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कोरोना काल के नए-अनोखे धंधे
आलोक पुराणिक : एक शोध-सर्वे से साफ हुआ कि कोरोना की हाल की लहर में जिन लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उन्हें हजारों करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। अस्पताल जाने वाले हर परिवार ने औसतन डेढ़ लाख रुपये खर्च किए हैं। अस्पताल, चिकित्सा के बिजनेस चकाचक हो गए हैं। तमाम तरह के टेस्ट करने वाली एक पैथोलॉजी लैब के शेयर के भाव एक साल में करीब 78 प्रतिशत उछल गए हैं। अब और कितनी कमाई हो कोरोना, डाइबिटीज आदि के टेस्टों से।
जिंदगी बड़े इम्तिहान लेती है और समय-समय पर टेस्ट भी लेती है
जिंदगी बड़े इम्तिहान लेती है और समय-समय पर टेस्ट भी लेती रहती है। ये टेस्ट-वे टेस्ट। तमाम तरह के मेडिकल टेस्टों समेत। दूर-दराज के एक सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत एक डॉक्टर मित्र नाराज होकर बता रहे थे कि उनके यहां तो नॉर्मल टाइम में भी काम न होता। मतलब नेचुलर निकम्मापन है। उनका आशय यह था कि दूर-दराज के स्वास्थ्य केंद्रों के निकम्मेपन पर मीडिया की नाराजगी ठीक नहीं है। उस निकम्मेपन को सहज भाव ले लिया जाना चाहिए।
बंदा दफ्तर में निकम्मा हो, पर जुगाड़ सही हो तो कोरोना योद्धा घोषित हो सकता है
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में मेरा मित्र काम करता है, बहुत कम काम करता है, पर कविता करता है और करीब 36 काव्य संस्थाओं से वह कोरोना योद्धा होने का सर्टिफिकेट ले आया है। बंदा दफ्तर में निकम्मा हो, पर जुगाड़ सही हो तो कोरोना योद्धा घोषित हो सकता है। कोरोना ने जाने क्या-क्या दिखाया है?
भारत में कोरोना मरीज गाली खाकर भी ठीक हो रहे हैं
एक राज्य से समाचार आया कि वहां बंदों को नकली रेमडेसिविर सप्लाई की गई, फिर भी वहां लोग स्वस्थ हो गए। लोग नीम का काढ़ा पीकर स्वस्थ हो रहे हैं, नकली रेमडेसिविर लेकर स्वस्थ हो रहे हैं। डॉक्टर ने बताया कि एक प्रयोग और संभव है-कोरोना के मरीजों को उनके घर वालों से, पड़ोसियों से गालियां दिलवाई जाएं कि लापरवाह है, बिना मास्क के घूमता है। बहुत संभव है कि इतने या उतने प्रतिशत मरीज गाली खाकर भी ठीक हो जाएं। फिर झुनझुनपुरा मेडिकल रिसर्च जर्नल छाप सकता है कि भारत में मरीज गाली खाकर भी ठीक हो रहे हैं। ये-ये गालियां खाकर ठीक हुए। फिर इन गालियों के वाचन की सीडी, वीडियो बन जाएंगे और हर घर से गालियां सुनाई देने लग जाएंगी। गालियों की जैसी वैराइटी है यहां, वैसी शायद ही किसी ओर देश में हो। अवध की गालियां अलग, ब्रज की गालियां अलग, बुंदेलखंड की गालियां अलग। गाली ही गाली, खा तो लें। देश मेरा रंगरेज है बाबू, घाट-घाट यहां घटता जादू।
कोरोना काल में कइयों ने धंधे खड़े कर लिए
कोरोना ने कैसे-कैसे धंधे पेश कर दिए हैं। कोरोना में गए बंदे के साथ उसके घरवाले तक खड़े होने में कतराते हैं। ऐसे में कइयों ने धंधे खड़े कर लिए। तीस हजार दीजिए, जाने वाले को सम्मान के साथ विदा करवा देंगे। थोड़े ज्यादा पैसे दीजिए तो जाने वाले को महान बता ही न देंगे, बल्कि साबित भी कर देंगे। हर चीज का पैकेज है। आप तो बस रकम ले कर आ जाओ। कोरोना की खबर फैली ही थी कि एक मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव का फोन आ गया। बोला, परेशान न होइए, आपका इंतजाम हम कर देंगे। यहां इतनी रकम ट्रांसफर कर दीजिए, आपके जाने के बाद हम आपको सबसे बड़ा लेखक घोषित करवा देंगे।
हमारे पास पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर है किसी को भी महान घोषित कराने का
आप चिंता मत कीजिए, बस निकल लीजिए आराम से। बाकी तो हम हैं न। मैंने उसे बताया, देखिए, माइल्ड टाइप का कोरोना है, फिट हो जाऊंगा। फिर भी मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव ने जोर दिया, आप चिंता न करें, कोरोना से नहीं गए तो भी हम आपको महान घोषित करवा देंगे। हमारे पास पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर है किसी को भी महान घोषित कराने का। आपके ही पड़ोसी विकट भ्रष्ट अफसर को जाने के बाद हमने मानवीय संवेदनाओं से परिपूरित इंसान जैसा कुछ घोषित कराया है। आप तो बस निकल लो, आपको महान घोषित करवाना हमारा जिम्मा। मैंने कहा अभी जाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव निराश टाइप हो गया।
रेमडेसिविर की स्पेलिंग न बता पाने वाले को कोरोना इंगलिश निगेटिव घोषित किया जाए
कोरोना ने इंगलिश अध्यापन के सामने नई चुनौतियां पेश कर दी हैं। इंगलिश के अध्यापक बच्चों से पूछ रहे हैं कि रेमडेसिविर की स्पेलिंग बताओ, टोसिलिजुमाब की स्पेलिंग बताओ। जो बच्चे इनकी स्पेलिंग न बता पाएं, उन्हें कोरोना इंगलिश निगेटिव घोषित किया जाए। रेमडेसिविर और टोसिलिजुमाब से पीछा छूटने वाला नहीं है।
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