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भारत के 11वें नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) रहे विनोद राय (Vinod Rai) ने कांग्रेस (Congress) नेता संजय निरूपम (Sanjay Nirupam) से माफी क्या मांगी
प्रवीण कुमार भारत के 11वें नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) रहे विनोद राय (Vinod Rai) ने कांग्रेस (Congress) नेता संजय निरूपम (Sanjay Nirupam) से माफी क्या मांगी, पूरी कांग्रेस पार्टी एक स्वर में यह दावा करने लगी है कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला हुआ ही नहीं था. यह सब तत्कालीन कांग्रेस नीत यूपीए सरकार (मनमोहन सरकार) को बदनाम करने की साजिश भर थी जिसमें विनोद राय ने अहम भूमिका निभाई थी. अब विनोद राय के माफीनामे को लेकर तर्क-वितर्क शुरू हो गए हैं. कोई कह रहा है कि यह माफीनामा दीपावली से पहले किया गया, एक राजनीतिक धमाका है तो कोई कह रहा है कि माफीनामे को '2जी घोटाला-एक बड़ा फ्रॉड' के तौर पर देखा जाना चाहिए. अब इस माफीनामे के पीछे की असली कहानी क्या है जानने के लिए घटनाक्रम की क्रोनोलॉजी को समझना जरूरी है.
संत कबीर कहते हैं, 'हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर'. कबीर ने जब यह लाइन लिखी होगी तब उन्होंने भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि सत्ता की चाह में कुछ ताकतवर लोग हरि यानि ईश्वर और गुरु की परिभाषा ही बदल देंगे. गुरु की कृपादृष्टि बनी रहे के चक्कर में फंसकर कुछ लोग पूरे सिस्टम को तहस-नहस कर देते हैं. और जब बात बिगड़ जाती है तो माफी मांगकर आगे बढ़ जाते हैं. भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) विनोद राय ने जो कुछ पहले किया और जो कुछ आज कर रहे हैं, कहीं न कहीं उसके पीछे एक आका या कहें तो गुरु के साजिश की बू आती है. जब बात गुरु से शुरू हुई है तो 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की तीन अहम तारीखों का जिक्र करना जरूरी होगा. इसे संयोग कहें या प्रयोग ये अलग बात है, लेकिन इन तारीखों में येन-केन-प्रकारेण गुरु (गुरुवार का दिन) का प्रभाव तो दिखता ही है.
2 फरवरी 2012 गुरुवार का दिन
देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने 2 फरवरी 2012 को कहा था कि कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन गैर-कानूनी है. यह सत्ता के मनमाने इस्तेमाल का एक उदाहरण है. इसके बाद अदालत ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा के कार्यकाल के दौरान 11 कंपनियों को 10 जनवरी 2008 को या उसके बाद आवंटित सभी 122 दूरसंचार लाइसेंस रद्द कर दिए थे.
21 दिसंबर 2017 गुरुवार का दिन
2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटन मामले में सरकारी राजस्व को भारी नुकसान के भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) तथा केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई के आंकलन को बड़ा झटका देते हुए एक विशेष अदालत ने यह कहकर घोटाले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया कि कुछ लोगों ने चालाकी से कुछ चुनिंदा तथ्यों का इंतजाम किया और एक घोटाला पैदा कर दिया जबकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था.
28 अक्टूबर 2021 गुरुवार का दिन
दिल्ली के पटियाला हाउस स्थित मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में दायर अपने हलफनामे में पूर्व नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक विनोद राय ने कांग्रेस नेता संजय निरुपम से माफी मांगते हुए कहा, मैं समझता हूं कि मेरे बयान से संजय निरूपम, उनके परिवार और उनके शुभचिंतकों को ठेस पहुंची है और मैं इसके लिए बिना शर्त माफी मांगना चाहता हूं. मुझे उम्मीद है कि संजय निरूपम मेरी बिना शर्त माफी पर विचार करेंगे, स्वीकार करेंगे और इस मुद्दे को बंद कर देंगे.'
2जी घोटाले को बड़ा फ्रॉड कहना जल्दबाजी होगी
दरअसल, साल 2014 में विनोद राय की एक किताब आई थी. Not Just an Accountant: The Diary of the Nation's Conscience Keeper शीर्षक से प्रकाशित इस किताब में लेखक विनोद राय ने कांग्रेस नेता संजय निरूपम के नाम का उल्लेख उन सांसदों के साथ किया था, जिन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में कैग की रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम नहीं लेने के लिए उन पर कथित तौर पर दबाव बनाया था. इतना ही नहीं, पूर्व सीएजी ने अपनी किताब में लगाए गए ये आरोप एक खबरिया चैनल को दिए साक्षात्कारों में भी दोहराया था. फिर क्या था. संजय निरूपम ने विनोद राय के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया. अब जबकि विनोद राय ने इस मामले में संजय निरूपम से माफी मांग ली है तो इससे इस बात की गारंटी तो मिल नहीं सकती कि 2जी घोटाला हुआ ही नहीं. यह एक बड़ा फ्रॉड था.
