सम्पादकीय

नीति आयोग का हेल्थ इंडेक्सः सुधार की गुंजाइश

Subhi
30 Dec 2021 3:30 AM GMT
नीति आयोग का हेल्थ इंडेक्सः सुधार की गुंजाइश
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नीति आयोग की ओर से सोमवार को जारी चौथी हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट कई दृष्टियों से गौर करने लायक है। सबसे पहले तो यही तथ्य ध्यान खींचता है कि लगातार चौथे साल ओवरऑल परफॉरमेंस के लिहाज से केरल टॉप पर रहा है।

नीति आयोग की ओर से सोमवार को जारी चौथी हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट कई दृष्टियों से गौर करने लायक है। सबसे पहले तो यही तथ्य ध्यान खींचता है कि लगातार चौथे साल ओवरऑल परफॉरमेंस के लिहाज से केरल टॉप पर रहा है। इस कैटिगरी में यूपी इस बार सबसे निचले स्थान पर है। लेकिन इसी रिपोर्ट में राज्यों की इंक्रीमेंटल परफॉरमेंस भी देखी गई है और इस कसौटी पर केरल 12वें स्थान पर खिसका नजर आता है। इंक्रीमेंटल परफॉरमेंस यानी प्रदर्शन में सुधार के लिहाज से यूपी पूरे देश में अव्वल है। 43 में से 33 मानकों पर उसकी स्थिति पहले की अपेक्षा बेहतर पाई गई है। ध्यान रहे इस रिपोर्ट में बेस ईयर 2018-19 है और रेफरेंस ईयर 2019-20। इसका मतलब यह हुआ कि राज्यों में साल 2018-19 के मुकाबले 2019-20 की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को परखा गया है। केंद्र शासित क्षेत्रों की श्रेणी में यूपी जैसी ही स्थिति दिल्ली की पाई गई है। ओवरऑल परफॉरमेंस के मामले में यह सबसे फिसड्डी क्षेत्रों में है, मगर इंक्रीमेंटल परफॉरमेंस यानी प्रदर्शन में सुधार की दृष्टि से सबसे अग्रणी क्षेत्रों में शामिल है।

निश्चित रूप से यूपी और दिल्ली की मौजूदा सरकारें प्रदर्शन में सुधार का श्रेय लेना चाहेंगी और इसमें कुछ गलत भी नहीं है। लेकिन अगर विभिन्न राज्यों में तुलना के सीमित नजरिए से थोड़ा हटकर देखा जाए तो पूरे देश की स्थिति खास संतोषजनक नहीं कही जा सकती। उदाहरण के लिए, सभी बड़े राज्यों के जिला अस्पतालों में स्पेशलिस्टों की कमी पाई गई है। यह जरूर है कि कुछ राज्यों में यह कमी नगण्य (जैसे राजस्थान में 2 फीसदी) कही जा सकती है, लेकिन मध्य प्रदेश जैसे राज्य भी हैं, जहां 58 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। इसी तरह आधे राज्य ऐसे हैं, जहां राज्य सरकार के कुल खर्च में से स्वास्थ्य के मद में किए गए खर्च का अनुपात कम हुआ है। स्वाभाविक रूप से खर्च में कमी का असर स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर होता है। इसलिए यह देखा जाना चाहिए कि विभिन्न राज्यों में इस कमी की किसी और तरीके से भरपाई की कोशिशें भी हो रही हैं या नहीं
बहरहाल, गौर करने वाली एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि यह रिपोर्ट जारी भले अब की गई हो, लेकिन इसमें कोरोना महामारी का दौर कवर नहीं हुआ है। कोरोना के दौर में स्वास्थ्य सेवाओं की क्या क्षमता थी, उसके सामने किस तरह की चुनौतियां आईं और उसके क्या सबके रहे, इन सबका अलग से अध्ययन किए जाने की जरूरत है। लेकिन यह रिपोर्ट भी इतना तो स्पष्ट कर ही देती है कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति में सुधार की कोशिशें लगातार जारी रहनी चाहिए। वरना इस मामले में पिछड़े माने जाने वाले राज्य अपनी स्थिति बेहतर कर सकते हैं तो पारंपरिक तौर पर बेहतर माने वाले राज्यों की स्थिति बदतर होने में भी वक्त नहीं लगेगा।

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