सम्पादकीय

वादी में नई मुसीबत : क्या ईरान का सेब बिगाड़ देगा कश्मीरी सेब उद्योग की रंगत

Gulabi
5 Feb 2022 8:50 AM GMT
वादी में नई मुसीबत : क्या ईरान का सेब बिगाड़ देगा कश्मीरी सेब उद्योग की रंगत
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वादी में नई मुसीबत
संजय वोहरा।
तीन दशक से चल रहे आतंकवाद के साथ-साथ राजनीतिक अस्थिरता के बीच झूलता भारत का जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) प्रांत अब नई मुसीबत का सामना करने जा रहा है. ये मुसीबत भी सीमा पार से आ रही है. धारा 370 हटने के बाद विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने और भौगोलिक बदलाव के कारण इसके नक्शे से लद्दाख (Ladakh) के हटने के बाद उठे विरोध के सियासी सुर तो अब शांत दिखाई देते हैं, लेकिन एक बड़ा तबका नई परेशानी के कारण खुद को तकलीफ में फंसा महसूस कर रहा है. हल्के-हल्के से ही सही लेकिन उसने आवाज़ भी उठानी शुरू कर दी है. दरअसल दूसरे मुल्कों के रास्ते भारत में आने वाले सेब ने कश्मीरी सेब (Kashmir Apple) की रंगत और मिठास पर असर डालना शुरू कर दिया है. कश्मीर में सेब को उगाने वाले किसान से लेकर, स्टोर करने वाले से लेकर बेचने वाले व्यापारी तक सब इस मुसीबत का सामना कर रहे हैं.
खतरे की घंटी बज चुकी है, क्योंकि सीमा पार से आने वाले सस्ते सेब को नहीं रोका गया तो ये घरेलू सेब उद्योग से जुड़े लाखों परिवारों के रोज़ी रोटी पर सीधा चोट करेगा. पर्यटन के अलावा जम्मू कश्मीर की कमाई का अगर कुछ बड़ा जरिया है तो वो फ्रूट और ड्राई फ्रूट ही है और इसमें भी सेब ही सबसे अहम है. कश्मीर के सेब कारोबारियों और किसानों की सबसे बड़ी संस्था 'द कश्मीर वैली फ्रूट ग्रोअर्स कम डीलर्स यूनियन' (The Kashmir Valley Fruit Growers Cum Dealers Union) के अध्यक्ष बशीर अहमद बाशिर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को और संघ शासित क्षेत्र जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा को इस मामले को लेकर पत्र लिखकर आगाह भी किया है, और इस मामले में दखल देने की अपील भी की है कि इस नई मुसीबत का इलाज जल्दी किया जाए. उनका कहना है इससे पहले इस मामले को लेकर वे केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से भी मिले थे, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.
ईरानी सेब से चुनौती
कश्मीर के सेब व्यापारियों का कहना है कि ईरान से यूएई होते हुए समुद्र के रास्ते ईरान का जो सेब भारत में आ रहा है वो इसलिए भी सस्ता है क्योंकि वो गैर कानूनी तरीके से लाया जा रहा है और उस पर कोई टैक्स नहीं लग रहा. पहले ये अफगानिस्तान के रास्ते सड़क से ट्रकों में लाया जाता था जो यहां पहुंचते-पहुंचते महंगा हो जाता था. लेकिन वहां अस्थिरता की वजह से ये इतना संभव नहीं हो रहा. वहीं सेब अब ज्यादातर मात्रा में समुद्र के रास्ते से ही लाया जा रहा है जो सस्ता पड़ता है. ये सेब महाराष्ट्र, गुजरात और चेन्नई के बंदरगाह पर उतरता है और वहां के कोल्ड स्टोर्स में रखा जाता है. दुनिया में सबसे ज्यादा सेब पैदा करने वाले देशों में से एक ईरान सेब उगाने से लेकर स्टोर करने, पैकिंग करने और ट्रांसपोर्ट करने में भारत से बेहतरीन मॉडर्न टेक्नॉलॉजी इस्तेमाल करता है, इसलिए उसके सेब की लागत भी कम आती है.
