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इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में कोई संगठन है, तो वह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) है। हालांकि, यह चर्चा ज्यादातर उन राजनीतिक लोगों से संबंधित मामलों को लेकर है, जिनकी निदेशालय जांच कर रहा है। निदेशालय मुख्य रूप से धन शोधन निवारण कानून के तहत मनी लांडरिंग के मामलों की जांच करता है, यानी मोटे तौर पर उस काले धन की जांच करता है, जिसका इस्तेमाल तमाम गलत धंधों के अलावा तस्करी या आतंकवाद तक में होता है। इस कानून और इसे लेकर निदेशालय को मिले अधिकारों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि एक तो यह कानून मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है, इसलिए असांविधानिक है। दूसरे, निदेशालय कोई पुलिस बल नहीं है, लेकिन उसके पास छापा मारने, कुर्की और गिरफ्तार करने जैसे वे अधिकार दिए गए हैं, जो पुलिस के पास होते हैं। कुछ अधिकार तो पुलिस से भी ज्यादा हैं। मसलन, पुलिस के सामने दिए गए इकबालिया बयान को अदालत में पेश नहीं किया जा सकता, जबकि निदेशालय के समक्ष दिए गए बयान को पेश किया जा सकता है। याचिका में निदेशालय के इन्हीं अधिकारों पर आपत्ति उठाई गई थी।