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- नए साल के प्रण
नया साल क्या मनाऊं, मेरे जीव को पचास पचड़े हैं। पुराने साल का हिसाब ही चुकता नहीं हो पा रहा तो यह नया साल मुझे क्या राहत देगा। इस देश में राहत लेने जाओ तो भगदड़ मच जाती है और सौ-पचास गरीब काम आ जाते हैं। इसलिए मैंने तय किया है कि नए साल में मैं कोई सरकारी राहत नहीं लूंगा। पुराने साल का हिसाब लगाया तो मैंने पाया कि मुझे पचास हजार रुपए महाजनों को सूद सहित वापस करना है। इसमें एक सरकारी बैंक लोन भी शामिल है। बिना लोन के तो नया साल भी क्या नया रंग भरेगा मेरे जीवन में। कोई वित्त विशेषज्ञ भी मेरे घर खर्च का बजट मेरी आय में बैठा दे तो मैं उसकी टांग के नीचे से निकल जाऊंगा। टांग के नीचे से निकलने की बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि मैं अभी तक किसी की टांग के नीचे से निकला नहीं हूं, इसलिए यदि अब कोई मुझे टांग के नीचे से निकाल दे तो मैं उसे मान जाऊंगा। मेरे लिए नया साल पता है क्या लेकर आएगा। वही पुरानी समस्याएं और वही पुराने असमंजस।