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- किसान की शब्दावली
प्रधानमंत्री मोदी और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 'बाहरी कैसे हैं? वे दशकों से भारतीय राजनीति और सार्वजनिक जीवन में हैं। संवैधानिक पदों पर रहे हैं। यदि 'बाहरी हैं, तो वे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के पदों पर आसीन कैसे हो सकते थे? उनका निर्वाचन ही अवैध था! चुनाव आयोग ने 'बाहरी को चुनाव लडऩे और मताधिकार के योग्य क्यों माना? लोकतंत्र की बुनियादी और निर्णायक इकाई-जनता-ने दोनों नेताओं को बार-बार जनादेश क्यों दिया? दरअसल यह किसी भी किसान आंदोलन की शब्दावली नहीं है। किसान आंदोलन के मंच से टिप्पणी की गई-ये दंगे कराने वाले नेता हैं! देश की संस्थाएं बेच रहे हैं। इन्हें बेचने की अनुमति किसने दी? यह शब्दावली भी किसान की नहीं, बल्कि घोर राजनीतिक और चुनावी है। किसी अदालत का कोई गंभीर फैसला इन दोनों नेताओं के खिलाफ उपलब्ध है क्या? खासतौर पर दंगों को लेकर…! विपक्ष की परंपरागत जुबां किसान न बोलें। आंदोलन के सूत्रधार संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा है कि उप्र और उत्तराखंड मिशन की शुरुआत हो चुकी है। भाजपा को वोट नहीं देना है। वोट की चोट मारना बेहद जरूरी है। क्या अब किसान यही राजनीतिक प्रचार करेंगे? क्या इसके जरिए किसानों के मुद्दों का समाधान निकलेगा? क्या मोदी और योगी तथा उनकी भाजपा को किसान-विरोधी करार दिया जाता रहेगा? ये कथन और सवाल किस ओर संकेत करते हैं? साफ है कि किसान का मुखौटा पहन कर, कुछ पराजित राजनीतिक चेहरे, अपना मकसद पूरा करना चाहते हैं! वे भी किसान होंगे, लेकिन उनकी तकलीफें और पीड़ा वह नहीं है, जो 86 फीसदी किसानों की हैं।
divyahimachal