सम्पादकीय

टिप्पणी

Admin2
29 July 2022 6:52 AM GMT
टिप्पणी
x

VImage used for representational purpose

राजनीति में सच की तह तक पहुंचना दुरूह और अक्सर असंभव सा काम होता है। खासकर तब, जब मामला किसी की नीयत तय करने का हो। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि एक पत्रकार से बात करते समय उनकी जुबान फिसल गई और उनके मुंह से राष्ट्रपति की जगह 'राष्ट्रपत्नी' शब्द निकल गया। दूसरी तरफ, भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि यह गलती से नहीं हुआ, उन्होंने जान-बूझकर महामहिम का अपमान करने के लिए ऐसा कहा था। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की इस बात से भी असहमत नहीं हुआ जा सकता कि महामहिम के लिए जिस शब्द का इस्तेमाल हुआ, वह 'लैंगिक भेदभाव' वाला शब्द है। अगर हम अधीर रंजन चौधरी की ही बात को सच मान लेें, तब भी गलती उन्हीं की मानी जाएगी। वह जिस जगह पर हैं, वहां से इस तरह की चूक की अपेक्षा नहीं की जाती। बावजूद इसके कि ऐसी चूक या ऐसा विवाद हमारे लिए नया नही हैं। कबीरदास ने इसीलिए कहा है, बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि। हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि। कम से कम हमारे जो जन-प्रतिनिधि हैं, उनसे हम यही उम्मीद करते हैं। खासकर तब, जब राष्ट्रपति के बारे में कुछ कहा जा रहा हो। फिर मौजूदा महामहिम तो महिला भी हैं, और जनजातीय समुदाय से आती हैं। उनके बारे में कही गई कोई भी बात एक बहुत बड़े समुदाय को आहत कर सकती है।

यह गलती से हुआ हो या जान-बूझकर, इस बयान से अधीर रंजन चौधरी ने अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है। यह बात उन्होंने उस वक्त कही, जब कांग्रेस और बाकी विपक्षी दल महंगाई के मसले पर सरकार को संसद में घेरने के लिए कमर कसे हुए थे। लोकसभा और राज्यसभा, दोनों से आने वाली खबरों के एक बड़े हिस्से पर महंगाई को लेकर विपक्ष का विरोध छाया हुआ था। लेकिन एक दिन के लिए ही सही, ये सभी चीजें पीछे चली गईं। मुद्दा बदल गया और महंगाई के मसले पर घिरती सरकार ने राहत की सांस ली। अभी तक जहां विपक्ष का हंगामा छाया हुआ था, वहीं हल्ला बोलने का मौका सत्ता पक्ष के हाथों में आ गया, और कांग्रेस बचाव की मुद्रा में थी। हंगामा शुरू हुआ, तो बात सिर्फ चौधरी तक सीमित नहीं रही, यह मांग उठने लगी कि कांग्रेस नेतृत्व भी माफी मांगे। भारतीय राजनीति में जिस तरह किंतु-परंतु के साथ माफी मांगने की परंपरा है, उसी अंदाज में अधीर रंजन चौधरी ने माफी मांग भी ली। लेकिन राजनीति की ऐसी माफियां विरोधी पक्ष को कभी संतुष्ट नहीं करतीं और यही इस मामले में भी हुआ।
सांविधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को लेकर कोई भी अशोभनीय टिप्पणी किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकती। इसलिए उम्मीद यही है कि मौजूदा प्रकरण से सबक लेते हुए सभी राजनीतिक दल ऐसे मामलों में सावधानी बरतेंगे। शुक्रवार को जब संसद बैठेगी, तो इस विवाद को पीछे छोड़ तमाम राजनीतिक दल आगे की सुध लेंगे। यह चिंता की बात है कि मानसून सत्र अभी तक ज्यादातर हंगामे की भेंट ही चढ़ा है। महंगाई, बेरोजगारी, रुपये की कीमत, जैसे सभी महत्वपूर्ण मसलों पर दोनों सदनों में चर्चा बहुत जरूरी है। अब वह चर्चा किस नियम के तहत हो, इसे लेकर सरकार और विपक्ष को आपसी सहमति बनानी होगी। संसद का बाकी काम भी देश के लिए उतना ही जरूरी है, यह सरकार और विपक्ष, सभी की प्राथमिकता होनी चाहिए। LIVEHINDUSTAN


Admin2

Admin2

    Next Story