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महंगाई के मुद्दे पर आखिरकार वित्तमंत्री ने सरकार का पक्ष रख दिया। सत्र के शुरू से ही विपक्ष इस पर चर्चा की मांग करता आ रहा था, मगर तबीयत ठीक न होने की वजह से वित्तमंत्री सदन में उपस्थित नहीं रह सकी थीं। अब वे आईं तो विपक्ष की इस आशंका को निराधार बताया कि देश आर्थिक मंदी की ओर जा रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि तमाम कठिनाइयों के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था मजबूत और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। मगर विपक्ष उनके तर्कों से संतुष्ट नहीं हो सका। उसकी कुछ वजहें साफ हैं। अव्वल तो उन्होंने अर्थव्यवस्था की मजबूती को लेकर जो तर्क दिए वे सहज ही किसी के गले उतरने वाले नहीं थे।
फिर वित्तमंत्री का तेवर बेवजह आक्रामक था, जिसमें वे कई बातें तर्क से परे बोलती गईं। यह ठीक है कि महंगाई के मुद्दे पर चर्चा की मांग विपक्ष ने उठाई थी, पर आम लोग भी इस पर वित्तमंत्री से हकीकत जानना चाहते थे, इसलिए उनका जवाब देने का तरीका केवल विपक्ष पर हमला बोलने वाला नहीं होना चाहिए था। न जाने क्यों वे हर समय गुस्से में नजर आती हैं। इस तरह कई बार वे सामान्य ढंग से कही जाने वाली बातें भी इस अंदाज में कह जाती हैं कि विवाद पैदा हो जाता है।
वित्तमंत्री से संयत लहजे में और पारदर्शी ढंग से देश की वित्तीय स्थितियों के बारे में बात करने की अपेक्षा की जाती है। मगर वे हर समय जैसे विपक्ष से जिरह करने के अंदाज में बात करती हैं। इस बार भी अर्थव्यवस्था की मजबूती के बारे में बताते हुए उन्होंने जीएसटी संग्रह को ज्यादा महत्त्व दिया और आटा, चावल आदि वस्तुओं पर लगी जीएसटी को उचित ठहराते हुए तर्क दिया कि इसे सरकार नहीं तय करती, जीएसटी परिषद तय करती है और उसमें विपक्ष के लोग ही होते हैं।
इस तरह कोई वित्तमंत्री भला अपनी जवाबदेही से कैसे पल्ला झाड़ सकता है। फिर यह बात लोगों को कौन समझाएगा कि जब अर्थव्यवस्था सचमुच मजबूत है, तो महंगाई काबू में क्यों नहीं आ पा रही। क्या वजह है कि कुछ दिनों पहले ही खुद रिजर्व बैंक को विकास दर संबंधी अपना अनुमान घटाना पड़ा। यह कौन समझाएगा कि क्यों राजस्व घाटा निरंतर चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है। अर्थव्यवस्था की मजबूती केवल जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी के पैमाने से नहीं आंकी जाती। आखिर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, निर्यात और विदेशी मुद्रा भंडारके पैमाने पर निराशाजनक स्थिति क्यों है, यह सब स्पष्ट करना भी वित्तमंत्री का ही काम है।
जब कोई सरकार अपनी आर्थिक कमजोरी को छिपाना या उसके आंकड़े गलत तरीके से पेश करना शुरू कर देती है, तो उसमें सुधार की संभावनाएं भी क्षीण होने लगती हैं। मगर निर्मला सीतारमण हमेशा महंगाई, बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े, विकास दर में कमी आदि से जुड़े सवालों पर कन्नी काटती नजर आती हैं। प्याज की बढ़ती कीमतों को लेकर सवाल उठने शुरू हुए, तो उन्होंने बहुत ही बचकाना बयान दिया था कि उसके बारे में उन्हें इसलिए कुछ नहीं पता, क्योंकि वे खुद प्याज नहीं खातीं। इसी तरह किसानों के मुद्दे पर विवाद का केंद्र बन गई थीं। ऐसे कई मौकों पर जब उनसे संयम की अपेक्षा की जाती थी, उन्होंने हड़बड़ी दिखाई। वित्तमंत्री का इस तरह हकीकत से मुंह फेरना और केवल विपक्ष को चुप कराने के लिए चुने हुए आंकड़े पेश करना किसी भी रूप में अर्थव्यवस्था के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता। सोर्स-अर्थव्यवस्थाJANSATTA
Admin2
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