सम्पादकीय

जबरन न हो धर्मांतरण

Subhi
16 Nov 2022 3:15 AM GMT
जबरन न हो धर्मांतरण
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जबरन धर्मांतरण पर सख्त रुख दिखाते हुए इसे गंभीर मसला करार दिया और सरकार से एक सप्ताह के अंदर यह बताने को कहा कि वह ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए किस तरह के कदम उठा रही है। कोर्ट ने ठीक ही ध्यान दिलाया कि लालच देकर या किसी उपाय से मजबूर करके करवाया जाने वाला धर्मांतरण न केवल देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है बल्कि नागरिकों को संविधान से मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी बाधित करता है।

नवभारत टाइम्स: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जबरन धर्मांतरण पर सख्त रुख दिखाते हुए इसे गंभीर मसला करार दिया और सरकार से एक सप्ताह के अंदर यह बताने को कहा कि वह ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए किस तरह के कदम उठा रही है। कोर्ट ने ठीक ही ध्यान दिलाया कि लालच देकर या किसी उपाय से मजबूर करके करवाया जाने वाला धर्मांतरण न केवल देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है बल्कि नागरिकों को संविधान से मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी बाधित करता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की यह बात भी गौर करने वाली रही कि खासकर देश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इस तरह की काफी घटनाएं देखने को मिल रही हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे मामलों में आदिवासियों को इस बात का अहसास भी नहीं होता कि उनके साथ कोई साजिश हो रही है और उनके अधिकारों और अंत:करण की उनकी स्वतंत्रता पर डाका डाला जा रहा है। वे यही समझते हैं कि सब कुछ उनकी मदद के लिए किया जा रहा है। चूंकि सरकार को इन साजिशों की काफी हद तक जानकारी है, इसलिए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि वह इन्हें रोकने के लिए किस तरह के उपाय कर रही है या करने की उसकी योजना है। लेकिन जहां तक धर्मांतरण का सवाल है तो याद रखना चाहिए कि यह जितना संवेदनशील है, उतना ही जटिल भी है। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देश से भी स्पष्ट है कि डर या लालच के जरिए होने वाला धर्मांतरण नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी बाधित करता है। यानी लोगों को धर्मांतरण के लिए लालच देने या उन्हें डराने धमकाने की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष कोशिशों को रोकना जितना जरूरी है, उतना ही महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित करना भी है कि नागरिकों को अपने विवेक से स्वैच्छिक धर्मांतरण की आजादी पर किसी तरह का खतरा न महसूस हो। यह सावधानी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हाल के वर्षों में समाज में धर्मांतरण को लेकर जो विमर्श उभरा है, उसमें ज्यादा जोर धर्मांतरण रोकने पर है।

स्वैच्छिक धर्मांतरण की स्वतंत्रता कायम रखने का वैसा आग्रह नहीं दिखता है। यह भी याद रखने की जरूरत है कि अगर विभिन्न धर्मों के अनुयायियों में अपने अपने धर्मों की सर्वोच्चता का भाव असहिष्णुता की हदों को छूने लगता है तो विभिन्न धर्मों की खूबियों और कमियों पर स्वस्थ बहस की संभावना बाधित होती है। एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए स्वस्थ बहस की इस जमीन को सुरक्षित बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। निश्चित रूप से इसमें प्राथमिक भूमिका समाज के लोकतांत्रिक और प्रगतिशील तत्वों की ही बनती है। लेकिन सरकार को, अपने स्तर पर यह जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके नियम-कानून और तौर-तरीके समाज के इन लोकतांत्रिक और प्रगतिशील तत्वों की भूमिका को कमजोर करने वाले नहीं बल्कि इन्हें प्रोत्साहित करने वाले हों।


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