ईरान में रेड डिलीशियस, गोल्डन डिलीशियस और येलो ऐपल बहुतायत में होते हैं. यहां 25,1000 हेक्टर में सेबों के बाग़ हैं और हर साल प्रति हेक्टर में 15 टन सेब होते हैं. अमेरिका की तरफ से लगाए गए ताज़ा प्रतिबंधों की वजह से ईरान के सेब निर्यात पर असर पड़ा है. अब वहां सेब बहुत है और सस्ता भी है, लिहाज़ा भारत के व्यापारियों ने मंगाना शुरू कर दिया है.
दूसरी तरफ भारत में जो सेब पैदा होता है उसे उगाने की लागत भी ईरानी सेब से ज़्यादा है. वहीं जम्मू कश्मीर के किसानों और व्यापारियों की तरफ से जो आंकड़े दिए जा रहे हैं उनके मुताबिक़, पिछले सीज़न में हुई सेब की फसल का बड़ा हिस्सा अभी भी गोदामों में ही है. इनके अंदाज़े के आधार पर किए गए दावों पर यकीन किया जाए तो ये आंकड़ा सेब की 3 करोड़ पेटियों के आसपास होगा.
इनमें से 1.5 करोड़ पेटियां तो कोल्ड स्टोरेज में पड़ी हैं. पुलवामा जिले की फ्रूट ग्रोअर्स एंड डीलर्स एसोसियेशन (Fruit Growers And Dealers Association, Pulwama) के अध्यक्ष जाविद अहमद भट के मुताबिक़ उनके जिले के लासीपुरा इंडस्ट्रियल एरिया में 30 कोल्ड स्टोरेज हैं और हर एक में सेब की 2.5 लाख से 3.5 लाख पेटियां रखीं हैं.
यहां के सेब किसान मांग कर रहे हैं कि गैर कानूनी तरीके से बिना टैक्स के आ रहे ईरान के सेब की आमद को रोका जाए या इस पर टैक्स लगाया जाए वरना ये भारत के सेब के लिए ऐसी चुनौती खड़ी करेगा कि खरीददार ही नहीं मिलेंगे. पुलवामा के पायर गांव के सेब किसान अब्दुल हामिद का कहना है कि ईरान से आने वाले सेब की क्वालिटी तो हमारे सेब जैसी ही है, लेकिन रूप रंग में वो थोड़ा बेहतर दिखाई देता है सो ऐसे में ग्राहक उस सेब को जल्दी पसंद करेगा. एक तरफ ईरान में सरकार किसानों को सेब उगाने में इस्तेमाल होने वाले सामान पर रियायतें देती है, दूसरी तरफ भारत में स्टोरेज पर जीएसटी 12 फीसदी से बढ़कर 18 फीसदी हो गई है. इससे यहां का सेब और महंगा हुआ है.
भारत में सस्ता सेब पहुंचने के पीछे बड़ी वजह दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (South Asian Free Trade Area- SAFTA) संधि है जो सार्क के आठ सदस्य देशों भारत, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और श्रीलंका के बीच 2004 में 12 वें सार्क शिखर सम्मेलन में इस्लामाबाद में हुई थी. साफ्टा का मकसद सदस्य देशों के बीच व्यापार के कुछ साल या लम्बे समय तक चलने वाले व्यापार समझौतों को बढ़ावा देना है. इसके तहत सदस्य देश एक दूसरे को कम से कम ड्यूटी या टैक्स लगाये बिना सामान का लेनदेन करते हैं. ये क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने के लिए भी एक मंच का रोल अदा करता है.
साफ्टा संधि का दुरुपयोग
अब समस्या ये है कि साफ्टा प्रावधानों का दुरुपयोग करके भारत में सेब आयात किया जा रहा है. जाविद अहमद भट का कहना है कि अफगानिस्तान क्योंकि संधि का सदस्य देश है, इसलिए ईरान के सेब को अफगानिस्तान के कारोबारियों से जोड़कर इसे भारत में दाखिल किया जाता है जो गैर कानूनी है. न तो इस सेब पर भारत में सीमा शुल्क लग रहा है और न ही भारत में टैक्स लग रहा है. ऐसे में इसका सस्ता होना स्वाभाविक है. वहीं दूसरी तरफ कश्मीर में कम ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में जो सेब पैदा होता है उसे अक्टूबर तक तोड़ लिया जाता है. कुछ हिस्सा निर्यात हो जाता है, कुछ स्थानीय मंडियों में बिक जाता है लेकिन बहुत बड़ी मात्रा में उसे भविष्य में बेचने के लिए कोल्ड स्टोर्स गोदामों में रख लिया जाता है. इसमें ज़्यादातर माल व्यापारियों का होता है. कुछ किसान भी अपने सेब की पेटियां कोल्ड स्टोरेज में रखवाते हैं, जिसका प्रति पेटी के हिसाब से वो रख रखाव का खर्च या किराया देते हैं.
