सम्पादकीय

न माफी, न इस्तीफे

Subhi
6 Nov 2022 5:52 AM GMT
न माफी, न इस्तीफे
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निश्चित रूप से भगवान ने यह (पुल टूटना) किया है, ताकि चुनाव के दौरान लोगों को यह पता चल सके कि आपने किस तरह से सरकार चलाई है। भगवान ने लोगों को संदेश दिया है कि आज ये पुल टूटा, कल ये पूरा बंगाल ये इसी तरह खत्म कर देगी। इसे (राज्य को) बचाओ, ये भगवान ने संदेश भेजा है।’’

पी. चिदंबरम; निश्चित रूप से भगवान ने यह (पुल टूटना) किया है, ताकि चुनाव के दौरान लोगों को यह पता चल सके कि आपने किस तरह से सरकार चलाई है। भगवान ने लोगों को संदेश दिया है कि आज ये पुल टूटा, कल ये पूरा बंगाल ये इसी तरह खत्म कर देगी। इसे (राज्य को) बचाओ, ये भगवान ने संदेश भेजा है।''

गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बना एक सौ तैंतालीस साल पुराना झूलता पुल 26 अक्तूबर 2022 को लोगों के लिए खोला गया था। यह पुल सात महीने से मरम्मत और जीर्णोद्धार के काम के लिए बंद पड़ा था। किसी शहर में झूलता पुल आमतौर पर होता नहीं है। ऐसे पुल अमूमन पहाड़ी इलाकों में ही देखने को मिलते हैं।

यह पुल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है, और जब दिवाली के साथ पड़ने वाले गुजराती नववर्ष पर इसे खोला गया, तो इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों का आकर्षित होना स्वाभाविक ही था। रविवार तीस अक्तूबर को पुल टूट कर गिर गया। कम से कम एक सौ पैंतीस लोग मारे गए, जिनमें तिरपन बच्चे भी शामिल हैं।

रविवार और सोमवार को तो सिर्फ लोगों को बचाने की चिंता थी। कइयों को तो वाकई स्थानीय लोगों ने, जिनमें पड़ोसी इलाके मकरानी वास के करीब सौ मुसलमान युवक भी शामिल थे, बचा लिया था। सोमवार के बाद जिंदा कोई नहीं मिला, सिर्फ लाशें बरामद हुईं।

रविवार और सोमवार को सवाल नहीं पूछे गए, और ऐसा करना सही भी था। लेकिन गिरे पुल के मलबे में सवालों को हमेशा के लिए दफ्न नहीं किया जा सकता। जैसे जैसे 'तथ्य' सामने आते गए, वैसे वैसे सवाल और सवाल खड़े होते जा रहे हैं। ये सवाल प्रासंगिक हैं। यहां ऐसे ही सवाल पेश हैं और साथ ही कोष्ठक में उनके संभावित सही जवाब भी।

1- मरम्मत और जीर्णोद्धार के काम के लिए ठेकेदार के चुनाव के लिए क्या कोई निविदा जारी की गई थी? (बहुत संभावना है, नहीं।)

2- ठेकेदार नियुक्त करने की जिम्मेदारी किसकी थी? (बहुत संभावना है, राज्य सरकार के शहरी विकास विभाग की मंजूरी के साथ मोरबी नगर परिषद की।)

3- पुल की हालत को लेकर क्या कोई रिपोर्ट दी गई थी और जरूरी मरम्मत तथा जीर्णद्धार के लिए क्या कोई योजना बनाई गई थी? (बहुत संभावना है, नहीं। अब तक न तो राज्य सरकार ने, न ही मोरबी नगर परिषद और न ही पुलिस ने ऐसी किसी भी रिपोर्ट या योजना का खुलासा किया है।)

4- क्या ठेकेदार इस काम को करने के लिए योग्य था? (बहुत संभावना है, नहीं। इसका ठेका घड़ी बनाने वाली एक कंपनी ओरेवा, जो मोरबी में अपनी घड़ियों के लिए मशहूर रही है, को दिया गया था। निश्चित रूप से इस कंपनी के पास पुलों की मरम्मत जैसे काम के लिए कोई तकनीकी योग्यता या अनुभव नहीं था। ओरेवा ने इस काम को देव प्रकाश फैब्रिकेशन लिमिटेड को ठेका दे दिया था। )

