सम्पादकीय

नब्बे खंड : महात्मा के शब्द

Rounak Dey
5 Dec 2021 1:46 AM GMT
नब्बे खंड : महात्मा के शब्द
x
कुशल संपादकों और अनुवादकों की टीम के प्रति आभार जताने का वाजिब कारण उपलब्ध होगा।

सर्वाधिक उल्लेखनीय व्यक्तियों में से एक, जिन्हें मैं जानता हूं, मद्रास के साहित्य के प्रोफेसर के. स्वामीनाथन थे, जो आगे चलकर महात्मा गांधी के कलेक्टेड वर्क्स के मुख्य संपादक बने। स्वामीनाथन का जन्म तीन दिसंबर, 1896 को पुदुकोट्टई में हुआ था। 1996 में जब उनकी जन्म सदी मनाई जा रही थी, मैंने द हिंदू में उनके जीवन वृत्त पर लिखा था (बाद में विस्तृत रूप से इसे मेरी किताब एन एंथ्रोपोलॉजिस्ट, अमंग द मार्क्सिस्ट ऐंड अदर एसे में संकिलत किया गया)। करीब चौथाई सदी बाद उनके जन्मदिन के मौके पर मैं संपादकीय छात्रवृत्ति के उस महान प्रोजेक्ट के बारे में लिख रहा हूं, जिसे उनकी देखरेख में पूरा किया गया।

