सम्पादकीय

पुलिस पर अंकुश नहीं

Gulabi
9 Dec 2021 10:39 AM GMT
पुलिस पर अंकुश नहीं
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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि
एनसीआरबी वर्ष 2017 से हिरासत में मौत के मामलों में गिरफ्तार पुलिसकर्मियों का आंकड़ा जारी कर रहा है। जाहिर है, ये आंकड़े जिस अवधि के हैं, उसे देखते हुए इन मौतों के लिए सिर्फ भाजपा को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बल्कि राज्यों के स्तर पर दूसरे दलों की सरकारों का रिकॉर्ड भी संदिग्ध है।
भारत में पुलिस निरंकुश ढंग से व्यवहार करती है, यह तो पुरानी कहानी है। लेकिन इसमें नया पहलू ऐसी निरंकुताओं को लेकर राजनीतिक स्तर पर बढ़ा समर्थन है। खास कर राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारों के सत्ता में आने के बाद से ऐसे समर्थन में इजाफा देखा गया है। पहले उत्तर प्रदेश में आरोप लगा कि वहां पुलिस मुठभेड़ को एक सरकारी नीति के रूप में अपना लिया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 'ठोक दो' नीति कुछ ऐसा ही संकेत देती लगी। उसका प्रसार अब दूसरे राज्यों में होता दिख रहा है। मसलन, ताजा आंकड़ों के मुताबिक असम में बीती मई से अब तक कुल 28 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हो चुकी है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एक अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 के बीच पुलिस हिरासत में और मुठभेड़ में होने वाली मौतों के मामले में पूर्वोत्तर राज्यों में असम पहले स्थान पर है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हाल में अपनी रिपोर्ट में बताया कि 2001 से वर्ष 2020 के बीच बीते 20 वर्षों में देश भर में पुलिस हिरासत 1,888 मौतें हुई हैं। लेकिन इन मामलों में अब तक महज 26 पुलिस वालों को ही दोषी ठहराया जा सका है। एनसीआरबी वर्ष 2017 से हिरासत में मौत के मामलों में गिरफ्तार पुलिसकर्मियों का आंकड़ा जारी कर रहा है।
जाहिर है, ये आंकड़े जिस अवधि के हैं, उसे देखते हुए इन मौतों के लिए सिर्फ भाजपा को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बल्कि राज्यों के स्तर पर दूसरे दलों की सरकारों का रिकॉर्ड भी संदिग्ध है। लेकिन अब दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि ऐसे आंकड़ों पर बहस तक नहीं होती। इन्हें एक सामान्य परिघटना का हिस्सा मान कर आगे बढ़ लिया जाता है। गौरतलब है कि बीते चार वर्षों में हिरासत में हुई मौतों के मामलों में 96 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया है। उनमें कितने को सजा होगी, जाहिर है, इस प्रश्न पर अधिक उम्मीद की गुंजाइश नहीं है। चूंकि सजा नहीं होती है, इसलिए पुलिसकर्मियों का मनोबल बढ़ा रहता है। कई बार उन पर नतीजे जल्द दिखाने का दबाव भी रहता है। लेकिन आखिर ऐसी मौतों की कहीं तो जवाबदेही तय होनी चाहिए। अन्यथा भारत किसी तर्क से खुद को सभ्य समाज बताना जारी रखेगा?
नया इण्डिया
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