व्यापारियों की मजबूरी
फिलहाल चिंता व्यापारियों को ज्यादा है, क्योंकि उन्होंने जिस भाव पर माल खरीदा है वो रखरखाव, ट्रांसपोर्टेशन वगैरह के खर्चे लगाने के बाद आयातित सेब के दाम के मुकाबले में टिकेगा नहीं. न ही उसे वो एक समय की मियाद के बाद रख सकते हैं, क्योंकि ज्यादा पुराना होने से क्वालिटी खराब तो होगी ही है, कोल्ड स्टोरेज का खर्चा बढ़ेगा वह अलग. वहीं अगर गोदाम भरे रहे तो आने वाले सीज़न की फसल कहां रखी जाएगी. यानि व्यापारियों को मजबूर होकर घाटे में सेब बेचना पड़ेगा.
भारत में सेब की उपज
अब समस्या ये है कि एक तरफ तो ईरान से अफगानिस्तान के रास्ते सेब आ रहा है वो उससे भी काम दाम का है जिस दाम पर भारतीय किसान अपने बाग़ के सेब की फसल बेचते हैं. यूं तो ये समस्या भारत के सभी सेब किसानों के लिए है, लेकिन इससे सबसे ज़्यादा तकलीफ कश्मीर के किसानों को हो रही है. वजह ये है कि भारत में सबसे ज्यादा सेब उत्पादक और व्यापारी जम्मू कश्मीर में ही हैं. भारत में होने वाले सेब (Apple Crop In India) की कुल पैदावार का 70 से 80 फ़ीसदी हिस्सा जम्मू कश्मीर में ही होता है. 2017-18 की सेब की पैदावार के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक़ तब भारत में कुल 2326 टन फसल हुई थी, जिनमें से अकेले जम्मू कश्मीर का ही सेब 1808 टन था जबकि हिमाचल प्रदेश 446 टन के हिसाब से दूसरे नंबर पर और 58 टन के हिसाब से उत्तराखण्ड तीसरे नंबर पर रहा. जबकि इस दौरान अरुणाचल प्रदेश में सिर्फ 7 टन और केरल व नगालैंड में तो क्रमश : 4 और 2 टन ही सेब उगा था. वैसे हिमाचल प्रदेश के सेब किसानों और व्यापारियों ने भी इस मुद्दे को सरकार के सामने उठाया है.
जाविद भट का कहना है कि कश्मीर के शोपियां समेत कुछ अन्य इलाकों के ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों में अभी भी किसान सेब बेच रहे हैं. ये वो इलाके हैं जहां बेहतरीन किस्म का सेब पैदा होता है, जिसे देर तक रखा जा सकता है. यहां एक हफ्ते में कुछ हालात बदले हैं. यहां सेब की 19-20 किलो की जो पेटी पहले 800 से 850 रूपये की बिक रही थी अब 900 से 1000 रुपये में बिकना शुरू हुई है. इससे कुछ आस बंधी है. हालांकि स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है. कम से कम आम किसान तो गफलत में है. बात सिर्फ व्यापारियों या किसानों को होने वाले नुकसान की आशंका की ही नहीं है. सेब उद्योग यूटी और जम्मू कश्मीर के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि ये यहां की अर्थ व्यवस्था की एक लाइफ लाइन है. प्रधानमन्त्री को लिखे खत में तो बशीर अहमद बाशिर ने ये तक मांग की है कि मेक इन इंडिया के नारे को मूर्त रूप देने के लिहाज़ से भारत में वही सेब बेचा जाना चाहिए जो कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड अथवा यहां के किसी राज्य में पैदा हुआ हो.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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