महात्मा की हत्या के बाद कांग्रेस कार्य समिति ने उनके नाम से नेशनल मेमोरियल फंड की स्थापना की। अंतर-धार्मिक सद्भाव और गांधी के प्रिय रचनात्मक कार्यों को प्रोत्साहित करने के साथ ही यह संकल्प भी लिया गया कि, 'विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध उनके सभी लेखन और शिक्षाओं को एकत्र कर संरक्षित और प्रकाशित किया जाएगा और एक संग्रहालय में गांधी से जुड़ी सामग्री को संरक्षित रखा जाएगा।'
1949 में गांधी स्मारक निधि की स्थापना की गई। साबरमती आश्रम के सहयोग से इसने मोहनदास करमचंद गांधी के व्यापक रूप से फैले लेखन को संग्रहित करना शुरू किया, जो कि विभिन्न विधाओं में और विभिन्न शीर्षकों के साथ अंग्रेजी और हिंदी के साथ ही उनकी मातृभाषा गुजराती में थे। गांधी ने तीन किताबें, सैकड़ों परचे, दर्जनों याचिकाएं, सैकड़ों अखबारी लेख और हजारों चिटि्ठयां लिखीं। उन्होंने अनेक साक्षात्कार और ढेर सारे भाषण दिए। उन्होंने लेखन की एक विधा भी ईजाद की। यह थी 'मौन दिवस' की टिप्पणी, जिसे अक्सर उन्होंने सोमवार को लिखा, जब वह मौन रखते थे।
1956 में गांधी स्मारक निधि ने पाया कि उसके पास इतनी सामग्री एकत्र हो गई है, जिसे किताब रूप में लाने का काम शुरू किया जा सकता है। जाने-माने गुजरातीभाषी कांग्रेसी वल्लभाई पटेल के निधन के बाद मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में कलेक्टेड वर्क्स तैयार करने के लिए एक सलाहकार बोर्ड की स्थापना की गई। बोर्ड के अन्य सदस्यों में नवजीवन प्रेस का एक प्रतिनिधि - उसका सहयोग जरूरी था, क्योंकि गांधी के लेखन का कॉपीराइट उसके पास था- गांधी के करीबी रहे अनेक सामाजिक कार्यकर्ता और महात्मा के छोटे बेटे देवदास शामिल थे, जो कि खुद हिंदुस्तान टाइम्स अखबार के संपादक थे।
देवदास गांधी ने महात्मा के जीवन के बारे में एक वृत्तचित्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और अब वह उनके लेखन को भी हमेशा के लिए संरक्षित करने में एक भूमिका निभाने जा रहे थे। कलेक्टेड वर्क्स के पहले मुख्य संपादक के तौर पर जिस पहले व्यक्ति की नियुक्ति होनी थी, वह थे भरतन कुमारप्पा। भरतन दर्शन और धर्म के विद्वान थे और एडनबर्ग और लंदन यूनिवर्सिटीज से उन्होंने अपनी डॉक्टेरेट की डिग्रियां ली थीं, साथ ही वह ग्रामीण निर्माण को लेकर गांधी के साथ अनेक वर्ष व्यतीत कर चुके थे।
गांधी के लेखन के समायोजन और संपादन से जुड़े काम के लिए भरतन कुमारप्पा एकदम सही व्यक्ति थे। लेकिन छपने के लिए पहला खंड प्रेस में भेजने के बाद जून, 1957 में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनकी जगह पूर्व स्वतंत्रता सेनानी जयरामदास दौलतराम को लाया गया, लेकिन उनका दिल इस काम में नहीं लगा। नाखुशी में दो साल बिताने के बाद वह राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए इससे अलग हो गए। दौलतराम की जगह के. स्वामीनाथन को लाया गया, जिनके नाम की उच्च सिफारिश विनोबा भावे ने की थी।
तिरसठ साल की उम्र में स्वामीनाथन साहित्य का अपना शानदार करियर छोड़कर दिल्ली आ गए। उनका प्रशिक्षण और अभिविन्यास कई मायनों में परियोजना के असाधारण प्रथम संपादक भरतन कुमारप्पा से मिलता-जुलता था। दोनों अपनी तमिल जड़ों को लेकर गर्व करते थे, दोनों द्विभाषी थे, अपनी मातृभाषा और वैश्विक बौद्धिक जगत में स्वीकार्य अंग्रेजी में। दोनों धार्मिक रूप से विश्वव्यापी थे, भरतन एक ईसाई थे, जिन्होंने रामानुजाचार्य पर एक किताब लिखी थी, और स्वामीनाथन एक हिंदू थे, जो बाइबिल पढ़ना पसंद करते थे।
इस तरह की जिम्मेदारी संभालने के लिहाज से स्वामीनाथन की सबसे प्रासंगिक योग्यता थी सबको साथ लेकर और उनके साथ टीम के एक सदस्य के रूप में काम करने की उनकी क्षमता। लंबे समय तक उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज मद्रास में अंग्रेजी विभाग के प्रमुख के रूप में सेवा दी थी और पांच वर्षों तक वह गवर्मेंट आर्ट्स कॉलेज के प्रिंसिपल रहे थे। स्वामीनाथन ने जिनकी सबसे पहले नियुक्ति की, वह थे सी. एन. पटेल जो कि खुद भी अंग्रेजी के प्रोफेसर थे और गांधी की तरह गुजरातीभाषी थे। उन्होंने इस प्रोजेक्ट में उपप्रधान संपादक के रूप में काम किया। स्वामीनाथन की टीम के अन्य सदस्यों में जे. पी. उनियाल शामिल थे, जिन्होंने गांधी की शिष्या मीराबेन के साथ हिमालय में काम किया था। उनके अलावा सुप्रसिद्ध कवि भवानी प्रसाद मिश्र थे, जिन्होंने कलेक्टेड वर्क्स के हिंदी अनुवाद के प्रभारी संपादक के रूप में काम किया।
1964 में, जब नौ खंड आ चुके थे, गांधी की अमेरिकी विद्वान जोएन बोन्डुरेंट ने इसके बारे में मॉडर्न हिस्ट्री में लिखा। यह प्रोजेक्ट, उन्होंने लिखा, 'सर्वोच्च प्रशंसा' का पात्र है। किसी भी मामले में संपादकों ने इसमें दखल नहीं दिया है; फिर भी वे बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देने में सफल रहे हैं, जो कि अच्छी जानकारी वाले पाठकों के मन में उठ सकते हैं। स्रोतों के सत्यापन में, लेखकत्व का प्रमाणीकरण, पत्रों में अल्पज्ञात व्यक्तियों की पहचान, और मूल्यवान पृष्ठभूमि और परिशिष्ट सामग्री को जोड़ने में, उन्होंने छात्रवृत्ति के उच्चतम मानकों को पूरा किया है।'
आने वाले वर्षों में यह स्तर बना रहा। हालांकि 1975-77 में इमरजेंसी के दौरान इसमें कुछ रुकावट आई, तब तक इसके पचास से अधिक खंड आ चुके थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कृपापात्र इस आधार पर स्वामीनाथन से छुटकारा पाना चाहते थे, क्योंकि वह एक-एक कर के खंडों को सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष मोरारजी देसाई के पास भेजते थे, जो कि उस समय जेल में थे। सौभाग्य से, समझदारी की जीत हुई, और उसके बाद प्रधान संपादक कई वर्षों तक बने रहे और गांधी के कालानुक्रमिक लेखन के मूल नब्बे खंड का सेट तैयार होने के बाद 1985 में सेवानिवृत्त हुए। (उसके बाद सात पूरक खंड और आए)
स्वामीनाथन की उनके सहयोगियों ने बहुत सराहना की थी। गुजराती लेखक हसमुख शाह ने अपने प्रधान संपादक के बारे में लिखा कि 'उन्होंने संपादन और शोध के विशाल कार्य को पूरा करने के लिए सहज व्यवस्था बनाई। वह अपनी टीम की सीमाओं और व्यक्तित्व की विशेषताओं का आकलन करने में तेज थे। मैंने उन्हें कभी आवाज ऊंची करते या किसी को डांटते नहीं सुना। उनका जीवन और समर्पण प्राचीन विद्वानों और ऋषियों के युग की याद दिलाता था।'
मेरे पास कलेक्टेड वर्क्स का मुद्रित सेट है। यह गांधी से जुड़े विश्वनीय पोर्टल गांधी हेरिटेज पोर्टल पर ऑनलाइन भी उपलब्ध है, जिसका संचालन साबरमती आश्रम करता है। अभी अजन्मे विद्वानों और भारतीय के अलावा अनेक अन्य राष्ट्रवादियों के पास के स्वामानीथन और उनके कुशल संपादकों और अनुवादकों की टीम के प्रति आभार जताने का वाजिब कारण उपलब्ध होगा।
Next Story