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न्यूजीलैंड और विलियमसन
नब्बे के दशक में शाहरुख़ ख़ान की एक सुपहिट फिल्म आई थी 'बाज़ीगर'. उस दौरान इस शब्द का मतलब पता चला, हार कर भी जीतने वाले को बाज़ीगर कहते हैं, जब ये फिल्मी डॉयलॉग पर्दे पर आता तो दर्शक खूब तालियां बजाया करते थे. न्यूजीलैंड टीम भी टी-20 वर्ल्ड कप में हार गई हो, लेकिन कई मायनों में वी जीत चुके हैं और इसलिए उन्हें क्रिकेट का बाज़ीगर कहना शायद अतिशयोक्ति नहीं हो सकती है. आप सोचेंगे कि ऐसा किस आधार पर कहा जा सकता है तो इसकी एक ठोस वजह है.
क्रिकेट इतिहास में आज तक किसी भी टीम ने एक साथ 2 साल के अंतराल में वन-डे वर्ल्ड कप, टेस्ट वर्ल्ड कप और टी-20 वर्ल्ड के फाइनल में अपनी जगह नहीं बनाई थी. केन विलियमसन की टीम ने ऐसा कमाल दिखाया और जहां तक हारने की बात है तो 3 में से वो सिर्फ पहला फाइनल ही हारें हैं. टेस्ट वर्ल्ड कप तो वो भारत को हराकर जीते ही, लेकिन वन-डे वर्ल्ड कप में उन्हें हार तो किस्मत और आईसीसी की ज़बरदस्त पेचीदे नियम की वजह से मिली.
ये नियम इतना बेकार था कि न्यूजीलैंड की हार के बाद आईसीसी ने भविष्य में किसी भी टूर्नामेंट के लिए विजेता का फैसला इस बात से करने से मना कर दिया है कि आखिरी पारी में किस टीम ने ज़्यादा चौके लगाएं हैं.
न्यूजीलैंड को बाज़ीगर कहने की एक और वजह
न्यूजीलैंड को बाज़ीगर कहने की एक और वजह है. मैं पिछले साल खुद न्यूजीलैंड के दौरे पर था और वहां भारत जैसा माहौल क्रिकेट को लेकर ऐसा नहीं है कि घर में हर बच्चा प्लास्टिक की बैट से खेल का पहला पाठ पढ़ता है और ना ही हर गली मोहल्ले में क्रिकेट ही खेली जाती है. उस देश का मुख्य खेल रग्बी है, जिसको लेकर जूनून और पागलपन भारत की क्रिकेट की तरह है, लेकिन इसके बावजूद सिर्फ दक्षिणी दिल्ली की आबादी वाला न्यूजीलैंड क्रिकेट के मैदान में हर फॉर्मेट में अपनी जलवा बिखेर रहा है.
बीसीसीआई के पास अरबों-खरबों की संपति हैं और देश के लिए खेलने वाले लाखों क्रिकेटर खिलाड़ियों का विकल्प है, इसके बावजूद हम तीन फॉर्मेट तो क्या एक फॉर्मेट में भी अपना दबदबा कायम करने की झलक मिलने पर ही उतावले हो जातें हैं. लेकिन, विलियमसन और उनके साथियों को देखिये. क्या नम्रता है उनके रवैये में.
हर बात को स्वीकार कर हमेशा आगे बढ़ने वालें हैं
कभी किसी बात की शिकायत नहीं करते हैं कीवी खिलाड़ी. आपने कितनी बार कीवी खिलाडियों को पिच का या फिर ओस का बहाना बनाते सुना है? वो अंपायरिंग के ग़लत फैसलों के खिलाफ भी कुछ नहीं बोलते हैं और अक्सर शालीनता से वो हर तरह का फैसला क्रिकेट का हिस्सा मानकर स्वीकार कर लेतें हैं. आपको याद है ना, इसी बार इंग्लैंड के खिलाफ़ बेहद कड़े मुकाबले वाले सेमीफाइनल में इस टीम ने एक रन लेने से इंकार कर दिया था, क्योंकि आदिल रशीद के साथ नान-स्ट्राइकर टकरा गया.
इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन ने उसी समय कामेंट्री के दौरान इस सोच की अहमियत को समझ लिया और कहा कि वाकई में ये काबिले तारीफ नज़रिया है, क्योंकि ये तो दरअसल कीवी टीम की ही पहचान है, जो जीत के लिए सिर्फ हर तरह के हथकंडे अपनाने में यकीन नहीं रखती है. यही वजह है कि एक बार फिर से कीवी टीम ने साबित कर दिया कि दरअसल खिलाड़ी नहीं बल्कि खेल ही सबसे बड़ा होता है. और इसलिए ऐसी टीम कई मौके पर बिना कोई ट्रॉफी जीते भी इतने दिल जीत लेती है कि कितनी ट्रॉफियां कम पड़ जाएं.
कोहली-स्मिथ-रुट बेहतर क्यों हैं विलियमसन
सच में अगर देखा जाए तो विलियमसन अपने समकालीन दिग्गज विराट कोहली, स्टीवन स्मिथ और जो रुट पर इक्कीस पड़ते हैं. हार को जिस तरह से खेल का हिस्सा मानकर विलियमसन और उनके साथी विरोधी खिलाड़ियों से मिलते हैं और मुस्कराते हैं, दरअसल वही तो क्रिकेट है. क्रिकेट तो एक संस्कृति है, जिसे एक ज़माने में शालीन लोगों का खेल कहा जाता था. विलियमसन और न्यूजीलैंड उस परंपरा को अपनी बातों से नहीं, बल्कि अपने एक्शन से साबित करने की मुहिम में जुटी है, जो बिलकुल आसान नहीं है, क्योंकि विज्ञापन और ब्रैंडिग के दौर में आपको कोहली जैसी आक्रामक छवि चाहिए.
गाली-गलौज तक उतर जाने पर भी उतारु वाली छवि. खेलों का सीधा प्रसारण करने वाली तमाम चैनल्स हमेशा अपने प्रोमो में आक्रामकता को बेचने की कोशिश करते हैं और इसकी वकालत करते हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि खेल के मैदान पर जीत ही तो सबकुछ है. हारने वाले को भला कौन पूछता है. लेकिन, कीवी टीम के साथ ऐसा नहीं है. हारने के बावजूद इस टीम के खिलाड़ियों को सोशल मीडिया पर ट्रोल नहीं किया जाता है, जैसा कि भारत-पाकिस्तान के खिलाड़ियों के साथ अक्सर होता है.
इस टीम का खिलाड़ी आपको क्रिकेट के विवाद में शायद ही दिखाई दे और फिक्सिंग जैसे शब्द तो दूर-दूर तक इनके पास नहीं फटकते हैं. ऐसे में, अगर ये टी-20 वर्ल्ड कप हार भी गयें है तो क्या फर्क पड़ता है?
शायद क्रिकेट इतिहास में ऐसा पहली बार होगा…
शायद क्रिकेट इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब किसी शानदार टीम का आंकलन सिर्फ इस बात के लिए नहीं होगा कि उन्होंने अपनी झोली में कितने ख़िताब जीतें हैं. ऐसा अपवाद सिर्फ कीवी और विलियमसन के लिए होगा, क्योंकि उन्होंने अपने अनूठे अंदाज़ में इस बात को बार-बार दोहराया है कि खेल को सिर्फ खेल की तरह देखिए, इसे जीवन-मरण का ना प्रश्न बनाएं और ना ही इसे अपने धर्म की जीत के तौर पर देखें और ना ही युदध की ही तरह. इसलिए, न्यूजीलैंड की टीम बाज़ीगर है!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विमल कुमार
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.
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