सम्पादकीय

फेरबदल

Admin2
5 Aug 2022 11:52 AM GMT
फेरबदल
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 प्रतीकात्मक तस्वीर 

पश्चिम बंगाल मंत्रिमंडल में होने जा रहा फेरबदल जितना स्वाभाविक है, उतने ही गहरे उसके निहितार्थ हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टीम में चार नए मंत्रियों को शामिल किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर, कुछ दिग्गज नेताओं को मंत्रिमंडल से हटाकर पार्टी संगठन में भेज दिया जाएगा। यह फेरबदल वरिष्ठ मंत्री पार्थ चटर्जी के दुखद विवाद या नकदी कांड में फंसने के बाद अवश्यंभावी हो गया था। पार्थ चटर्जी को 23 जुलाई को जैसे ही गिरफ्तार किया गया, ममता सरकार के लिए मुसीबत खड़ी हो गई। पश्चिम बंगाल सरकार की नैतिकता पर बडे़ प्रश्न खडे़ हो गए थे। किसी मंत्री से जुडे़ ठिकानों पर इतनी बड़ी राशि का बरामद होना न केवल दुखद, बल्कि बेहद शर्मनाक भी है। गौर करने की बात है कि पश्चिम बंगाल में 'कट मनी' को लेकर पहले से ही शिकायत थी, लेकिन चुनाव के बाद एक तरह से इस मामले को भुला दिया गया। संकेत यही मिला कि पश्चिम बंगाल में मंत्री भ्रष्टाचार से परहेज नहीं कर रहे हैं। नेताओं की कथनी-करनी का अंतर लोगों के सामने स्पष्ट हो गया है।

पश्चिम बंगाल सरकार की छवि आम आदमी के अनुकूल रही है। यहां तक कि ममता बनर्जी को भी आम लोगों की जमीनी नेता ही माना जाता है। जब पार्टी के नाम में ही तृणमूल शब्द जुड़ा हो, तब लोगों की अपेक्षा भी बहुत बढ़ जाती है, लेकिन पार्थ चटर्जी कांड ने पार्टी के दामन पर गहरे दाग लगाए हैं। क्या आगामी फेरबदल से दाग धुल जाएंगे? गौर करने की बात है कि ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पार्टी को एक मजबूत विकल्प के रूप में खड़ा करने के लिए प्रयासरत हैं। उन्हें अपने नए मंत्रिमंडल को न केवल ईमानदार रखना होगा, जनता के बीच यह साफ संदेश भी भेजना होगा कि उनकी सरकार ईमानदार है। पहले भी राज्यों में ऐसे बड़े क्षत्रप हुए हैं, जिनमें केंद्रीय राजनीति के लिए संभावनाएं देखी गई थीं, लेकिन ऐसे क्षत्रपों का आभामंडल स्थानीय स्तर पर ही समेटने में भ्रष्टाचार की बड़ी भूमिका रही है। केंद्रीय स्तर पर स्थापित होने के लिए पहले राज्य स्तर पर सुस्थापित होना पड़ता है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुख्यमंत्री रहते अपनी छवि को एक विकास पुरुष के रूप में स्थापित किया था। ममता बनर्जी की छवि अपने राज्य में विकास के मोर्चे पर कैसी है? और ऊपर से उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप भारतीय राजनीति के लिए दुखद हैं। क्या तृणमूल के नेताओं को यह भ्रांति हो गई है कि जनता भ्रष्टाचार के आरोप को माफ कर देती है? गौर कीजिए, शारदा और नारदा जैसे मामलों के बावजूद तृणमूल चुनाव जीती है। यही नहीं, राज्य में इन घोटालों के कुछ आरोपी भाजपा में भी ससम्मान शामिल किए गए हैं। अत: पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच यह संदेश गया है कि भ्रष्टाचार को लोग मुद्दा नहीं मानते।
ममता बनर्जी के सामने ईमानदार मंत्रिमंडल के गठन की चुनौती दरअसल भारतीय राजनीति की चुनौती है। देश को ईमानदार मंत्रियों की जरूरत है। हम अच्छे से जानते हैं कि देश में धन-वर्षा हो रही है, पर यह वर्षा देश के विकास के लिए है, किन्हीं मंत्रियों के व्यक्तिगत विकास के लिए नहीं। देश के अन्य मंत्रिमंडलों में भी अनेक पार्थ चटर्जी होंगे, जो यह भूल गए होंगे कि उन्हें क्यों चुनकर भेजा गया है। ऐसे मंत्रियों को चिह्नित करना होगा। मंत्रियों की ईमानदारी सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष जांच व कार्रवाई की जरूरत है। अत: बंगाल ही नहीं, पूरे देश में ईमानदारी के अनुरूप फेरबदल समय की मांग है।

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