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- नए साल का नया गणित

अतीत को पीट कर फिर एक नया साल, हमारे सामने, हमारे साथ और उज्ज्वल उम्मीदों की पलकें खोलते हुए हमें ताक रहा है। हर साल अपने साथ लक्ष्यों को बड़ा करता है, तो पाने की हसरतों को चमका देता है। यह दीगर है कि अतीत को समय अपने चक्र में भुला देता है, लेकिन इनसान अपनी गलियों के सन्नाटे में भी उन आहों को चुन लेता है, जो कभी कैद नहीं होतीं। 'सफर के हर मुकाम पर रही होगी, कुछ अपने इरादों की आग सुलगती।' पिछले दो सालों का फिर होगा हिसाब, कितनी चौड़ी छाती करके आ रहा है यह साल। यहां हर आंख को काजल नहीं, देश की हकीकत को पाने की तलब है। थक गए वे पुराने सारे कैलेंडर और बच्चे भूल गए कि आकाश के नीचे घर सजाने को उनका बचपना टहलता था। आश्चर्य यह कि दो सालों से कोरोना ने जिस तरह हमारी उमंगों को कैद करके रखा, उससे कहीं आगे ओमिक्रॉन की हस्ती फिर हमसे रू-ब-रू होकर अनिश्चय लेकर खड़ी है। 2021 के झंझावत में राष्ट्रीय ऊर्जा का क्षरण कई तरह से हुआ, लेकिन वर्ष ने खुद को संवारने की कोशिश में ऐसा उत्साह पैदा किया जिसने बाजार-व्यापार के बंद शटर खुल गए। यह अलग बात है कि केंद्रीय सत्ता से विमुख खेत-खलिहान का संघर्ष राजधानी दिल्ली की चारदीवारी में छेद करता रहा और अंततः कृषि कानूनों का पटाक्षेप उनकी वापसी के साथ हो गया।
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