सम्पादकीय

कोई परिवार, कोई सरकार नूफ अल मदीद की आवाज को दबा नहीं सकते, वो फिर लौटेगी

Rani Sahu
22 Dec 2021 10:26 AM GMT
कोई परिवार, कोई सरकार नूफ अल मदीद की आवाज को दबा नहीं सकते, वो फिर लौटेगी
x
अरब देश की औरतों को बाकी दुनिया और खासतौर पर तीसरी दुनिया के लोग दूर से जिस रूप में देखते और जानते हैं

मनीषा पांडेय अरब देश की औरतों को बाकी दुनिया और खासतौर पर तीसरी दुनिया के लोग दूर से जिस रूप में देखते और जानते हैं, वो हकीकत से कोसों दूर है. सच तो ये है कि अरब देशों की औरतें न सिर्फ अपने हक के लिए लड़ रही हैं, बल्कि वो सूली पर चढ़ाई जा रही हैं, जेलों में ठूंसी जा रही हैं और कोड़े खा रही हैं. फिर भी उनकी लड़ाई है कि रुकती नहीं.

मेल गार्जियनशिप कानून को खत्‍म करने के लिए पिछले एक दशक से कतर में चल रही लड़ाई का नया अध्‍याय ये है कि नूफ अल मदीद पिछले काफी दिनों से लापता हैं. नूफ अल मदीद जब कतर लौटीं तो उन्‍होंने ट्विटर पर लिखा था कि मैं जानती हूं कि ये एक समझदारी भरा फैसला नहीं है. मेरी जान को खतरा है. ये लोग मुझे मार भी सकते हैं, फिर भी मैं आखिरी सांस तक लडूंगी.
नूफ अल मदीद के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से आखिरी ट्वीट 13 अक्‍तूबर को हुआ था, जिसमें उन्‍होंने लिखा- "Hi, still not safe."
अक्‍तूबर के दूसरे हफ्ते में उनके ट्विटर हैंडल से अरबी भाषा एक के बाद एक दसियों ट्वीट हुए, जिसमें वो बार-बार एक ही बात कह रही थीं कि उनकी जान को खतरा है. मुझे पता था कि कतर आने पर ऐसा हो सकता है, लेकिन मुझे वापस आने का कोई पछतावा नहीं है. अपने ट्वीट में वो बार-बार कह रही थीं कि उन्‍होंने कतर के शेख से संपर्क करने और उन्‍हें बताने की कोशिश की कि उनकी जान को खतरा है. लेकिन कोई मदद नहीं मिली.
उनकी आखिरी कुछ ट्वीटों में से एक ट्वीट ये भी था- "मैंने खुद को मार डाले जाने से बचाने के लिए जितनी भी कोशिश हो सकती थी, कर ली." नूफ को ये मार दिए जाने का डर किसी और से नहीं, बल्कि खुद अपने ही बेहद संकीर्ण और रूढि़वादी परिवार से था. नूफ ने मदद के लिए पुलिस से लेकर सरकार तक से गुहार लगाई, लेकिन उनके आखिर के कुछ ट्वीट्स को देखकर अनुमान लगाया जा सकता था कि ये मदद उन्‍हें कहीं से भी नहीं मिली. नूफ ने कहा था कि पहले भी तीन बार उनके परिवार के लोग उन्‍हें जान से मारने की कोशिश कर चुके हैं. उन्‍होंने ट्विटर पर लिखा कि अगर मैं यहां न दिखूं तो समझ लीजिएगा कि मुझे मारा जा चुका है.
अब 13 अक्‍तूबर के बाद से नूफ ट्विटर से लापता हैं. इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशंस को नूफ की हत्‍या की आशंका सता रही है.
12 अक्‍तूबर को नूफ ने ट्विटर पर ये फोटो लगाई और लिखा, "मैं इस कमरे से बाहर नहीं निकलती. मुझे डर है कि कोई मुझे पकड़ लेगा."
