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- पर्यटन के नए उद्गार

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By: divyahimachal
हमेशा हर सत्ता से पूछा जाता है कि यह सफर कितने कोस का है, लेकिन रिवायतें कभी अधूरी नहीं रहतीं। इसलिए हिमाचल में कुछ रौनकें ऐसी भी हैं, जो स्वाभाविक, सरल और निरंतर आगे बढ़ रही हैं। कुछ ऐसे ही संयोग शिमला में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और धर्मशाला में जी-20 के प्रतिनिधियों का स्वागत कर रहे हैं। ये वीआईपी पर्यटन के प्रवेश द्वार भी हैं, जो राष्ट्रीय पहचान में हिमाचल का प्रचार करते हैं। इस सफर की कहानी का नायक कोई न कोई अति विशिष्ट व्यक्ति होता है और हिमाचल में हर साल इसकी निगाहों से बात होती है। बात होती है, जब श्रद्धा के आसरे अपने गुरु की महिमा में कहीं वचन, कहीं प्रवचन और कहीं सालाना रिवायतों में स्थापित कुछ आश्रय अपने द्वार खोल देते हैं। रिवायत यह भी कि गर्मियां आते ही देश के विभिन्न पदों पर आसीन प्रतिष्ठित व्यक्ति हिमाचल के अधिकांश डाक बंगलों को अपनी पसंदीदा जगह बना देते हैं। तब डलहौजी, नारकंडा, कसौली, पालमपुर, बरोट, शाडाबाई, राजगढ़ व कालाटोप जैसी अनेक जगह पर स्थित रेस्ट हाउस अपनी रैंकिंग को सर्वश्रेष्ठ बना देते हैं। हिमाचल के आतिथ्य में पर्यटन के उद्गार असरदार हैं, तो इस महत्त्व को महसूस करके प्रदेश को अपना कद भी बताना होगा। कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कारण प्रीणी गांव ही पर्यटन को प्राण दे देता था। आज यही संपर्क अटल टनल के वर्तमान में नए पर्यटन का उदय देखता है।
वीआईपी पर्यटन की विभिन्न श्रंृखलाओं को समझें, तो हिमाचल अपनी बुनियाद पर कई तमगे स्थापित कर सकता है, लेकिन इसकी रूपरेखा में प्रदेश की प्रस्तुति को नया शृंगार चाहिए। यह हिमाचल के सांस्कृतिक, सामाजिक, विकासात्मक, धरोहर तथा ऐतिहासिक पक्ष के साथ सुदृढ़ होगा। पिछले दिनों धर्मशाला लिट फेस्टिवल ने ऐसी ही एक शुरुआत में खुद को पेश किया, तो कसौली में प्रतिष्ठित साहित्यिक समारोह ने विचारों की दुनिया में मौलिक सोच का कारवां हिमाचल से जोड़ा है। धर्मशाला और शिमला के फिल्म फेस्टिवल भी इसी तरह फिल्मी दुनिया के नक्षत्र में हिमाचल के सितारे देख रहे हैं। यह एक अद्भुत प्रचार की तरह हिमाचल की हर संभावना में पर्यटन की गतिविधि बन जाते हैं। यूं तो हिमाचल में पर्यटन की आवाजाही अपने शीर्ष पर भीड़ बन जाती है, फिर भी कुछ व्यवस्थित रिवायतों में वीआईपी पर्यटन से हिमाचल की छवि में इजाफा होता है। कुछ दिन के लिए ही सही राष्ट्रपति भवन जैसा एहसास शिमला के इतिहास में जैसे डुबकी लगाता है। दूसरी ओर हिमाचल में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय आयोजनों के लिए धर्मशाला ने जिस तरह पांव पसारे हैं, उससे प्रदेश में कान्वेंशन टूरिज्म के दर्शन होते हैं। जी-20 से पहले पिछले साल राष्ट्रीय पैगाम के कई समारोह अगर धर्मशाला में चले, तो यहां अब एक सशक्त-आधुनिक कान्वेंशन सेंटर की परिकल्पना पूरी हो जानी चाहिए। वीआईपी पर्यटन भले ही प्रत्यक्ष में राज्य की आर्थिक मदद पूरी तरह न करे, लेकिन इसके माध्यम से होने वाला प्रचार हाई एंड पर्यटन को रेखांकित करता है। कुछ ढांचागत कमजोरियां जरूर उभरती हैं, जब मेहमानों की खातिरदारी में हम दिल बिछा कर बैठे होते हैं।
यह शहरी ढांचे में कुछ खामियों का वर्णन है जो छोटी सी वीआईपी हलचल पर सतर्क होकर विकल्प चुनता है या हमारी योजनाओं ने बड़े लक्ष्यों और जरूरतों के आगे खुद को महरूम रखा। हिमाचल किस तरह वीआईपी आगमन, पर्यटन आगमन, बड़े खेल तथा महारैलियों के आयोजन में अपनी भूमिका को सफल बना सकता है, इसके ऊपर तुरंत तवज्जो देने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय संदर्भों में हिमाचल के हिस्से में आ रही वीआईपी गतिविधियों के सामने प्रदेश की तस्वीर को मुकम्मल करने का यह सही वक्त भी है।

Rani Sahu
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