सम्पादकीय

बिहार में शराबबंदी के लिए नीतीश कुमार ने इस्तेमाल किया अपना ब्रह्मास्त्र

Rani Sahu
18 Nov 2021 2:18 PM GMT
बिहार में शराबबंदी के लिए नीतीश कुमार ने इस्तेमाल किया अपना ब्रह्मास्त्र
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बिहार में शराबबंदी को लेकर सरकार ने सबसे बड़े हथियार का इस्तेमाल कर ही लिया. जी हां मैं हथियार इसलिए कह रहा हूं

पंकज कुमार बिहार में शराबबंदी को लेकर सरकार ने सबसे बड़े हथियार का इस्तेमाल कर ही लिया. जी हां मैं हथियार इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इनका इस्तेमाल जिस विभाग में भी हुआ है वहां लोगों में हड़कंप मच गया. सबसे पहले जब शराबबंदी कानून लागू किया गया था, तब भी इन्हें साल 2016 में उत्पाद विभाग का प्रधान सचिव बनाया गया था. नीतीश कुमार के इस सपने को साकार करने में उनकी बड़ी भूमिका रही है. इसी वजह से सीएम ने फिर से उनके कंधों पर उस व्यवस्था को ठीक करने की जिम्मेदारी दे दी है. जिसको लेकर नीतीश सरकार की देशभर में आलोचना हो रही थी.

आप सोच रहे होंगे कि वो कौन से अफसर हैं जिनके बारे में मैं इतना कुछ बता रहा हूं. तो आप जान लीजिए ये अफसर अपराधियों और माफियाओं के लिए बेहद कड़क हैं और दवाब में आना तो इनकी कभी फितरत ही नहीं रही है. पहले ये बात से समझाते हैं और फिर कोई हेकड़ी दिखाने की कोशिश करता है तो सख्ती करने से भी परहेज नहीं करते. जी हां इनका नाम है के के पाठक. के के पाठक को नीतीश सरकार ने मद्य निषेध विभाग का अपर मुख्य सचिव बनाया है.
के. के. पाठक के विभाग में आने के बाद से ही हड़कंप मचा है
पाठक बिहार के पड़ोसी राज्य यूपी के बलिया के रहने वाले हैं. बेहद अनुशासित और सख्त केके पाठक को बॉडी बिल्डिंग का गहरा शौक है. कानून को कैसे जमीन पर सख्ती से उतारना है ये किसी अधिकारी को इनसे सीखना चाहिए. मुख्यमंत्री द्वारा निबंधन, उत्पाद एवं मद्यनिषेध विभाग का अपर मुख्य सचिव बनाए जाने के बाद ये चर्चा भी बिहार में होने लगी है कि इन्होंने कभी पूर्व सीएम लालू प्रसाद की नाक में दम कर दिया था.
दरअसल ये बात तीन दशक पहले की है. जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे. तब केके पाठक को तत्कालीन सीएम लालू यादव के गृह जिले में डीएम की जिम्मेदारी दी गई थी. लेकिन कहा जाता है कि इन्होंने ऑफिस में 100 दिन भी पूरा नहीं किया और सरकार ने इन्हें पटना सचिवालय बुला लिया. अंग्रेजी के प्रतिष्ठित अखबर The Telegraph में छपी एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक ये और सी. के. अनिल दो नौजवान आईएएस महज 98 दिन ही डीएम के ऑफिस में बैठ पाए थे.
बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी को भेज चुके हैं लीगल नोटिस
कहा जाता है कि लालू प्रसाद के खास लोग पाठक की कार्यशैली से इस कदर खफा और परेशान थे कि लालू प्रसाद को उनका ट्रांसफर कर सचिवालय बुलाना पड़ा था. अपनी दूसरे पोस्टिंग के बाद से ही केके पाठक सख्त अधिकारी के तौर पर पहचान बना चुके थे. अच्छे-अच्छे नेता और माफिया इनसे डरने लगे थे. बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने केके पाठक के ऊपर एक बार आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. जिसके बाद केके पाठक ने उन्हें लीगल नोटिस तक भेजने से परहेज नहीं किया था. ये बात साल 2016 की है.
1990 बैच के तेज तर्रार अधिकारी हैं के.के. पाठक
आपको बता दें कि मूल रूप से बिहार के पड़ोसी राज्य यूपी के रहने वाले केके पाठक 1990 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. दरअसल बिहार में जहरीली शराब के कारण जिस तरीके से लोगों की मौतें हुई हैं, ऐसे में शराबबंदी कानून की विफलता को लेकर सरकार की काफी किरकिरी हुई और ये बात सीएम नीतीश को बर्दाश्त नहीं है. इसलिए के के पाठक दोबारा शराबबंदी के कार्य के लिए लगाए गए हैं. के के पाठक का नाम जब सामने आया तो प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारे में चर्चा शुरू होना लाजिमी है. वजह है अच्छे-खासे माफियाओं में इनका डर, जिनके साथ ये अपने ही स्टाइल में पेश आते हैं.
विवादों में भी रहे हैं के.के पाठक
वैसे केके पाठक का विवादों से भी नाता रहा है. इसमें साल 2016 के मई महीने में बीजेपी के वरिष्ठ नेता को भी कानूनी नोटिस भेजने से लेकर, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के 7 ब्रांच मैनेजरों पर कार्रवाई सहित मां शकुंतला इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक कुमुद राज सिंह के साथ मारपीट भी शामिल है. इसके अलावा साल 2019 में केके पाठक पर एक ठेकेदार ने गंभीर आरोप लगाए थे. तब वो नीतीश सरकार में लघु सिंचाई विभाग के प्रधान सचिव के पद पर थे. उस दौरान आईएएस अफसर पर मां शकुंतला इंफ्रास्ट्रकचर प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक कुमुद राज सिंह ने लाठी से पिटाई और रिवॉल्वर से जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया था. लेकिन शराब बंदी को सफल बनाने के लिए केके पाठक को उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के अपर मुख्यसचिव बनाया जाना बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
गैरकानूनी शराब बिक्री पर लगाम कसेंगे के.के. पाठक
बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद साल 2016 में केके पाठक को यह जिम्मेदारी दी गई थी. लेकिन बाद में उन्हें इस पद से हटा दिया गया था. अब एक बार फिर केके पाठक के कंधे पर बिहार में शराबबंदी को सफल बनाने का जिम्मा होगा. उनकी नियुक्ति पर विपक्षी पार्टी आरजेडी ने सवाल भी उठाए हैं. हाल के दिनों में बिहार के पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज और मुज़फ्फरपुर में ज़हरीली शराब पीने से 40 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
वहीं इस साल राज्य में ज़हरीली शराब पीने से कुल 90 लोगों की मौत हो चुकी है. विभागीय आंकड़ों के अनुसार अप्रैल, 2016 में राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद ज़हरीली शराब से हुई मौत का पहला मामला गोपालगंज में हुआ जहां 19 लोगों की मौत हुई थी. पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद से राज्य में अब तक कुल 125 लोगों की मौत ज़हरीली शराब पीने से हो चुकी है. ज़ाहिर है प्रशासनिक तौर पर विफलता के मद्देनजर सीएम नीतीश कुमार ने अपने तुरुप के इक्के का इस्तेमाल कर दिया है जो राज्य में शराबबंदी को लेकर माफियाओं और सफेदपोशों की नाक में दम कर उन्हें कानून का सबक सिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाला है.


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