सम्पादकीय

चांद पर अगला कदम

Subhi
30 Aug 2022 3:34 AM GMT
चांद पर अगला कदम
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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने सोमवार को फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से आर्टेमिस 1 प्रॉजेक्ट के तहत अपने नए मून रॉकेट एसएलएस (स्पेस लॉन्च सिस्टम) की लॉन्चिंग आखिरी पलों में तकनीकी कारणों से टाल दी है

नवभारत टाइम्स; अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने सोमवार को फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से आर्टेमिस 1 प्रॉजेक्ट के तहत अपने नए मून रॉकेट एसएलएस (स्पेस लॉन्च सिस्टम) की लॉन्चिंग आखिरी पलों में तकनीकी कारणों से टाल दी है, लेकिन यह महत्वाकांक्षी और लंबा प्रॉजेक्ट न केवल नासा या अमेरिका के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिहाज से ऐतिहासिक महत्व रखता है। इस प्रॉजेक्ट का पहला चरण है- आर्टेमिस 1। दिलचस्प है कि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने ही सबसे पहले इंसान को चांद पर पहुंचाने का करिश्मा किया था। 20 जुलाई 1969 को उसका अपोलो 11 मिशन चांद पर पहुंचा और उसके अगले दिन मिशन कमांडर नील आर्मस्ट्रॉन्ग चांद की सतह पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने। 14 दिसंबर 1972 को अपोलो 17 मिशन की चांद से वापसी के बाद इससे जुड़े मिशन तो कई देशों ने चलाए, लेकिन चंद्रमा पर इंसान के पांव फिर नहीं पड़े। अब आधी सदी के बाद फिर एक बार अमेरिका ने ही ऐसा प्रॉजेक्ट शुरू किया है, जिसका एक अहम हिस्सा है चांद पर इंसान भेजना। आर्टेमिस 1 मानवरहित अभियान है। इसके जरिए चांद की सतह पर उतरे बगैर वहां की स्थितियों के बारे में आवश्यक जानकारी जुटाई जाएगी। इसके बाद आर्टेमिस 2 में चार अंतरिक्ष यात्री होंगे। हालांकि ये यात्री भी चांद की सतह पर नहीं जाएंगे, लेकिन ये अंतिरक्ष में धरती से उतनी दूर जाएंगे जितनी आज तक कोई नहीं गया।

बताया गया है कि आर्टेमिस 2 मिशन के तहत ये अंतरिक्ष यात्री इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) के मुकाबले धरती से 1 हजार गुना ज्यादा दूर जाएंगे। मगर चांद की सतह पर एक फिर इंसान के कदम पड़ेंगे आर्टेमिस 3 के दौरान। इस प्रॉजेक्ट के तहत अंतरिक्ष यात्रियों की एक टीम चांद पर एक सप्ताह रहेगी। यह 21वीं सदी का पहला मौका होगा जब इंसान चांद पर चल फिर रहा होगा। पिछली यात्रा के मुकाबले देखें तो इन 50 वर्षों में चांद चाहे न बदला हो पर धरती पर इंसान काफी बदल गया है। इस बदलाव का प्रभाव न केवल प्रॉजेक्ट के स्वरूप, उसके मकसद आदि पर बल्कि खुद टीम पर भी दिखने वाला है। नासा ने अभी से साफ कर दिया है चांद पर जाने वाली टीम में कम से कम एक महिला और एक अश्वेत सदस्य भी होंगे। जहां तक प्रॉजेक्ट के मकसद की बात है तो पहले के अपोलो अभियानों का मकसद चांद पर इंसानों को पहुंचाना और वहां से सुरक्षित वापस लाना होता था। इस बार चांद पर जाने वाली टीम यह देखेगी कि उसे मंगल अभियान का बेस बनाने की कितनी संभावना है। इसी क्रम में यह भी देखा जाएगा कि वहां की मिट्टी में कुछ फसलें उगाने और वहां मौजूद चीजों से फ्यूल और बिल्डिंग मटीरियल बनाने की संभावना है या नहीं। साफ है कि चांद को इंसानों का दूसरा घर बनाने की संभावना खंगालने का काम ठोस ढंग से शुरू होने वाला है। इसके उतने ही ठोस नतीजे बहुत संभव है हमें इसी सदी में दिखने लग जाएं।


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