नूफ की कहानी अरब देशों की हजारों-लाखों लड़कियों से बिलकुल अलग नहीं है. अगर उनकी कहानी में कुछ अलग है तो वो है उनका जज्‍बा, लड़ने की ताकत. आज की तारीख में अरब देशों में फेमिनिस्‍ट मूवमेंट धीरे-धीरे मजबूत हो रहा है. इसी साल 14 अक्‍तूबर को कुवैत की सरकारी समाचार एजेंसी के हवाले से एक खबर आई थी कि कुवैत सरकार ने वहां की सेना में महिलाओं की भर्ती को मंजूरी दे दी है. तीन साल पहले सऊदी अरब से भी सेना में महिलाओं की भर्ती पर अपनी रजामंदी की मोहर लगा दी थी. यूएई में यह अनुमति पहले ही दी जा चुकी थी. कुवैत में हुए इस बदलाव के बाद वह अरब दुनिया का तीसरा ऐसा देश बन गया था. लेकिन जैसेकि तब भी तमाम इंटरनेशनल अखबारों के ओपिनियन पेज इस सफलता का क्रेडिट कुवैत की सरकार को देने की बजाय वहां के स्‍त्री आंदोलन को दे रहे थे, जो पिछले कई दशकों से लगातार अपने हक-हुकूक और सत्‍ता में मर्दों के बराबर अधिकार के लिए आवाज उठा रहा है.
मिडिल ईस्‍ट में तेजी से मजबूत हो रहे इस आंदोलन के बहुत सारे चेहरे हैं, लेकिन हर चेहरा लुजिन अल हथलोल और मोना अल्‍तहावे की तरह खुशकिस्‍मत नहीं होता, जिसे उसके परिवार का प्‍यार और समर्थन हासिल हो. कुछ लोग नूफ की तरह भी होते हैं, जिनका अपना परिवार ही सच बोलने, हक के लिए लड़ने और पारंपरिक स्त्रियों की तरह जीवन न जीने के कारण उनकी जान का दुश्‍मन बन जाता है.
नूफ उन चंद महिलाओं में से हैं, जो मिडिल ईस्‍ट के मेल गार्जियनशिप कानून के खिलाफ काफी लंबे समय से मुखर होकर आवाज उठाती रही हैं. इजिप्शियन मूल की और अब अमेरिका में रह रही विमेन राइट्स एक्टिविस्‍ट मोना अल्‍तहावी कहती हैं, "पूरी दुनिया आगे निकल चुकी है और मिडिल ईस्‍ट आज भी दो साल पुराने रिग्रेसिव, मर्दवादी और औरत विरोधी कानूनों को ढो रहा है. इस्‍लामिक देशों को छोड़कर और दुनिया में कहीं भी मेल गार्जियनशिप जैसा कोई कानून नहीं है. किसी औरत को कॉलेज में पढ़ने, नौकरी करने, ट्रैवल करने या एक मामूली सा बैंक अकाउंट तक खुलवाने के लिए अपने पिता या पति का सिंगनेचर लेकर नहीं जाना पड़ता. ये सब बर्बर है और ये खत्‍म होना चाहिए. हम औरतें चुप नहीं बैठने वाली."
9 अक्‍तूबर को अपने होटल के कमरे की खिड़की की यह तस्‍वीर नूफ ने ट्विटर पर पोस्‍ट की थी.
नूफ की कहानी किसी फिल्‍मी कहानी से कम नहीं है. पिता के घर की जेल में कैद एक लड़की कैसे एक दिन अपने पिता का फोन चुराकर एक ऐप के जरिए अपनी यात्रा की परमिशन ले लेती है और फिर घर से भाग जाती है.
