सम्पादकीय

नया साल है, हाल पुराना

Gulabi
14 Jan 2022 5:46 AM GMT
नया साल है, हाल पुराना
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वही पेट्रोल के भाव व रसोई गैस की किल्लत। नए साल में भी वही होगा, जो पुराने साल में हुआ था
हालांकि साल नया है, लेकिन हाल बेहाल है। वही महंगे बैंगन, टमाटर और आलू। वही पेट्रोल के भाव व रसोई गैस की किल्लत। नए साल में भी वही होगा, जो पुराने साल में हुआ था। महंगाई बढ़ेगी, दंगे फसाद होंगे, नए चुनाव होंगे, पुराने दाम पर कोई चीज नहीं मिलेगी। श्रीपत जी का कहना है कि नया साल तो उमंग और उत्साह देने वाला होता है, लेकिन मैं कहता हूं कि उमंग और उत्साह से बंटता क्या है? फिर बिना दमड़ी के ये दोनों मन में उपजते भी नहीं हैं। इस बार श्रीपत जी नए साल के एक दिन पहले ही शुभकामना देने चले आए, कहने लगे -'शर्मा तुम्हारे पूरे परिवार को मेरी शुभकामनाएं। ईश्वर तुम्हारी पेंशन में बीस रुपए की वृद्धि करे।' मैंने कहा -'श्रीपत जी, आपको भी मंगल कामनाएं। ईश्वर आपकी दुकान को दंगों से बचाए।' श्रीपत जी ने पलटकर कहा-'यह क्या कह रहे हो शर्मा? मेरी दुकान को क्या होने वाला है। क्या कोई सांप्रदायिक दंगे की आशंका है क्या?' मैं बोला -'चुनावी वर्ष है, यह कोई मुश्किल काम नहीं है। फिर नौजवान सड़कों पर हैं। उनके हाथ खाली हैं। घर पर जाएंगे तो कुछ लेकर ही जाएंगे। इसलिए नौजवानों से प्रभु बचाए और सरकार को अन्ना की नजर न लगे।'
'यार शर्मा, तुम्हारी बातें मेरी समझ से परे हैं। आखिर होने वाला क्या है?' श्रीपतजी बोले तो मैंने कहा -'होना क्या है, साल नया है लेकिन हाल वही पुराना है। मेरा मतलब गरीबी, बेकारी और मारा-मारी वही रहेगी। नौजवानों को बरगलाया जा रहा है कि नए साल में लाखों की संख्या में नई नौकरियां दी जाएंगी। गरीबी मिटाने का कार्यक्रम ज्यों का त्यों रहेगा। लूट-खसोट का आलम भी वही पुराना। इधर नौजवान ही बलात्कार कर रहे हैं और वे ही बलात्कार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। अजीब विरोधाभास है। कहा जा रहा है कि नौजवान जाग उठा है और देश में नई क्रांति होगी। मुझे इसमें भ्रांति के आसार ज्यादा दिखाई दे रहे हैं, कहीं भटकाव आ गया तो ये घर के रहेंगे न घाट के। इस नए साल में भी राजनेता टोपी बदलेंगे और नए संस्करण में अपने को प्रस्तुत करेंगे।' 'इसका मतलब नए साल में उत्साह और उमंग वाला कोई नजारा दिखाई नहीं देगा। यह भी साफ है कि नया बजट नए कर लेकर आएगा तथा पैट्रोल-डीजल और रसोई गैस इस वर्ष की भांति नए साल में भी परवान चढ़ेगी।
श्रीपत जी बोले तो मैंने कहा -'और क्या, घी-दूध की नदियां बहेंगी। घी-दूध के तो लुप्तप्रायः होने के दिन हैं ये। वे ही गबन-घोटाले और बड़े-बड़े घपले लेकर आएगा नया साल भी। आप खुद देख लेना नेता लूटना बंद नहीं करेंगे देश को। गरीबी-अमीरी की खाई और चौड़ी होगी। दफ्तरों में रिश्वत का कारोबार पहले की तरह ही चलेगा, बल्कि दरें बढ़ जाएंगी। पचास रुपए वाली रिश्वत पांच सौ हो जाए तो आश्चर्य मत करना श्रीपत जी।' 'यार शर्मा, तुम तो आदमी काम के हो। सारा हाल जानते हो। नए साल की हस्तरेखाएं खूब पहचानते हो। मैं तो तुमको यों ही कलम घसीटा समझता था। अच्छा एक बात बताओ, तुम नया साल कैसे मनाओगे?' श्रीपत जी ने पूछा। मैं बोला-'वही दाल-रोटी खाऊंगा और पुराना कम्बल ओढ़कर ठिठुराती रात में टीवी पर कार्यक्रम देख कर गुजार दूंगा सर्दी की रात को भी। नए साल के दिन यानी कल हो सका तो कड़ी-चावल बनवा लूंगा ताकि नए साल का शगुन हो जाए। किसी पांच सितारा होटल में तो जाने से रहा।' वे बोले-'इसका मतलब पीना-पिलाना वाली बात नहीं है।' मैं बोला-'पानी पीऊंगा और सो जाऊंगा।' तभी पत्नी चाय ले आई, श्रीपत जी ने चाय को खत्म किया और चलते बने। मैं नए साल की पुरानी तैयारियांे को अंतिम रूप देने में लग गया।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक
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