5- क्या वाकई मरम्मत और जीर्णोद्धार का काम किया गया? (बहुत संभावना है, नहीं। जांच एजंसी ने स्थानीय अदालत में जो प्रारंभिक सबूत पेश किए, उनसे तो लगता है कि जंग लगे तारों पर सिर्फ रंग-रोगन कर काम निपटा दिया गया और उन्हें बदला नहीं गया और एल्युमीनियम की भारी चादरें पुल पर बिछा दी गईं।)

6- इस पुल को फिर से जनता के लिए खोलने के लिए ठेकेदार ने क्या अधिकारियों से मंजूरी ली? (नहीं। नगर परिषद के अधिकारियों और पुलिस ने इस पुल को फिर से खोले जाने की किसी भी तरह की जानकारी होने या मंजूरी देने की बात से इनकार किया है। तथाकथित 'मरम्मत' के बाद न तो दुरुस्ती का प्रमाणपत्र मांगा गया, न ही दिया गया।)

7- कारोबारी बंदोबस्त किस तरह का था? (बहुत संभावना है, यह दिली सौदा था, जिसमें ओरेवा को मरम्मत और जीर्णोद्धार का खर्चा भर उठाना था, जिसका कि कोई अनुमान नहीं है और फिर यह नगर परिषद या सरकार के बिना किसी दखल के लोगों से पंद्रह साल तक पैसा वसूलती।)

कोलकाता का पुल ढहने और मोरबी का झूलता पुल गिरने की घटना में दिलचस्प समानताएं देखी जा सकती हैं। कोलकाता हादसे में सोलह लोग गिरफ्तार हुए थे, जिन पर आपराधिक मानववध का आरोप लगा था और इनमें से सभी को जल्दी ही जमानत पर छोड़ दिया गया था। इनमें ठेकेदार और उसके नीचे काम करने वाले दूसरे ठेकेदारों के लोग शामिल थे।

कई हिस्सों में साढ़े तीन हजार पेज का आरोपपत्र दायर किया गया और इसमें कई और पन्ने जोड़ने की योजना थी। यह आरोप लगाया गया था कि पुल के ढांचे के जो नक्शे तैयार किए थे, उनकी किसी स्वतंत्र प्राधिकार से जांच नहीं करवाई गई।

आरोपपत्र में कहा गया था कि पुल में जो इस्पात इस्तेमाल किया गया था, वह जांच में खरा नहीं उतरा था। नट, बोल्ट और रेत भी घटिया किस्म की इस्तेमाल की गई। मीडिया के बड़े वर्ग ने इस बात का आरोप लगाया कि इस हादसे का कारण भ्रष्टाचार था। साथ ही निगरानी में नाकामी भी इसका कारण रही। इन सारी मशक्कतों के बावजूद छह साल बाद भी इस मामले में मुकदमा शुरू नहीं हो पाया है! मामूली बदलावों के साथ, ये सारी नाकामियां मोरबी हादसे पर भी लागू की जा सकती हैं।

घटना के बाद छोटे स्तर के कामगारों (ठेकेदार के मालिकों या दूसरी ठेकेदार कंपनियों की नहीं) की गिरफ्तारियां होनी आम बात है। इसी तरह प्रधानमंत्री के सदमे और सहानुभूति वाले बयान भी आए। प्रधानमंत्री ने अस्पताल का दौरा किया, जिसे उनके स्वागत के लिए रात भर में रंग पोत कर चमका दिया गया था। हमेशा की तरह मुआवजे का एलान भी हुआ, स्वतंत्र और गहन जांच करवाने का वादा भी हुआ और इस्तीफे पर हमेशा की तरह चुप्पी भी रही।

भारत में शासन की राजनीतिक व्यवस्था में 'जवाबदेही' शब्द गायब है। हादसे के बाद किसी ने माफी नहीं मांगी, किसी ने इस्तीफे की पेशकश नहीं की और जैसा कि निंदक कहेंगे कि इस बात की पूरी संभावना है कि कोई भी जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा और किसी को सजा नहीं होगी। अगर भगवान सुन रहा है- मोदी के ही शब्दों में- तो क्या भगवान गुजरात के लोगों को संदेश भेजेगा?


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