इस बात से कोई इंकार नहीं है कि 2जी घोटाले में अब तक जो तथ्य या विशेष अदालत के जो फैसले आए हैं सब तत्कालीन यूपीए सरकार को बदनाम करने और देश की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने की साजिश थी. इस साजिश के हिस्सेदारों के नामों को ट्वीटर पर चिड़िया बनाकर खूब उड़ाए भी जा रहे हैं. इस बात से भी इंकार नहीं कि यह एक गंभीर किस्म का आपराधिक षड्यंत्र है. कांग्रेस ने अपने प्रवक्ता पवन खेड़ा के हवाले से एक ट्वीट में यहां तक लिखा कि जो आदमी अपनी किताब बेचने के लिए इतने बड़े झूठ का सहारा ले सकता है, सरेआम पूरे देश के सामने झूठ बोल सकता है; वो अपना और अपने आकाओं का एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए क्या-क्या नहीं कर सकता है.
लेकिन इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सीबीआई ने विशेष अदालत के उस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील भी कर रखी है जिसमें मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था. निश्चित तौर पर यहां नमक हलाल फिल्म के उस गाने की पहली लाइन रात बाकी… बात बाकी… को आप गुनगुना सकते हैं. कहने का मतलब यह कि कांग्रेस को इसके लिए अंतिम फैसले का इंतजार होगा. तब तक इस घोटाले में तत्कालीन यूपीए सरकार को क्लीन चिट देना या इस पूरे घोटाले को एक बड़ा फ्रॉड कहना जल्दबाजी होगी.
राजनीतिक धमाका कैसे हो सकता है माफीनामा?
संजय निरूपम से विनोद राय के माफीनामे को दीपावली से पहले मोदी-शाह के राजनीतिक धमाके के तौर पर भी देखा जा रहा है. दरअसल विशेष अदालत ने 2जी घोटाले के सभी आरोपियों को बरी कर इस मामले को पूरी तरह से खत्म कर दिया था. अब जबकि उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनावी सरगर्मियां तेज हो चली हैं, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे से लोगों को भटकाने के लिए फिर से 2जी घोटाले को हवा दी जा रही है. यूपी चुनाव में 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने और पांच प्रतिज्ञा का राग छेड़कर कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी ने जिस तरह की मुश्किलें बीजेपी के समक्ष खड़ी कर दी हैं, आने वाले वक्त में इससे निपटने के लिए बीजेपी के रणनीतिकारों को कांग्रेस पार्टी के और भी गड़े मुर्दे उखाड़ने में मेहनत करनी पड़ेगी. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि विनोद राय का माफीनामा बीजेपी जैसी ताकतवर सत्ताधारी पार्टी के लिए राजनीतिक धमाका कैसे हो सकता है. आज जब देश 5जी की तरंगों में अपने रंग भर रहा है, 2जी के गड़े मुर्दे को उखाड़ और उभारकर कुछ भी हासिल नहीं हो सकता.
बहरहाल, जब बात निकली है तो गालिब के शब्दों में यह दूर तलक जाएगी ही. अगर किताब में गलत तथ्य को पेश करने और मानहानि का मुकदमा होने पर हलफनामे में विनोद राय जैसे ताकतवर और कद्दावर पूर्व नौकरशाह माफी मांग सकते हैं तो उन्हें आज भारतीय जनमानस को इस बात का जवाब भी देना चाहिए कि सीएजी रिपोर्ट क्यों और कैसे लीक हुई थी? आखिर उस रिपोर्ट को लीक करने के पीछे उनका मकसद क्या था? अगर मकसद जैसा कि कांग्रेस पार्टी कहती है, विनोद राय के फर्जीवाड़े से शुरू हुआ था अन्ना का भ्रष्टाचार विरोधी आदोलन और डॉ. मनमोहन सिंह जैसे ईमानदार पीएम को बदनाम करने का पाप किया था सीएजी ने तो फिर विनोद राय की माफी स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए. सीएजी या इस तरह की जो भी संवैधानिक संस्थाएं जिनपर लोग भरोसा करते हैं उसे किसी राजनीतिक पार्टी का टूलकिट नहीं बनना चाहिए.
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