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राजनीति में सच की तह तक पहुंचना दुरूह और अक्सर असंभव सा काम होता है। खासकर तब, जब मामला किसी की नीयत तय करने का हो। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि एक पत्रकार से बात करते समय उनकी जुबान फिसल गई और उनके मुंह से राष्ट्रपति की जगह 'राष्ट्रपत्नी' शब्द निकल गया। दूसरी तरफ, भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि यह गलती से नहीं हुआ, उन्होंने जान-बूझकर महामहिम का अपमान करने के लिए ऐसा कहा था। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की इस बात से भी असहमत नहीं हुआ जा सकता कि महामहिम के लिए जिस शब्द का इस्तेमाल हुआ, वह 'लैंगिक भेदभाव' वाला शब्द है। अगर हम अधीर रंजन चौधरी की ही बात को सच मान लेें, तब भी गलती उन्हीं की मानी जाएगी। वह जिस जगह पर हैं, वहां से इस तरह की चूक की अपेक्षा नहीं की जाती। बावजूद इसके कि ऐसी चूक या ऐसा विवाद हमारे लिए नया नही हैं। कबीरदास ने इसीलिए कहा है, बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि। हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि। कम से कम हमारे जो जन-प्रतिनिधि हैं, उनसे हम यही उम्मीद करते हैं। खासकर तब, जब राष्ट्रपति के बारे में कुछ कहा जा रहा हो। फिर मौजूदा महामहिम तो महिला भी हैं, और जनजातीय समुदाय से आती हैं। उनके बारे में कही गई कोई भी बात एक बहुत बड़े समुदाय को आहत कर सकती है।