सम्पादकीय

नववर्ष : पाकिस्तान के लिए मुश्किल साल

Neha Dani
31 Dec 2021 1:53 AM GMT
नववर्ष : पाकिस्तान के लिए मुश्किल साल
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पर न तो उन्होंने इमरान खान को कभी फोन किया, न ही दोनों की मुलाकात हुई है। यानी पाकिस्तान की मुश्किलें जारी रहेंगी।

मैं बहुत खुश हूं कि वर्ष 2021 आज खत्म हो रहा है, लिहाजा हम नए साल के लिए उम्मीदें कर सकते हैं। बीत रहा यह साल पूरी दुनिया के लिए बेहद खौफनाक था और पाकिस्तान इसका अपवाद नहीं था। बल्कि इस साल हमारे यहां सब कुछ गलत ही दिखा। जाहिर है, इसकी असली वजह कोविड थी, जिसका खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ा। लेकिन पाकिस्तान की जनता और सरकार के लिए पूरे साल परेशानियां खत्म होती नहीं दिखीं। इसीलिए पाकिस्तान के लोग प्रार्थना कर रहे हैं कि आने वाला साल अच्छा हो। लोगों को राहत मिले और उनकी जिंदगी में खुशियां आएं।

इस साल मैंने सिर्फ अपने देश में ही नहीं, बल्कि अपने पड़ोस में ही असहिष्णुता का चरम देखा। अपनी पूरी जिंदगी में मैंने मजहब के नाम पर इतनी कट्टरता कभी नहीं देखी। हकीकत यह है कि सभी मजहब धैर्य और सहिष्णुता सिखाते हैं। इस साल की शुरुआत में स्यालकोट की एक फैक्टरी में ईशनिंदा के आरोप में एक श्रीलंकाई नागरिक की हत्या कर दी गई। मानो हत्या करना ही काफी नहीं था, लोगों ने उसके शव को आग के हवाले कर दिया, जो अविश्वसनीय था।
इस अमानवीय घटना पर पूरे देश से जो प्रतिक्रियाएं आईं, वे जरूर दिल को थोड़ी तसल्ली देने वाली थीं। आम नागरिकों से लेकर प्रांतों और केंद्र की सरकारों तथा सैन्य नेतृत्व-सबने उस घटना की तीखी निंदा की। पूरे देश ने एक स्वर में दोषियों को गिरफ्तार करने से लेकर मारे गए व्यक्ति के परिजनों को सांत्वना देने और श्रीलंका की सरकार से इस मामले पर खेद जताने की मांग की।
संदेश यह था : 'जो कुछ हुआ, उसके लिए हम बेहद शर्मिंदा हैं और अफसोस जताते हैं।' प्रधानमंत्री इमरान खान से लेकर सेना प्रमुख बाजवा और आम नागरिकों ने यकीन दिलाया कि ऐसा फिर कभी नहीं होगा। जहां तक केंद्र सरकार की बात है, तो इस साल इमरान खान जितने कमजोर दिखे, उतने कमजोर वह प्रधानमंत्री बनने के बाद कभी नहीं दिखे।
इस सप्ताह मिनी बजट या मध्यावधि वित्त विधेयक पारित कराने की जरूरत महसूस हुई। यह एक अनिवार्य बाध्यता थी, क्योंकि इसके बाद ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) फंड जारी करेगा। इससे देश में तमाम वस्तुओं की कीमत बढ़ने की आशंका पैदा हो गई है। लेकिन स्थिति यह हुई कि इमरान खान की अपनी पार्टी पीटीआई (पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ) के सांसद और सरकार में उनके सहयोगी ही यह विधेयक पारित कराने के लिए नेशनल एसेंबली में मौजूद नहीं थे। इसका कारण यह बताया गया कि पहले से ही तमाम चीजों की महंगाई आसमान छू रही है।
आईएमएफ द्वारा फंड जारी करने पर चीजें और महंगी हो जाएंगी, नतीजतन नेताओं को अपने इलाके के मतदाताओं का गुस्सा झेलना पड़ेगा, जो कि नेता नहीं चाहते। इस विधेयक को पारित कराने को लेकर सरकार के भीतर ही फूट और नाराजगी है। लेकिन संसद के निचले सदन में वित्त विधेयक का पारित न हो पाने का अर्थ है सदन में सरकार का बहुमत खो देना।
