मोर गांव जनाब
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ज्यों ही होरी का स्वर्ग प्रवास समय पूरा हुआ तो स्वर्ग के वारंट अधिकारी ने होरी को अपने पास बुला उसकी गांव वापसी के उसको वारंट थमाते उससे कहा, हे होरी! अपने कर्मों के हिसाब से जितने समय तुम स्वर्ग में रह सकते थे, वह समय अब पूरा हो गया है

ज्यों ही होरी का स्वर्ग प्रवास समय पूरा हुआ तो स्वर्ग के वारंट अधिकारी ने होरी को अपने पास बुला उसकी गांव वापसी के उसको वारंट थमाते उससे कहा, हे होरी! अपने कर्मों के हिसाब से जितने समय तुम स्वर्ग में रह सकते थे, वह समय अब पूरा हो गया है। अतः अब… ये लो अपने जाने के कागजात। तो अब साहब, होरी ने उन कागजों को स्वर्ग के वारंट अधिकारी से लेते पूछा। पर साहब! वहां जाकर तो फिर मैं… पहले की तरह मेरा शोषण करने वाले तो वहां अभी भी जिंदा हैं साहब! देखो! हम तुम्हें सरकार के मुंह लगों की तरह एक्सटेंशन नहीं दे सकते। इसलिए कल की मृत्युलोक जाने वाली ट्रेन से तुम अपने गांव। साहब! कुछ और कृपा कर देते तो… आपकी कसम! मुंह में कीड़े पड़ें, मरे को घोर नरक मिले जो झूठ बोलूं तो ! साहब! अब मेरे गांव में बचा ही क्या है गांव वाला जनाब! जिस गांव पर कभी गांव वालों का कब्जा होता था, उस गांव पर आज शहर वालों का कब्जा हो गया है जनाब! मेरे गांव में मेरे समय का गांव वाला अब एक भी नहीं है हुजूर! गांव वाले गांव में रहते हुए भी गांव से कोसों दूर रह गए हैं।

गोबर तो बहुत पहले गोबर नहीं रहा था जनाब! पर अब तो धनिया भी धनिया नहीं रही। मेरे गांव में अब सबकी भलमानस को चालाकी सूंघ गई है साहब! जिसे देखो वही अब खेतों में काम करने के बदले राजनीति करने में व्यस्त है। खेत रो रहे हैं, गांव वाले हंस रहे हैं। कुआं रो रहा है गांव वाले हंसते हुए सूखे नल के मुंह के पास मुंह लटकाए ठहाके लगा रहे हैं। खलिहान में बड़ी-बड़ी घास उग आई है। गौरेया पेड़ पर उदास हताश बैठी महीनों से दाने का इंतजार कर रही है। कोयल को कूह कूह करने को कहीं आम का पेड़ नहीं मिल रहा। वह मिसरी घोले तो कहां घोले? मोर को नाचने को जंगल नहीं मिल रहा, वह नाचे तो कहां नाचे? गांव वाले अब शहर वालों से अधिक शहरी हो गए हैं। न गांव में अब गाय बची है न बैल।
गांव वालों ने गाय सड़कों पर छोड़ दी है। पहले जिन गायों की पूजा होती थी, वही गाय अब अपने मालिकों की पूजा करने को विवश है। जिन बैलों के बिना कभी किसान अपने को असहाय समझता था, आज वे बैल ही किसानों के आगे असहाय हो गए हैं। वे गांव छोड़ना नहीं चाहते, गांव वाले उन्हें अपने गांव रखना नहीं चाहते। गांव के बुजुर्गों की तरह उन्हें भी कोई नहीं पूछ रहा। गांव का अब बैल और बुजर्गों से रिश्ता टूट गया है। गाय की जगह अब गांव वालों ने जात-जात के कुत्ते पालने शुरू कर दिए हैं। गांव वाले सुबह-सुबह अपने खेतों को जाने के बदले अब सुबह की सैर को जाने लगे हैं। गांव का पानी सीना तान कर दिन दहाड़े शहर चुरा कर ले जा रहा है। गांव की ताजी हवा दिन दहाड़े शहर चुरा कर ले जा रहा है जनाब! गांव की जमीन शहर चुरा कर ले जा रहा है जनाब! कोई कहने वाला नहीं, कोई सुनने वाला नहीं। गांव का अपहरण कर शहर उसे अपने यहां गुलामी करवाने ले जा रहा है। कोई शहर को टोकने वाला नहीं, कोई शहर को रोकने वाला नहीं। गांव के खेत बंजर हो रहे हैं, गांव के आदमी बंजर हो रहे हैं जनाब! महंगाई को तो मारो गोली जनाब! वहां शर्म के बदले अब धर्म पहले से भी चरम पर है साहब! इसलिए आपसे दोनों हाथ जोड़ होरी की विनती है कि आप उससे यहां जो चाहे करवा लीजिए, पर साहब…।
अशोक गौतम

सोर्स- divyahimachal


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