कतर में पिता के घर में नूफ की जिंदगी किसी नरक से कम नहीं थी. उन्‍हें कहीं भी अपने मर्जी से जाने और कुछ भी करने की इजाजत नहीं थी. परंपरा के खिलाफ जाकर कुछ भी करने पर उनके साथ मारपीट होती. नूफ चाहकर भी घर से भाग भी नहीं सकती थीं क्‍योंकि वहां के मेल गार्जियनशिप कानून के मुताबिक पिता या पति की लिखित इजाजत के बगैर कोई स्‍त्री न पढ़ाई कर सकती है, न नौकरी, न यात्रा. मेल गार्जियन का हस्‍ताक्षर हर बात के लिए जरूरी है. सिर्फ सांस लेने को छोड़कर.
आखिरकार एक दिन नूफ ने एक ऐसा कदम उठाया, जिसकी खुद उन्‍होंने कभी कल्‍पना नहीं की थी. उन्‍होंने अपने पिता का फोन चुराया और उसमें एक सरकारी ऐप मैटरश के जरिए खुद ही खुद को देश से बाहर यात्रा करने की ऑनलाइन परमिशन दे दी. ऐप पर चूंकि पिता का लॉगिन था तो सरकारी एजेंसियों ने ये माना कि ये इजाजत खुद नूफ के पिता की तरफ से उन्‍हें दी गई है. इसके बाद वह अपने कमरे की खिड़की से कूदकर घर से भाग गईं. एयरपोर्ट पहुंची, हवाई जहाज का टिकट खरीदा और यूक्रेन चली गईं. फिर वहां से वो भागकर ब्रिटेन गईं और ब्रिटिश सरकार से शरण मांगी.
उसके बाद अचानक पता नहीं क्‍या हुआ कि उन्‍होंने ब्रिटिश सरकार से शरण के लिए दी गई अर्जी वापस ले ली और अपने देश लौट गईं. सितंबर, 2021 में वो वापस आईं. वापस लौटने की वजह उन्‍होंने ये बताई कि अब उनका देश उनकी मदद करने और उन्‍हें सुरक्षा देने के लिए तैयार है. उन्‍हें कतर सरकार और वहां के मानवाधिकार संगठनों की ओर से ये आश्‍वासन दिया गया है कि उनकी जान को कोई खतरा नहीं होगा और उन्‍हें हर तरह की मदद की जाएगी.
ऐसा मानकर नूफ लौट तो आईं, लेकिन उनके लौटने के बाद से ही ट्विटर पर वो जिस तरह लिख रही थीं, उसे पढ़कर यही लग रहा था कि नूफ की जान को खतरा है. वाे सुरक्षित नहीं हैं. आखिरकार 13 अक्‍तूबर के बाद वो लापता ही हो गईं.
नूफ अल मदीद
इस वक्‍त कतर के मानवाधिकार संगठनों की तरफ से जो खबरें आ रही हैं, उनकी मानें तो नूफ जिंदा हैं और उन्‍हें उनकी मर्जी के खिलाफ एक अस्‍पताल में बंधक बनाकर रखा गया है.
नूफ अपने पिता के अत्‍याचारों की वजह से घर छोड़कर भागी थीं. सरकार के तमाम आश्‍वासन के बावजूद लौटने के बाद पिता ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. वो जिस होटल में रुकी थीं, पिता वहां भी पहुंच गए और उन्‍हें प्रताडि़त करना शुरू कर दिया. इस वक्‍त वो कहां और किस हाल में हैं, जिंदा हैं भी या नहीं, इन तमाम बातों को लेकर सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते हैं. जब तक नूफ खुद ट्विटर पर आकर अपनी कहानी नहीं सुनातीं, तब तक हम सिर्फ उम्‍मीदों और आशंकाओं के सहारे हैं.
लेकिन जैसाकि मोना अल्‍तहावे ने द इकोनॉमिस्‍ट के लिए लिखे अपने एक लेख में कहा था कि हजारों-हजार मौतें और हत्‍याएं भी हम औरतों की आवाज दबा नहीं पाएंगी. हम फीनिक्‍स परिंदे की माफिक राख से फिर उठ खड़े होंगे, कोई परिवार, कोई सरकार नूफ की आवाज को दबा नहीं सकता.
नूफ फिर लौटेगी.
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story