सम्पादकीय

नई दुनिया के बुद्ध

Subhi
20 Aug 2022 5:51 AM GMT
नई दुनिया के बुद्ध
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तकनीक और विज्ञान की इस नई दुनिया में जब सब कुछ बदलता जा रहा है और आने वाला नया समाज और नई पीढ़ी की नई नस्ल के लिए हमारे परिवेश और इतिहास का बहुत कुछ पीछे छूटता जा रहा है, जो अब सिर्फ वीकिपीडिया और गूगल पर ही उपलब्ध दिखाई देता है। हाल ही में हमारी विरासत के पुराने स्थानों में से एक मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान मिला बुद्ध ‘पेंडेंट’ इन दिनों चर्चा का विषय है।

कृष्ण कुमार रत्तू: तकनीक और विज्ञान की इस नई दुनिया में जब सब कुछ बदलता जा रहा है और आने वाला नया समाज और नई पीढ़ी की नई नस्ल के लिए हमारे परिवेश और इतिहास का बहुत कुछ पीछे छूटता जा रहा है, जो अब सिर्फ वीकिपीडिया और गूगल पर ही उपलब्ध दिखाई देता है। हाल ही में हमारी विरासत के पुराने स्थानों में से एक मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान मिला बुद्ध 'पेंडेंट' इन दिनों चर्चा का विषय है।

कहा जाता है कि यह 'पेंडेंट' सामूहिक प्रार्थना के वक्त भगवान बुद्ध की प्रतिमा को श्रद्धा और इस उम्मीद के साथ पहनाया जाता था कि पूरे क्षेत्र और दुनिया में सदैव शांति का माहौल बना रहे। विश्व में यह अपनी तरह का आस्था और उम्मीदों के चिह्न की एक ऐसी प्रतीकात्मक पहचान और छवि है, जो समूचे विश्व के लिए बुद्ध के अहिंसा और आपसी मानव प्रेम की कहानी को आगे बढ़ाती है।

जिस तरह विज्ञान और तकनीक ने समूचे विश्व को एक सेतु-भाषा में बांधा है, वह भी अद्भुत है। हालांकि उपभोक्तावाद और परमाणु खतरे के दौर में बुद्ध के फलसफे को एक तरफ सिर्फ पूजा-उपासना के लिए रख दिया गया है।

अब तो विश्व के हालात ऐसे बन गए हैं कि पूरी दुनिया के देश परमाणु विस्फोट और परमाणु हथियार बनाने की दौड़ में आगे बढ़ रहे हैं और प्रचारित यह किया जाता है कि हम शांति के लिए परमाणु ताकत बन रहे हैं। यह भी सच है कि जैसे ही परमाणु विस्फोट होता है, बुद्ध मुस्कुराए कहा जाता है।

द्वंद्व की इस स्थिति में पूरी दुनिया जंग के कगार पर खड़ी है और पाखंड और हथियारों का बाजार खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। शायद अब समय आ गया है कि हम 'बुद्ध पेंडेंट' के सामने खड़े होकर मानवता को बचाने का प्रण लें, अन्यथा ये युद्ध की स्थितियां किस वक्त हमारी पूरी विरासत, इतिहास और विकास को लील कर कुछ सेकेंड में ही खत्म कर दें। यह अब समय का सच है।

'बुद्ध पेंडेंट' को लेकर इस चर्चा में यह भी उल्लेखनीय है कि भारत में बनी विश्व की विज्ञान पर पहली संस्कृत फिल्म 'यानम' इन दिनों उत्सुकता से देखी जा रही है। विज्ञान और विकास की अवधारणा मनुष्य की जिंदगी के नए सुखमय सोपानों के अध्याय के रूप में देखा जाना चाहिए, पर समय का सच यह है कि आज पूरी दुनिया यह मानने के लिए कतई तैयार नहीं है कि एक देश दूसरे देश से कमतर है।

सभ्यताओं के विकास में समाज का विकास ही असल में विखंडित होकर सभ्यताओं का विनाश हो जाता है। हमारे समय के प्रसिद्ध दार्शनिक और लेखक नोम चोमस्की ठीक ही तो कहते हैं कि विज्ञान के इस कौतूहल भरे माहौल में जब सब कुछ तकनीक और प्रोद्योगिकी द्वारा रोबोट संचालित होगा तो मानवीय रिश्ते और पूरा जीवन मशीनी युग में बदल जाएगा। सभ्यताओं के विनाश की यही सबसे पहली निशानी है, जिसमें हम अपनी भाषा, संस्कृति, इतिहास और विरासत को लगातार नष्ट करते जा रहे हैं।

अवधारणाओं और विज्ञान के इस विकास में हम भारतीय भी कम नहीं हैं। विज्ञान के इस दौर में हमने अपने जल, जंगल, जमीन से लेकर समाज का कोई भी ऐसा कोना छोड़ा नहीं है, जिसको विनाश के कगार पर न पहुंचाया हो। धुआं, शोर, भीड़ और गंदगी से भरे हमारे शहर और अनियंत्रित लोकमानस किस नई सभ्यता के विकास में कहानी रच रहे हैं और किस शांति के प्रतीक 'बुद्ध पेंडेट' को अपना रहे हैं।

यह भी आधुनिक चर्चा का विषय है। हम जिस देश के वासी हैं उसमें तो सूफियों के मजार, मध्यकाल के संतों का जीने का मध्यमार्ग और अमीर खुसरो का दकनी हिंदी में लिखा हुआ कलाम और सूरदास के साहित्य समेत, भागवत, उपनिषद, वेदों का सुसांस्कृतिक परिवेश और दर्शन हर भारतीय के मन मस्तिष्क को नई उर्जा से भर देता है।

उम्मीदों से भरा हुआ यह देश जिन संभावनाओं की ऐतिहासिक पगडंडियों से गुजरता हुआ यहां तक पहुंचा है, वह आजादी के इस अमृत महोत्सव तक पहुंचा, एक नया भारत, मानव की नई कल्पना, नई उम्मीदों से भरा हुआ नया सृजन संसार है। नई पीढ़ी के लिए यह एक नया क्षण है, जब वह नए भारतीय परिवेश में नए हिंसा-मुक्त परिवेश में शांति और परस्पर प्रेम की भावना से भरे भारत में जीने के सपने को साकार करने जा रहे हैं।

आज इन लम्हों में बुद्ध मुस्कुराए और बुद्ध के 'पेंडेंट' को आस्था से देखते हुए मोहनजोदड़ो की विरासत के झरोखों से एक नई दुनिया को बुद्ध के पेंडेट का शांति सद्भाव और पूरी दुनिया को जीने का मंत्र देने का समय आ गया है। क्या हम आजादी के इस अमृत महोत्सव में एक नया भारत और बुद्ध की शांति पेंडेंट का संदेश नहीं दे रहे हैं। यही सोचने का सही समय और शांति प्रयासों का क्षण है।


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