वैसे में, सदन के नेता यानी प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ेगा। इमरान खान के कमजोर होने का एक कारण यह है कि उनमें और सेना प्रमुख बाजवा के बीच असहमति काफी बढ़ गई है। जबकि इमरान सरकार के गठन के बाद से जब भी यह राजनीतिक या आर्थिक वजहों से किसी संकट में फंसी, तो सेना ने उसे उबारा था।
लेकिन वह सिलसिला अब थम चुका है। ऐसे में, सवाल यह है कि सेना के सहयोग के बिना इमरान खान नए साल में चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे। इमरान खान और बाजवा के रिश्ते तब खराब हुए, जब सेना प्रमुख सेनाधिकारियों की प्रोन्नति और उनके स्थानांतरण संबंधी रूटीन काम कर रहे थे। उसी के तहत उन्होंने आईएसआई के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को पेशावर में कॉर्प्स कमांडर नियुक्त किया और कराची के पूर्व कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अहमद अंजुम को आईएसआई का नया डीजी नियुक्त किया।
लेकिन प्रधानमंत्री ने आईएसआई के नए डीजी की नियुक्ति से संबंधित अधिसूचना जारी करने से इन्कार कर दिया। कई महीनों के गतिरोध के बाद आखिरकार प्रधानमंत्री कार्यालय से इस संबंध में अधिसूचना जारी हुई। असैन्य और सैन्य नेतृत्व के बीच स्पष्ट दिखता यह असंतुलन तब और खलता है, जब पाकिस्तान अंदरूनी और बाहरी मोर्चों पर कई मुश्किलों का सामना कर रहा है।
पिछले दिनों तहरीक-ए-लबैक पाकिस्तान (टीएलपी) जैसे खतरनाक कट्टरवादी संगठन ने फ्रांस की सरकार द्वारा मुस्लिम-विरोधी कानून पारित किए जाने के खिलाफ इस्लामाबाद स्थित फ्रेंच दूतावास का घेराव करने का एलान किया था। इसने कई शहरों में भीड़ इकट्ठा की और उसकी हिंसा में दर्जनों पुलिस वाले मारे गए।
उसके बाद सरकार और सेना ने इस संगठन से समझौता किया, तब जाकर बात बनी। सजग नागरिकों का मानना है कि टीएलपी जैसे संगठन से समझौता करना गलत है। कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि अगले चुनाव में पीएमएल (नवाज) जैसी पार्टी को नुकसान पहुंचाने के लिए सेना टीएलपी का इस्तेमाल कर सकती है। विदेश नीति के मोर्चे पर भी पाकिस्तान के लिए नए साल में मुसीबतें हैं।
इसके लिए अफगानिस्तान एक बड़ी चुनौती है, जहां की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर है। अगर ऐसा होता है, तो पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों की भीड़ बढ़ जाएगी। तब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की ताकत बढ़ सकती है, जिससे पाकिस्तान में हमले बढ़ सकते हैं।
अमेरिका के साथ भी पाकिस्तान के रिश्ते बेहद खराब हैं, और पहली बार दोनों देशों के नेताओं के बीच कोई संवाद नहीं है। बाइडन को अमेरिका का राष्ट्रपति बने करीब एक साल हो गया है, पर न तो उन्होंने इमरान खान को कभी फोन किया, न ही दोनों की मुलाकात हुई है। यानी पाकिस्तान की मुश्किलें जारी रहेंगी।

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