सम्पादकीय

निशांत का ब्लॉग: सीएनजी का बढ़ता दाम पड़ेगा पर्यावरण को महंगा

Rani Sahu
20 Oct 2022 6:17 PM GMT
निशांत का ब्लॉग: सीएनजी का बढ़ता दाम पड़ेगा पर्यावरण को महंगा
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
देश की अर्थव्यवस्था के विकास को नापने का एक महत्वपूर्ण पैमाना है देश के ट्रांसपोर्ट सेक्टर का आकार और प्रकार। हालांकि देश की परिवहन प्रणाली तेज गति से विकास कर रही है, मगर उसी अनुपात में परिवहन से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में भी वृद्धि हो रही है। ध्यान रहे कि भारत में होने वाले कुल कार्बन उत्सर्जन में परिवहन या ट्रांसपोर्ट सेक्टर का योगदान लगभग 14 प्रतिशत है और इसमें से 90 प्रतिशत उत्सर्जन अकेले सड़क परिवहन से होता है। बात सड़क परिवहन की आती है तो याद आता है पेट्रोल और डीजल।
फिर याद आती है सीएनजी (कम्प्रेस्ड नैचुरल गैस), और थोड़ी बहुत याद आती है इलेक्ट्रिक वाहनों की। पेट्रोल और डीजल के नाम से याद आता है काला प्रदूषणकारी धुआं और इलेक्ट्रिक वाहनों के नाम से बंधती है कुछ उम्मीद, मगर इन गाड़ियों के दाम याद आते ही वो उम्मीद फिलहाल टूट ही रही है। सीएनजी का नाम सुनते ही याद आता है पब्लिक ट्रांसपोर्ट, कम दाम, ज्यादा माइलेज, और पर्यावरण के लिए पेट्रोल/डीजल से बेहतर विकल्प।
यहां यह जानना जरूरी है कि प्राकृतिक गैस अब वैश्विक बिजली उत्पादन का लगभग एक चौथाई हिस्सा है और मध्यम अवधि में इसकी मदद से नेट जीरो ऊर्जा प्रणालियों का विकास किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी मदद से हम पेट्रोल और डीजल के बाद धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक या रिन्यूएबल ऊर्जा पर निर्भर परिवहन प्रणाली की ओर बढ़ सकते हैं।
सीएनजी या कम्प्रेस्ड प्राकृतिक गैस भी जीवाश्म ईंधन का एक प्रकार है, लेकिन इससे कार्बन का उत्सर्जन पेट्रोल या डीजल के मुकाबले 90 प्रतिशत तक कम होता है। इतना ही नहीं, इसका माइलेज भी अपेक्षाकृत अधिक होता है। जब तक इलेक्ट्रिक वाहन आम आदमी के बजट में नहीं आते, तब तक सीएनजी की गाड़ियां पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों का एक सस्ता और बेहतर विकल्प हो सकता है। मगर बीते कुछ सालों में सीएनजी के दाम इस कदर बढ़े हैं कि आज यह पेट्रोल और डीजल के बराबर पहुंच गए हैं।
कुछ साल पहले तक एक लीटर पेट्रोल और एक किलो सीएनजी के दाम में लगभग 30-35 रुपए का अंतर था। आज हालत यह है कि कम प्रदूषण करने वाली सीएनजी का दाम पेट्रोल के बराबर हो चुका है, इसलिए आम उपभोक्ता के पास कोई व्यावहारिक वजह नहीं कि वो 3.5 लाख की पेट्रोल कार की जगह 5 लाख की सीएनजी कार ले। सीमित बजट के साथ बेहतर पर्यावरण और कम प्रदूषण की चाहत वाले उपभोक्ता के पास आज कोई खास वजह नहीं बची है कि वो अपनी गाढ़ी कमाई पेट्रोल के दाम पर मिलने वाली सीएनजी के लिए कार खरीदने में लगाए। इसका बुरा असर पर्यावरण पर पड़ेगा।
Rani Sahu

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